साइक्लोट्रॉन क्या है, साइक्लोट्रॉन (cyclotron) एक ऐसी युक्ति है जिसकी सहायता से हम धनावेशित कणों को उच्च वेग से त्वरित करते हैं। साइक्लोट्रॉन की खोज सर्वप्रथम सन् 1932 ई. में प्रोफेसर ई. ओ. लारेंस ने वर्कले इंस्टिट्यूट, कैलिफोर्निया में इसका आविष्कार किया था।
साइक्लोट्रॉन क्या है?
आप लोगों ने जान लिया है कि साइक्लोट्रॉन क्या है पर मैं आपको एक दूसरी परिभाषा में भी बताता हूं कि यह क्या होता है। साइक्लोट्रॉन एक ऐसी युक्ति है जिसकी सहायता से भारी धनावेशित कण जैसे - प्रोटॉन, ∝ कण आदि की ऊर्जा को बढ़ाया जा सकता है।
साइक्लोट्रॉन का सिद्धांत
साइक्लोट्रॉन इस सिद्धांत पर कार्य करता है कि डीज के बीच लगने वाला प्रत्यावर्ती विभवान्तर की आवृत्ति, डीज के अंदर आवेशित कणों के परिक्रमण की आवृत्ति के बराबर होनी चाहिए।
साइक्लोट्रॉन की संरचना
दोस्तों हमने साइक्लोट्रॉन क्या है यह तो जान लिया है, अब जान लेते हैं कि साइक्लोट्रॉन की संरचना क्या है, इसमें दो D आकार के धातु के खोखले गोले D₁ व D₂ होते हैं, जिन्हें डीज कहते हैं तथा ये डीज एक-दूसरे से अल्प अंतराल पर रखे होते हैं और इनके बीच उच्च प्रत्यावर्ती स्त्रोत जोड़ दिया जाता है।
इन डीजो के बीच में एक आयन स्त्रोत S उपस्थिति होता है तथा इन डीजो के चारों ओर प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है, जिसकी दिशा इन डीजो के तलो के लंबवत होती है।
साइक्लोट्रॉन की क्रियाविधि
आयन स्त्रोत s से m द्रव्यमान तथा +q आवेश का आयन उस समय पर निकलता है, जब D₂ ऋण विभव पर होता है। D₂ के ऋण विभव होने के कारण यह धनात्मक आयन D₂ में प्रवेश करता है और V वेग से R त्रिज्या के पथ पर गति करता हुआ विक्षेपक प्लेट द्वारा बाहर निकल जाता है।
साइक्लोट्रॉन की सीमाएं
- साइक्लोट्रॉन द्वारा अनावेशित कण जैसे न्यूट्रॉन को त्वरित नहीं किया जा सकता है।
- यदि एक निश्चित सीमा से अधिक आवेशित कणों को नहीं दी जा सकती है।
- साइक्लोट्रॉन इलेक्ट्रॉन को त्वरित नहीं करता है क्योंकि इनका इनका द्रव्यमान काफी कम होता है। अतः सूक्ष्म गतिज ऊर्जा ग्रहण करने पर ही ये बहुत उच्च वेग से गति करते हैं।
साइक्लोट्रॉन के उपयोग
- साइक्लोट्रॉन के उपयोग से नाभिकीय अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
- साइक्लोट्रॉन के उपयोग की सहायता से रेडियो एक्टिव पदार्थ बनाए जाते हैं।
- चिकित्सा के क्षेत्र में भी साइक्लोट्रॉन का उपयोग किया जाता है।