नमस्कार दोस्तों, आज के इस लेख(Post) में आपको जल संसाधन(Resources) व उसके संग्रहण के बारे में बताने जा रहा हूँ। तो इस पोस्ट(Post) को पूरा जरूर पड़ें और में हूं शिवा सिंह और आप देख रहे हैं 10th12th.com. तो चलिए जानते हैं जल संसाधन (water resources) व संग्रहण के बारे में।
जलाशय पर तलछट जमा होना
नदी परियोजना पर उठी अधिकतर आपत्तियां उनके उद्देश्यों में विफल(Failed) हो जाने पर हैं। यह एक विडंबना ही है कि जो बांध बाढ़ नियंत्रण(Control) के लिए बनाए जाते हैं उनके जलाशयों में तलछट जमा होने से वे बाढ़(Flooding) आने का कारण बन जाते हैं। अत्यधिक वर्षा होने की दशा में तो बड़े बांध भी कई बार बाढ़ नियंत्रण(Control) में असफल रहते हैं। आपने पढ़ा होगा कि वर्ष 2006 में महाराष्ट्र(Maharashtra) और गुजरात(Gujarat) में भारी वर्षा के दौरान बांधों(Dam) से छोड़े गए जल की वजह से बाढ़(Flooding) की स्थिति और विकट हो गई। इन बाढो से न केवल जान और माल का लॉस(Loss) हुआ अपितु बृहद स्तर पर मृदा(Soil) अपरदन भी हुआ।
बांध के जलाशय पर तलछट(Sediment) जमा होने का अर्थ यह भी है कि यह तलछट जो कि एक प्राकृतिक(Natural) उर्वरक है बाढ़ के मैदानों तक नहीं पहुंचती जिसके कारण भूमि निम्नीकरण की समस्या प्रॉब्लम(Problem) बढ़ती है यह भी माना जाता हैं कि बहुउद्देशीय प्लान(Plan) के कारण भूकंप(Earthquake) आने की संभावना भी बड़ जाती हैं और अत्यधिक जल के यूज(Use) से जल जनित बीमारियां, फसलों में कीटाणु (bacteria) जनित बीमारियां और पॉल्यूशन (Pollution) फैलते हैं।
वर्षा जल संग्रहण
बहुत से लोगों का मानना है कि बहुउद्देशीय परियोजनाओं के अलाभद्र(Unprotected) असर और उन पर उठे विवादों के चलते वर्षा जल संग्रहण तंत्र इनके सामाजिक आर्थिक और पारिस्थितिक(Ecological) तौर पर व्यवहार्थ विकल्प हो सकते हैं। प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जलीय निर्माणों के साथ-साथ जल संग्रहण(Storage)) ढांचे भी पाए जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति और मृदा(Soil) के गुणों के बारे में गहरा ज्ञान था। उन्होंने स्थानीय(Local) पारिस्थितिकी परिस्थितियों और उनकी जल आवश्यकतानुसार वर्षा जल भोम जल(Ground water), नदी जल और बाढ जल संग्रहण के अनेक तरीके विकसित(Developed) कर दिए थे।
तालाब द्वारा वर्षा संग्रहण
पहाड़ी और पर्वतीय एरिया(Area) में लोगों ने ' गुल ' अथवा ' कुल ' (पश्चिमी हिमालय) जैसी वाहिकाएं, नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई है। पश्चिमी भारत, विशेषकर राजस्थान(Rajsthan) में पीने का जल एकत्रित करने के लिए 'छत वर्षा जल संग्रहण' का तरीका आम था।
पश्चिमी बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग अपने खेतों की सिंचाई के लिए बार बाढ(Flood) जल वाहीकाए बनाते थे। शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में खेतों में वर्षा जल एकत्रित कलेक्ट(Collect) करने के लिए गड्ढे बनाए जाते थे ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके और संरक्षित(Protected) जल को खेती के लिए उपयोग में लाया जा सके। राजस्थान के जिले जैसलमेर में ' खादीन 'और अन्य क्षेत्रों में ' जोहड़ ' इसके उदाहरण हैं।
राजस्थान के अर्थ शुष्क और शुष्क एरिया(Area) विशेषकर बीकानेर फलोदी और बाड़मेर में, लगभग हर घर में पीने का पानी कलेक्ट(Collect) करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा ' टांका ' हुआ करते थे। इसका आकार एक बड़े कमरे जितना हो सकता है। फलोदी में एक घर में 6.1 मीटर गहरा 4.27 मीटर लंबा और 2.44 मीटर चौड़ा टांका था। टांका यहां डेवलप्ड(Developed) छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का अभिन्न पार्ट(Part) होता है जिसे मुख्य घर या आंगन में बनाया जाता था।
कुछ वर्षा जल संग्रहण करने के उपाय
- पी वी सी पाइप(PVC PIPE) का इस्तेमाल करके छत का वर्षा जल एकत्रित किया जाता है।
- रेत और ईट प्रयोग करके जल का छनन(Filter) किया जाता है।
- भूमिगत पाइप के द्वारा जल हौज तक ले जाया जाता है जहां से इसे तुरंत यूज(Use) किया जा सकता है।
- हौज(Hauz) से अतिरिक्त जल कुएं(Well) तक ले जाया जाता है।
- कुए का जल भूमिगत(Underground) जल का पुनर्भरण(Recharge) करता है।
- बाद में इस जल(Water) का यूज(Use) किया जा सकता है।
