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संधारित्र का संयोजन किसे कहते हैं?

संधारित्र का संयोजन किसे कहते हैं?

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको संधारित्र का संयोजन के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

संधारित्र संयोजन के बारे में

Combination of capacitor in hindi परिपथ में उपलब्ध धारिता से इच्छित (desired) धारिता प्राप्त करने के लिए संधारित्र का संयोजन (combination) किया जाता है।

संधारित्र संयोजन के प्रकार

संधारित्रो का संयोजन मुख्यतः दो प्रकार से होता है-

  1. श्रेणी क्रम संयोजन
  2. समांतर संयोजन

श्रेणी क्रम संयोजन

यदि संधारित्र को इस प्रकार जोड़ा जाए कि प्रथम संधारित्र की दूसरी प्लेट द्वितीय संधारित्र की पहली प्लेट से तथा द्वितीय संधारित्र की दूसरी प्लेट तृतीय संधारित्र की पहली प्लेट से जुड़े हो तथा आगे भी यही क्रम रहे तो यह संयोजन श्रेणी क्रम संयोजन कहलाता है।

यदि संधारित्र को इस प्रकार जोड़ा जाए कि प्रथम संधारित्र की दूसरी प्लेट द्वितीय संधारित्र की पहली प्लेट से तथा द्वितीय संधारित्र की दूसरी प्लेट तृतीय संधारित्र की पहली प्लेट से जुड़े हो तथा आगे भी यही क्रम रहे तो यह संयोजन श्रेणी क्रम संयोजन कहलाता है।

चित्रानुसार तीन संधारित्र श्रेणी क्रम में जुड़े हैं। जिनकी धारिताए क्रमशः C₁, C₂ और C₃ है। इन्हें Q आवेश देने पर विभव V₁, V₂ और V₃ हो जाता है।

पहले संधारित्र पर विभव V₁ = Q/C₁,

दूसरे संधारित्र पर विभव V₂ = Q/C₂,

तीसरे संधारित्र पर विभव V₃ = Q/C₃,

अगर परिणामी विभव V हो तो V = V₁ + V₂ + V₃, V= Q/C₁ + Q/C₂ + Q/C₃, Q/C = Q/C₁ + Q/C₂ + Q/C₃ [चूंकि V = Q/C], Q/C = Q (1/C₁ + 1/C₂ + 1/C₃ ) → [1/C = 1/C₁ + 1/C₂ + 1/C₃] यही श्रेणी क्रम में जुड़े संधारित्र की धारिता का व्यंजक है।

समांतर क्रम संयोजन

समांतर क्रम संयोजन में प्रत्येक संधारित्र की प्लेटों के मध्य विभवांतर समान होता है, लेकिन आवेश अलग-अलग होता है। आवेश उनकी धारिताओं के अनुपात में बट जाता है।

समांतर क्रम संयोजन में प्रत्येक संधारित्र की प्लेटों के मध्य विभवांतर समान होता है, लेकिन आवेश अलग-अलग होता है। आवेश उनकी धारिताओं के अनुपात में बट जाता है।

चित्रानुसार संधारित्रों का समांतर संयोजन प्रदर्शित है। जिसमें C₁, C₂ और C₃ धारिता वाले संधारित्रों को समांतर क्रम में जोड़ा गया है। तीनों संधारित्रों कि पहली प्लेट का संबंध बिंदु A से तथा दूसरी प्लेट का संबंध बिंदु B से किया गया है। बिंदु A को Q आवेश देने पर यह आवेश Q₁, Q₂ और Q₃ के रूप में तीनों संधारित्र में विभाजित हो जाता है।

पहले संधारित्र पर आवेश Q₁ = C₁ V,

दूसरे संधारित्र पर आवेश, Q₂ = C₂ V,

तीसरे संधारित्र पर आवेश Q₃ = C₃ V

चूंकि कुल आवेश Q = Q₁ + Q₂ + Q₃, CV = C₁ V, = C₂ V, C₃ V [चूंकि Q = CV], CV = V ( C₁ + C₂ + C₃ ), C = [ C₁ + C₂ + C₃ ]