नारीवादी आन्दोलन एक जटिल परिघटना है, जिसकी कोई एक व्याख्या या परिभाषा रेखांकित नहीं की जा सकती है। नारीवादी आन्दोलन के केन्द्र में है।
नारी और उससे जुड़े विविध मुद्दे जो समय-समय पर विविध विचारों या सिद्धान्तों के रूप में सामने आते रहे और इसी आधार पर नारीवाद के कई रूप भी प्रकट हुए, जैसे - उदारवादी नारीवाद, मार्क्सवादी या समाजवादी नारीवाद, रेडिकल नारीवाद, मनोविश्लेषिक नारीवाद समतामूलक नारीवाद, वैयक्तिक नारीवाद, सांस्कृतिक नारीवाद, पर्यावरणीय नारीवाद आदि।
जब ‘नारीवाद’ की चर्चा की जाती है तो ये सभी विचार उसमें समाहित होते हैं इसीलिए नारीवादी आन्दोलन भी कभी-कभी एक विचार या कभी एकाधिक विचारों पर केन्द्रित रहते हैं।
धर्म, समाज और साहित्य में स्त्री विभिन्न रूपों में परिभाषित की गयी है।
कभी वह पुरुषों की अनुगामिनी और अबला एवं त्याग की मूर्ति बताई गयी है, तो कभी आवेगमयी चंचल जो तर्क के बन्धन को नहीं मानती है।
यह सभी परिभाषाएं उसके लिंग विशेष से जोड़ दी गयी हैं। इसके विपरीत पुरुषों को सदा शौर्य एवं वीर्य का प्रतीक माना जाता रहा है। यह लैंगिक परिभाषा ही नारीवाद का परमशत्रु है, और इस परिभाषा को बदलना ही उसका परम लक्ष्य है। पारिभाषिक दृष्टि से देखें तो नारीवाद एक विशिष्ट मतवाद है,
जो इस सिद्धान्त पर आधारित है कि स्त्रियों को इस पुरुष शासित समाज में निम्न स्थान दिया गया है। उसको भी पुरुषों के समान अधिकार और प्रतिष्ठा मिलनी चाहिये। नारीवाद उस प्रवृत्ति का द्योतक है, जो लिंग पर आधारित पारम्परिक शक्ति का पुनर्विन्यास चाहती है। वह उन सभी अन्यायों के खिलाफ संघर्ष के लिए एकमत है जो स्त्री पर उसकी भिन्न जैविकी के कारण हमेशा से थोपे जाते रहे हैं।
नारीवादियों की चिन्ता का घेरा बलात्कार, पत्नी प्रताड़ना, परिवार नियोजन, समान श्रम, समान वेतन, समान मताधिकार के साथ-साथ संसार के हर उस मुद्दे से सम्बन्धित स्त्रियों से है, जो हर बात, हर घटना में उन्हें प्रभावित करती है। वस्तुतः स्त्री, स्त्री होने के साथ-साथ मनुष्य भी है,
वह संसार की आधी आबादी है, अतः हर विषय में स्त्री का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नारीवाद सभी प्रकार की असमानता, दबाव, दमन हटाकर अन्तरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय रूप से समतामूलक न्यायिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व्यवस्था से युक्त समाज की स्थापना करना चाहता है।
अतः सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक मुद्दे उनके अपने हो जाते हैं।विभिन्न पारम्परिक कट्टरताओं स्त्री विरोधी रुढ़ियों, अत्याचारों और पुरुषों की मनमानियों के खिलाफ लम्बी प्रक्रिया चलाते हुए इस विचार के समर्थकों ने दुनिया के सामने एक प्रबल आन्दोलन खड़ा किया। पश्चिमी राष्ट्रों में नारीवादी आन्दोलन के इस प्रचंड उभार ने स्त्रियों की
सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक स्थिति उसकी भूमिका और नेतृत्व के प्रश्नों को सामने रखा। इससे उस प्रभुत्ववर्चस्व को चुनौती मिली। हालांकि विकसित राष्ट्रों की पितृसत्ताओं ने भी यदा-कदा स्त्रियों के विचारों को दबाने, घटाने और कुचलने की कोशिश की है।
लेकिन नारीवादी चेतना, संगठनात्मक आन्दोलनों की सक्रियता ने इनकी कोशिशों को अवश्य ही कमजोर किया।
नारीवाद का प्रथम चरण : शुरुआत
19वीं सदी के उत्तरार्ध और बीसवीं सदी के प्रारंभ में आधुनिक नारीवादी आंदोलन के प्रथम चरण की शुरुआत अमेरिका से शहरी औद्योगिक उदारवादी और समाजवादी राजनीति के माहौल में हुई। इसका मुख्य लक्ष्य महिलाओं के लिए समान अवसर उपलब्ध कराना था ।
जिसका केंद्र कानूनी मुद्दों सहित वोट का अधिकार था। औपचारिक रूप से इसकी शुरुआत सेनेका फॉल्स कन्वेंशन से हुई जहां महिला समानता के लिए लगभग 300 स्त्रियों और पुरुषों ने रैली की।
उसी दौरान सेनेका फॉल्स डिक्लेयरेशन का प्रारूप तय किया गया जिसमें नए आंदोलन की वैचारिकी और राजनीतिक रणनीति तय की गई। नारीवाद के पहले चरण में उन तरीकों को बदलने का व्यापक प्रयत्न किया गया, जिनसे नारीवादी डिस्कोर्स संचालित था।