हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको किरचॉफ का नियम के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
किरचॉफ का नियम किसे कहते है?
किसी भी जटिल परिपथ में विभिन्न चालकों में धारा का वितरण ज्ञात करने के लिए सन् 1845 में वैज्ञानिक गुस्ताव रॉबर्ट किरचॉफ ने दो नियम की खोज जिसे हम किरचॉफ का नियम कहते हैं।
किरचॉफ का प्रथम नियम
किसी विद्युत परिपथ में किसी भी संधि पर मिलने वाली सभी विद्युत धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। ∑I =0 हम प्रथम नियम को किरचॉफ का धारा नियम (kirchhoff current law) KCL भी कहते हैं।
संधि की ओर आने वाली धाराओं को धनात्मक व संधि से दूर जाने वाली धाराओं को ऋणात्मक माना जाता है। I₁ + I₂ + I₃ + I₄ + I₅ = 0 = I₁ + I₄ + I₅ = I₂ +I₃
किसी विद्युत परिपथ में किसी संधि पर प्रवेश करने वाली धाराओं का योग उससे निकलने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है।
यह नियम आवेश संरक्षण के नियम पर आधारित है। इस नियम को हम प्रथम नियम संधि नियम या जंक्शन नियम भी कहते हैं।
किरचॉफ का द्वितीय नियम
किसी परिपथ में प्रत्येक बन्दपाश के विभिन्न खंडों में बहने वाली धाराओं तथा संगत प्रतिरोधों के गुणनफलो का बीज गणितीय योग उस बन्दपाश में लगने वाले विद्युत वाहक बलो के बीजगणितीय योग के बराबर होता है। इसे पाश का नियम अथवा वोल्टता का नियम भी कहते हैं।
∑IR = ∑E
दूसरे शब्दो में, किसी विद्युत परिपथ मेंF बन्द लूप में जुड़े सभी सेलो के विद्युत वाहक बलो का योग, उसमें जुड़े प्रतिरोधों तथा उन प्रतिरोधों में प्रवाहित धारा के गुणनफल के योग के बराबर होता है।
और अन्य शब्दों में इसे हम कहें तो, प्रतिरोधों तथा सेलो से मिलकर बने बन्द लूट के संगत सभी विभवांतर का बीजगणितीय योग शून्य होता है।
प्रथम बन्दपाश के लिए, I₁R₁ -I₂R₂ = E₁ - E₂, द्वितीय बन्दपाश के लिए, (I₂R₂ + (I₁ + I₂) = R₃ = E₂)
यह नियम द्वितीय नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का पालन भी करता है।