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ज्ञान क्या है? | ज्ञान की परिभाषा | ज्ञान के स्रोत

ज्ञान क्या है? | ज्ञान की परिभाषा | ज्ञान के स्रोत

ज्ञान क्या है? ज्ञान का स्वरूप क्या है? ज्ञान वस्तुपरक (objective) अथवा आत्मपरक (Sujective)? क्या ज्ञान मन का गुण है अथवा क्रिया है? ज्ञान और ज्ञान के विषय का सम्बन्ध क्या है? ज्ञान के स्वरूप सम्बन्धी सिद्धान्त क्या हैं ?

ज्ञान की उत्पत्ति किस प्रकार हुई? ज्ञान के प्रमुख स्रोत क्या हैं? शुद्ध ज्ञान कहां से प्राप्त होता है? ज्ञान के स्रोतों का क्या महत्व है? क्या ये ज्ञान प्रमाणिक स्रोत हैं ज्ञान मीमांसा के अन्तर्गत ज्ञान सम्बन्धी विभिन्न प्रश्नों का उत्तर ढूंढा जा सकता है।

ज्ञान की परिभाषा | Gyan ki paribhasha

प्रो रसेल (Proof Russel) — "ज्ञान वह है जो मनुष्य के मन को प्रकाशित करता है।”

विलियम जेम्स (William James) - "ज्ञान व्यवहारिक प्राप्ति और सफलता का दूसरा नाम है।"

प्रो जोड (Prof Joad) - "ज्ञान हमारी उपस्थिति, जानकारी और अनुभवों के भण्डार में वृद्धि का नाम है।"

ज्ञान के स्रोत | Gyan ke strot

इसके स्रोत निम्न प्रकार से है- 

इन्द्रियानुभव ( Sensory Experience ) 

इन्द्रियगत अनुभव हमारे ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। मानव की पांच ज्ञानेन्द्रियों (कान, नाक, आंख, त्वचा, जीभ) आदि ध्वनि, गन्ध, रंग, ताप तथा रस का ज्ञान देती है जिन्हें हम इन्द्रियानुभव कहते हैं। ज्ञान का एक बहुत बड़ा भाग हमे ज्ञानेन्द्रियों से ही प्राप्त होता है, इसलिए इन्द्रियां ज्ञान का स्रोत हैं। जिस ज्ञान की प्राप्ति में अधिक-से-अधिक ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग होता है। वह ज्ञान स्थायी तथा पूर्ण होता है।

इन्द्रियगत अनुभव हमारे ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। मानव की पांच ज्ञानेन्द्रियों (कान, नाक, आंख, त्वचा, जीभ) आदि ध्वनि, गन्ध, रंग, ताप तथा रस का ज्ञान देती है जिन्हें हम इन्द्रियानुभव कहते हैं।

तर्क बुद्धि (Reasoning)

तर्क ज्ञान का स्रोत है। तर्क में बुद्धि का सहारा लेकर अनुमान लगाया जाता है तथा इस क्रिया से ज्ञान प्राप्त होता है। बुद्धि का कार्य कल्पना, सोचना, विचारना तथा तर्क देना है। तर्क मानसिक तथा बौद्धिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य अपना कोई मत बनाता है या किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है।

ज्ञान प्राप्ति के लिए तर्क के अन्तर्गत दो विधियां होती हैं जिनका प्रयोग किया जाता है - निगमन तथा आगमन विधियां आगमन विधि के अन्तर्गत अनेक उदाहरणों के अनुभव की सहायता से सामान्यीकरण (Generalisation) किया जाता है। सामान्यीकरण तथ्य का रूप धारण कर लेता है।

शब्द अथवा आप्तवचन (Verbal Testimony or Authority)

आप्तावचन ज्ञान का स्रोत न तो बुद्धि है न ही इन्द्रियानुभव। प्राय: देखा जाता है कि बहुत सा ज्ञान जो हमारे पास है उसे न तो ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा प्राप्त किया गया है तथा न ही इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बुद्धि का प्रयोग किया गया है।

हमें ऐसे ज्ञान की प्राप्ति के लिए विशेषज्ञों पर निर्भर रहना पड़ता है ज्ञान के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ होते हैं जैसे — अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ, गणित के विशेषज्ञ भौतिक विज्ञान के विशेषज्ञ, इत्यादि। उदाहरण के तौर इन पर ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था तथा न्यूनटन के गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त (Law of Gravitation) दिया। इसलिए ज्ञान भण्डार का बहुत बड़ा भाग विशेषज्ञों के कथनों में विश्वास करके प्राप्त किया जाता है।

अन्त: प्रज्ञा (Intution)

यह ज्ञान एक तरह की अन्त : करण की आवाज है। केवल इसका स्वरूप स्पष्ट नहीं है यह ज्ञान भी न तो इन्द्रियानुभव तथा न ही तर्क बुद्धि द्वारा होता है। अतः करण की आवाज से एक अलग तरह का अनुभव होता है जो पांच इन्द्रियों के अनुभव से परे का अनुभव है।

इसलिए इस अनुभव को मनुष्य की छठी इन्द्री से भी जोड़ दिया जाता है। सम्पूर्णता का बोध अथवा उसकी अनुमति का नाम अन्तः क्रिया है इसको भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में कठिनाई आती है, इस में ज्ञाता तथा श्रेय दो नहीं रहते। इस अनुभूति में ज्ञाता श्रेय में लीन हो जाता है।

प्रयोगात्मक (Experimental)

इस प्रकार का ज्ञान व्यक्ति वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों से प्राप्त करता है। ये प्रयोग नियन्त्रित स्थिति में किए जाते हैं। इस ज्ञान की पुष्टि अन्य व्यक्तियों द्वारा पुनः प्रयोग करने से की जा सकती है। प्रयोगो द्वारा ही नियम निकलते जाते हैं। इस प्रकार प्रयोग ज्ञान प्राप्ति के लिए सशक्त विधि है।

श्रुति (Revelation)

श्रुति का सम्बन्ध धार्मिक ज्ञान से होता है। धार्मिक ज्ञान के लिए श्रुति महत्त्वपूर्ण स्रोत है। चाहे भारत हो चाहे दूसरे देश, यहां के धार्मिक ग्रन्थों का आधार श्रुति है। हमारे ऋषि-मुनियों तथा गुरूओं को दिव्य व आलौकिक शक्तियों से ज्ञान प्राप्त होता है जो बाहरी कानों से नहीं सुना जा सकता अपितु अन्त: करण से सुना जा सकता है। यह ज्ञान काल और देशों की सीमाओं से बंधा हुआ नहीं होता। यह सार्वभौमिक होता है तथा इसमें से किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।