वे घरों की ढलवा छतों से पाइप(Pype) द्वारा जुड़े हुए थे। छत से वर्षा का पानी इन नलों से होकर भूमिगत (Underground) टंकी तक पहुंचा था जहां इसे एकत्रित किया जाता था। वर्षा का पहला जल(Water) छत और नालों को साफ(Clean) करने में प्रयोग होता था और उसे संग्रहित(Collect) नहीं किया जाता था। इसके बाद होने वाली वर्षा का जल संग्रह किया जाता था।
टंकी द्वारा वर्षा जल संग्रहण
टंकी में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहित(Collect) किया जा सकता है। यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु(summer season) तक पीने का जल उपलब्ध(Available) करवाने वाला जल स्त्रोत बनाता है। वर्षा जल अथवा 'पालर पानी' जैसा कि इसे इन क्षेत्र में पुकारा जाता है, प्राकृतिक जल का शुद्धतम रूप समझा जाता है। कुछ घरों में तो टंकी के साथ भूमिगत(Underground) कमरे भी बनाए जाते है क्योंकि जल का यह स्त्रोत इन कमरों को भी ठंडा रखता था जिससे ग्रीष्म ऋतु(summer season) में गर्मी से राहत मिलती है।
एक रोचक तथ्य
मेघालय की राजधानी(Capital) शिलांग में छत वर्षा जल संग्रहण प्रचलित है। वह रोचक इसलिए है क्योंकि चेरापूंजी और मोसिनराम (Monisram) जहां विश्व की सबसे अधिक वर्षा होती है, शिलांग से 55 किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है और यह सिटी(City) पीने के जल की कमी की गंभीर समस्या का सामना करता है। सिटी(City) के लगभग हर घर में छत वर्षा जल संग्रहण(Collect) की व्यवस्था है। घरेलू जल आवश्यकता की कुल मांग के लगभग 15 से 20% हिस्से की पूर्ति छत जल संग्रहण व्यवस्था से ही होती है।
यह दुख की बात है कि आज पश्चिमी राजस्थान (Rajsthan) में छत वर्षा जल संग्रहण की रीति इंदिरा गांधी नहर से उपलब्ध बारहमासी(Yearly) पेयजल के कारण कम होती जा रही है। हालांकि कुछ घरों में टैंको की फैसिलिटी (facility) अभी भी है क्योंकि उन्हें नल के पानी का स्वाद पसंद नहीं है। सौभाग्य से आज भी इंडिया(India) के कई ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जल संरक्षण और संग्रहण का यह तरीका यूज(Use) में लाया जा रहा है।
छत जल संग्रहण
कर्नाटक के में मेसुरु डिस्ट्रिक्ट(District) में स्थित एक सुदूर गांव गंडाथूर में ग्रामीणों(Villagers) ने अपने घर में जल आवश्यकता पूर्ति छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था की हुई है। गांव के लगभग 200 घरों में यह व्यवस्था है और इस गांव ने वर्षा जल संपन्न गांव की ख्याति अर्जित की है। यहां यूज(Use) किए जा रहे वर्षा जल संग्रहण ढांचों के बारे में अधिक जानकारी के लिए चित्र 3.4 को देखें। इस विलेज(Village) में हर वर्ष लगभग 1000 मिलीमीटर वर्षा होती है और 10 भराई के साथ यहां संग्रहण क्षमता(Efficiency) 80% है।
यहां हर घर लगभग प्रत्येक वस्तु 50,000 मीटर जल का संग्रह और उपयोग कर सकता है। 200 घरों द्वारा हर वर्ष लगभग 1000,000 लीटर जल एकत्रित किया जाता है।
एक रोचक तथ्य
तमिलनाडु एक ऐसा स्टेट(state) है जहां पूरे राज्य में हर घर में छत वर्षा जल स्टोरेज(Storage) ढांचों का बनाना आवश्यक कर दिया गया है। इस संदर्भ में दोषी व्यक्ति पर लीगल(Legal) कार्रवाई हो सकती है।
बांस ड्रिप सिंचाई प्रणाली
मेघालय में नदियों व झरनों के जल को बास द्वारा बने पाइप द्वारा एकत्रित करके 200 वर्ष पुरानी विधि प्रचलित है। लगभग 18 से 20 लीटर सिंचाई पानी बांस पाइप में आ जाता है तथा उसे सैकड़ों मीटर की दूरी तक ले जाया जाता है अंत में पानी का बहाव 20 से 80 बूंद प्रति मिनट तक घटाकर पौधे पर छोड़ दिया जाता है।
पहाड़ी सिखरो पर सदानीरा झरनों की दिशा परिवर्तित करने के लिए बांस के पाइपो(Pype) का उपयोग किया जाता है। इन पाइपो(Pype) के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण द्वारा जल पहाड़ के निचले स्थानों तक पहुंचाया जाता है।
बांस निर्मित चैनल(Channel) से पौधे के स्थान तक जल का बहाव परिवर्तित किया जाता है। पोधे तक बांस पाइप(Pype) से बनाई बिछाई गई विभिन्न जल शाखाओं में जल वितरित किया जाता है। पाइपो(Pype) में जल प्रवाह इनकी स्थितियों में परिवर्तन करके नियंत्रित किया जाता है।
यदि पाइपों(Pype) को सड़क पार ले जाना हो तो उन्हें भूमि पर ऊंचाई से ले जाया जाता है। संकुचित किए हुए चैनल सेक्शन और पंथातरण इकाई जल सिंचाई के अंतिम चरण में प्रयुक्त की जाती है। अंतिम चैनल(Channel) सेक्शन से पौधे की जड़ों(Root) के निकट जल गिराया जाता है।