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आपदा के दौरान बचाव के उपाय

आपदा के दौरान बचाव के उपाय

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको आपदा के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, हमारे दैनिक जीवन में अनेको प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है, फिर चाहे  वो  प्राकृति आपदा हो या मानव द्वारा क्रिएट की गई आपदा हो| दोस्तों यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो| 

1-प्रकृति में पारिस्थितकीय संतुलन

जीवधारियों के जीवन-यापन और कुशलता के लिये प्रकृति में भरपूर संसाधन हैं। परन्तु प्रकृति के अपने प्राकृतिक नियंत्रण साधन भी होते हैं। प्रयोग में आये संसाधनों को प्रकृति पुनः भर देती है, आधिक्यता को नियंत्रण में रखती है और यह सब प्राकृतिक रूप से जैवीय, भू-रासायनिक चक्र के द्वारा होता है।

इस प्रकार प्रकृति में संतुलन बना रहता है। इसमें खाद्य शृंखला और खाद्य जाल तथा अन्य प्राकृतिक घटनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इस प्रकार प्रकृति में प्राकृतिक संतुलन को नियमित किया जाता है। इसको पारिस्थितिकी संतुलन भी कहते हैं और आज के सन्दर्भ में प्रकृति का यह संतुलन मानव गतिविधियों के कारण गड़बड़ा गया है। 

2-प्राकृतिक आपदा

भारतीय उपमहाद्वीप प्राकृतिक आपदाओं के लिये सबसे अधिक संभावित क्षेत्र है। बाढ़, सूखा, चक्रवात और भूकम्प भारत में बार-बार और जल्दी-जल्दी आते ही रहते हैं। प्राकृतिक आपदा मानवनिर्मित आपदाओं जैसे आग आदि की पुनरावृति से मिलकर और बढ़ जाते हैं।

पर्यावरण के अवक्रमण से स्थलाकृति (टोपो = भूमि) परिवर्तित हो जाती है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के लिये असुरक्षा भी बढ़ जाती है। 1988 में कुल भूमि का 11.2% क्षेत्र ही बाढ़ संभावित था परन्तु 1998 तक यह भू-भाग बढ़ कर 37% हो गया।

अभी हाल ही में जिन चार सबसे बड़ी आपदाओं का सामना भारत को करना पड़ा है वह हैं- महाराष्ट्र के लातूर जिले में 1993 में आने वाला भूकम्प, 1999 में उड़ीसा का बड़ा चक्रवात, 2001 में गुजरात का भूकम्प, दिसम्बर 2004 में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में आया सुनामी।

बार-बार आने वाली इन आपदाओं में जान और माल की बहुत हानि होती है। भौतिक सुरक्षा, विशेषकर जहाँ असुरक्षा अधिक है, इन बाधाओं के कारण खतरे में पड़ गई है। प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता।

परन्तु उनसे होने वाले दुष्परिणामों और क्षति को कुछ सावधानियाँ अपनाकर रोका जरूर जा सकता है जैसे अधिक कुशल भविष्यवाणी और प्रभावशाली बचाव साधनों के लिये अच्छी तैयारी होना। ऊपर बताई गयी चारों प्रा

क आपदाओं से यह स्पष्ट रूप से पता चलती है कि हमें बहुबाधा से होने वाली जान माल की हानि को कम करने और पुनः सुचारु करने के लिये उचित योजनाओं और तैयारियों की आवश्यकता है।

आपदाओं के खतरे का प्रबन्धन वास्तव में विकास की समस्या है। पर्यावरण की जिस स्थिति को देश आज झेल रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबन्धन की तैयारी और योजना तैयार करनी हो आपदाओं के प्रकार

आपदा दो प्रकार की होती हैं- प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदा। उदाहरण के लिये- आग, दुर्घटनाएँ (सड़क, रेल या वायु) औद्योगिक दुर्घटनाएँ या महामारी मानव निर्मित आपदाओं के कुछ उदाहरण हैं।

प्राकृतिक और मानवनिर्मित दोनों ही आपदा भयानक विनाश करती हैं। मानव जीवन की क्षति, जीविका उपार्जन के साधनों, सम्पत्ति और पर्यावरण का अवक्रमण इन आपदाओं का परिणाम होता है।

आपदाओं से समाज के सामान्य क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इसका दुष्प्रभाव दीर्घकालीन होता है। भूकम्प, चक्रवात, बाढ़ और सूखा प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरण हैं।

प्राकृतिक और मानवनिर्मित दोनों ही आपदा भयानक विनाश करती हैं। मानव जीवन की क्षति, जीविका उपार्जन के साधनों, सम्पत्ति और पर्यावरण का अवक्रमण इन आपदाओं का परिणाम होता है।

(क) प्राकृतिक आपदा (Natural disaster)

कुछ आपदा प्रकृति में अपने आप ही पैदा हो जाती हैं जहाँ मनुष्य का कुछ हाथ या वश नहीं होता। इनका वर्णन नीचे किया जा रहा है-

