हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको संधारित्र में संचित ऊर्जा के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
संधारित्र में संचित ऊर्जा के बारे में
किसी संधारित्र को उसके विद्युत क्षेत्र में आवेशित करने के लिए किया गया कार्य उस चालक की स्थतिज ऊर्जा या उसमें संचित ऊर्जा कहलाती है।
यदि किसी संधारित्र की धारिता C हो तथा उसे q आवेश देने पर उसका विभव V हो तब V = q/c संधारित्र को सूक्ष्म आवेश dq देने में किया गया कार्य
dw = V.dq, dw = q/c.dq {V = q/c} अतः संधारित्र को q आवेश देने में किया गया कार्य w = ∫q₀ q/c. dq, w = 1/c [q²/2]q₀ = 1/2 q²/c अतः संधारित्र में संचित ऊर्जा U = 1/2 q²c = 1/2 CV² = 1/2 Vq इकाई जूल है।
संधारित्र का ऊर्जा घनत्व
माना किसी समांतर प्लेट वायु संधारित्र की प्लेटों के बीच दूरी एवं प्रत्येक प्लेट का क्षेत्रफल A है। इसलिए वायु संधारित्र की धारिता C = E₀A/d (समीकरण 1) चूंकि संधारित्र की प्लेट के बीच स्थितिज ऊर्जा U = 1/2 CV² (समीकरण 2) जहा V = संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवांतर चूंकि U = 1/2 E₀A/d x V² (समीकरण 3) अथवा U =1/2 E₀A²/axd x V² axd = प्लेटो के बीच का आयतन।
यदि प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र E हो तो V = Exd, U = 1/2 E₀A² x E²d²/axd, अथवा U =1/2 E₀E² (axd) एकांक आवेश में स्थितिज ऊर्जा घनत्व u = U/आयतन = 1/2 E₀E² (axd)/(axd) अथवा u = 1/2 E₀E²
यदि संधारित्र की प्लेटों के बीच K परावैद्युतांक का परावैद्युत माध्यम है तो ऊर्जा घनत्व u = 1/2 K E₀E²
संधारित्र का उपयोग
मोटरो में, छत के पंखे में, कूलर की मोटर, चक्की की मोटर, टेबल पंखों में, स्पार्किंग कम करने में, डी.सी. परिपथ में, ए.सी. से डी.सी. प्राप्त करने में, बैटरी चार्जर में, ट्यूब लाइट स्टार्टर आदि में संधारित्र का उपयोग किया जाता है।