मानवीय पूंजी निर्माण का अर्थ है “ऐसे लोगों की प्राप्ति और उन की संख्या में वृद्धि जिनके पास निपुणताएं, शिक्षा और अनुभव है तथा जो देश के आर्थिक और राजनैतिक विकास के लिये महत्व रखते हैं। अत: एक रचनात्मक उत्पादक साधन के रूप में, यह व्यक्ति और उसके विकास पर निवेश से सम्बन्धित हैं ।”
विकासशील देशों में नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया में मानव के विकास पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता। यही कारण है कि इन देशों में विकास के वांछित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पाते तथा वहां विकास की दर निम्न रहती है।
अतः विकास की प्रक्रिया में पूंजीगत साधनों- प्लाण्ट तथा मशीनरी पर व्यय करने के साथ-साथ मानव पूंजी के विकास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
वास्तव में उत्पादन की पूर्णता मनुष्य से ही सम्बन्धित है। भले ही नई तकनीक ने मनुष्य की श्रमशक्ति को घटा दिया है, उत्पादन अन्ततः भौतिक पदार्थों पर मानव क्रिया का ही परिणाम होता है। इस तरह, आर्थिक विकास को गति प्रदान करने का श्रेय मनुष्य को ही है।
प्रो. आर्थर लेविस के अनुसार, “आर्थिक विकास मानवीय प्रयत्नों का प्रतिफल है।” और यह उन लोगों की क्षमता उनके गुणों व दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है।
अर्थशास्त्री शुल्ज का कथन है कि, “हमारी आर्थिक प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण मानव पूंजी का विकास है। ऐसा किए बिना हमें व्यापक दरिद्रता एवं कठोर शारिरिक श्रम से मुक्ति नहीं मिल सकती।”
मानव पूंजी के सिद्धांत का मानना है कि यह एक पूरे के रूप में कर्मचारियों, नियोक्ताओं के लिए इन निवेशों के मूल्य, और समाज अंदाजा लगाना संभव है। मानव पूंजी सिद्धांत के अनुसार, लोगों में एक पर्याप्त निवेश एक बढ़ती अर्थव्यवस्था का परिणाम देगा।
उदाहरण के लिए, कुछ देशों ने अपने लोगों को एक अहसास है कि एक और अधिक उच्च शिक्षा आबादी अधिक कमाते हैं और अधिक खर्च करने की है, इस प्रकार अर्थव्यवस्था उत्तेजक जाता है से बाहर एक नि: शुल्क कॉलेज की शिक्षा प्रदान करते हैं। व्यवसाय प्रशासन के क्षेत्र में, मानव पूंजी सिद्धांत मानव संसाधन प्रबंधन का एक विस्तार है।