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संक्षारण क्या होता है? | प्रकार

संक्षारण क्या होता है? | प्रकार

संक्षारण क्या होता है इसकी परिभाषा, वायुमंडल में उपस्थित गैसों तथा नमी द्वारा धातुओं को धीमी गति से अवांछित यौगिकों में बदल जाने की प्रक्रिया संक्षारण कहलाती है।

संक्षारण किसे कहते हैं?

धातुएं वायुमंडलीय की नमी CO₂, SO₂, H₂S, NO₂ आदि गैसों से क्रिया कर अवांछित यौगिकों की परत बना लेती है, जिसे धातुओ की सतह खराब हो जाती है। यह क्रिया संक्षारण कहलाती है।

संक्षारण के प्रकार

संक्षारण को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जाता है, वायुमंडलीय, भूमिगत, जलगत, और रासायनिक संक्षारण।

वायुमंडलीय

वायुमंडल में खुले रूप में रखी हुई धातुओं पर नमी धूल में निलम्बित कण तथा अन्य पदार्थ एवं सक्रिय गैसो, उदाहरण के लिए CO₂, O₂, H₂S आदि का प्रभाव पड़ता है। लोह जैसी धातु पर नमी के प्रभाव से हाइड्रोक्साइड बनता है जो बाद में ऑक्साइड में बदल जाता है।

रासायनिक

यह माध्यम में उपस्थित आयनों की प्रकृति एवं सांद्रता, संक्षारण के फलस्वरुप उत्पाद, माध्यम की चालकता, विलेय ऑक्सीजन के सांद्रण, तापक्रम, अन्य बनने वाले लवणों की सांद्रता तथा धातु के पूर्व उपचार पर निर्भर करता है। यदि क्षरण से बनने वाले उत्पाद में दरार पड़ जाए, तो उसमें धातु की नयी सतह क्षरण हेतु उपलब्ध हो जाती है यदि बनने वाला उत्पाद धातु से चिपका रहे तो वह क्षरण को बढ़ाने से रोकता है।

जलगत

यदि वायु की अपेक्षा जल की मात्रा अधिक हो जाए तथा धातु की जल से निकट संपर्क हो, उदाहरण के लिए पाइप लाइन, भाप बॉयलर आदि तो धातु का होने वाला संक्षारण, जलगत संक्षारण कहलायेगा। इसमें बनने वाली जंग मुलायम एवं एकसमान होगी।

भूमिगत

निर्माण में उपयुक्त धातु के ढांचों एवं जल हेतु प्रयुक्त पाइप लाइन का क्षरण इस वर्ग में आता है। यह क्षरण जलगत संक्षारण के समान ही है। इसकी गति सक्रिय लवणों की उपस्थिति में बढ़ जाती है।

संक्षारण को प्रभावित करने वाले कारक

  1. धातुओं के इलेक्ट्रोड विभव का मान ऋणात्मक अथवा 1.23 वोल्ट से कम होता है तो उस सेल का कुल विभव धनात्मक होगा और उस धातु का संक्षारण होगा।
  2. अधिकांश धातुएं ऑक्सीजन से प्रभावित होकर ऑक्साइड के पतली सत्ता उत्पन्न करती है। जिससे धातु की नयी सतह वायुमंडलीय संपर्क में आकर संक्षारित होने लगती है। इसके अतिरिक्त धातु के लवणों का विलेयता पर भी संक्षारण निर्भर रहता है।
  3. समतल या चिकनी सतह वाली धातु का क्षरण अपेक्षाकृत कम तथा मुड़ी हुई खुरदरी धातु का संक्षारण अधिक होता है। इसका कारण शायद इन स्थानों पर धातु परमाणु या अणुओं पर अधिक दबाव है।
  4. यदि धातु में अधिक इलेक्ट्रोड विभव के मान वाली कोई अशुद्धि है तो उस धातु का क्षरण तीव्र गति से होगा, क्योंकि इस स्थिति में इस स्थिति में धातु ऐनोड का और अशुद्धि कैथोड का कार्य करने लगती है जिससे संक्षारण गति बढ़ जाती है।
  5. वातावरण में नमी H₂S, SO₂ आदि अधिक होने पर संक्षारण शीघ्र होता है।

संक्षारण रोकने के उपाय

  1. तेल या ग्रीस लगाकर– धातु की सतह पर तेल या ग्रीस की पतली परत चढ़ाने से जंग से बचा जा सकता है।
  2. पेंट वार्निश लगाकर– धातुओं पर पेंट करके संक्षारण को रोका जा सकता है इससे धातु वायु व नमी के संपर्क में नहीं आती है।
  3. विद्युत लेपन– धातु की सतह पर विद्युत लेपन द्वारा नीकिल या क्रोमियम की परत चढ़ाई जाती है जिससे जंग लगने से बचा जा सकता है।
  4. विद्युतीय रक्षण– डीजल टैंक, पेट्रोल टैंक जो की जमीन के अंदर दबे रहते हैं उनको निम्न आयनन विभव वाले धातु, जैसे Mg या Zn की प्लेट को फिते द्वारा जोड़ देते है जिससे सक्रिय धातु क्रिया करती रहती है जबकि टैंक वाली धातु सुरक्षित बनी रहती है।

जंग लगने का रासायनिक सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार अशुद्ध लोहे की सतह एक विद्युत रासायनिक सेल की भांति व्यवहार करती है। ऐसे सेल को संक्षारण सेल भी कहते है। इन सेलो में शुद्ध लोहा ऐनोड तथा अशुद्ध लोहा कैथोड का कार्य करता है।