(अ) बाढ़ (Flood)

नदियों या जलस्रोत और जलाशयों में अधिक जल आने से अचानक और अस्थाई रूप से किसी भूभाग का जलमग्न हो जाना, बाढ़ (Flood) कहलाता है।

3-आपदा से बचने के उपाय-

1-भूकम्प

1. अपनी इमारत की संरचना की इंजीनियरों द्वारा जाँच कराएँ और यदि सम्भव हो तो कमजोर भागों को मजबूत कराएँ।

2. घर में गीजर, बड़े फ्रेम वाले फोटो, आइने वगैरह ऐसे स्थानों पर ऊँचे न टांगें कि वे गिर कर किसी को घायल कर सकें।

3. भूकम्प के समय आपकी सबसे बढ़िया प्रतिक्रिया होगी कि निकल भागें, ओट लें अथवा ज्यों का त्यों खड़े रहें। जमीन पर लेट जाएँ, किसी मजबूत मेज या बेड के नीचे छिप जाएँ, घुटनों पर सिर रख लें, सिर हाथों से ढक लें। अगर उपलब्ध हो तो अपना सिर तकिए से ढक लें।

अगर पास में कोई मेज या बेड आदि ओट लेने को न हो तो दरवाजे के बीच खड़े हों और भूकम्प रुकने का इन्तजार करें। खिड़कियों, लटक रहे और गिर सकने वाली भारी वस्तुओं से दूर रहें। इमारत से बाहर तभी निकलें जब भूकम्प रुक जाए।

4. अगर आप घर से बाहर हैं तो बिजली के तारों, भवन की बाहरी दीवारों, गली, बत्तियों और पेड़ों से दूर रहें। किसी इमारत के पास न खड़े हों क्योंकि वह गिर सकती है। यदि आप किसी चलती गाड़ी में हैं तो इमारत, दीवार और पेड़ से दूर ठहर जाएँ।

2-बाढ़

1. उन ऊँची जगहों की पहचान करें जहाँ आप बाढ़ के समय पनाह ले सकते हैं।

2. जब तक बहुत जरूरी न हो, बाढ़ के पानी में न घुसें। पानी की गहराई का पता करें और किसी लाठी से जमीन की मजबूती मालूम कर लें। जहाँ बिजली के तार गिरे हों, उधर मत जाएँ।


3. अपनी गैस और बिजली की सप्लाई बन्द कर दें। बिजली के उपकरणों का स्विच बन्द कर दें।


4. बाढ़ के बाद अक्सर जल जनित रोग फैलते हैं। उनसे बचने के उपाय करें। 

3-आग

1. सुनिश्चित करें कि आपका मकान/पड़ोस ज्यादा से ज्यादा आग से सुरक्षित हो। सुनिश्चित करें कि आग बुझाऊ यन्त्र चालू हालत में हो। पड़ोस में न तो रिसने वाली गैस पाइप हो और न ही चटखी हुई बिजली की तारें। अनुमति से अधिक बिजली न खींचें। ज्वलनशील सामग्री सुरक्षित स्थान पर रखें।

सम्भव हो तो स्मोक डिटेक्टर लगाएँ जो धुआं निकलते ही संकेत देता है। ज्वलनशील पदार्थ बच्चों की पहुँच से दूर रखें।


2. घर/इमारत में आग से बचने का रास्ता तय करें।
3. अपने पड़ोस में आप सुरक्षा अभ्यास करें।
4. आग लगने पर अपने मुँह को भीगे तौलिये से ढकें ताकि धुआं असर न करे। भागते समय रेंग कर निकलें क्योंकि ऊपर जहरीली गैसें, धुआं हो सकता है।
5. अगर कपड़ों में आग लग जाए तो भागें नहीं। आग बुझाने के लिए जमीन पर लुढ़कें।
6. जब तक सुरक्षित होने की घोषणा न की जाए, तब तक इमारत में प्रवेश न करें।
7. जले भाग को ठंडक पहुँचाएँ और विशेष प्राथमिक चिकित्सा का लाभ उठाएँ।

4-समुद्री तूफान

1. समुद्री तूफान के मौसम से पहले ही दरवाजों-खिड़कियों की मरम्मत कराएँ, मकान की छत ठीक कराएँ, सूखे पेड़ हटवा दें और पुराने जर्जर भवन ढहा दें।
2. आपातकालीन किट तैयार रखें जिसमें पानी, खाना, टॉर्च, रेडियो, बैटरियाँ, आपातकालीन दवाएँ और औजार सुलभ हों।
3. तूफान आए तो मकान के अन्दर चले जाएँ या विशेष शरण स्थलों में पनाह लें।
4. सभी खिड़कियाँ-दरवाजे बन्द कर लें। टीन या नुकीले औजार जमीन पर पड़ा रहने न दें। जब तक खतरा न टले बाहर न निकलें।