हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको वैश्वीकरण का प्रभाव के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
वि-वैश्वीकरण (De-Globalisation) क्या है?
वि-वैश्वीकरण (De-Globalisation) शब्द का उपयोग आर्थिक और व्यापार जगत के आलोचकों द्वारा कई देशों की उन प्रवृत्तियों को उजागर करने के लिये किया जाता है जो फिर से उन आर्थिक और व्यापारिक नीतियों को अपनाना चाहते हैं जो उनके राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखें।
ये नीतियाँ अक्सर टैरिफ अथवा मात्रात्मक बाधाओं का रूप ले लेती हैं जो देशों के बीच श्रम, उत्पाद और सेवाओं के मुक्त आवागमन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
इन सभी संरक्षणवादी नीतियों का उद्देश्य आयात को महँगा बनाकर घरेलू विनिर्माण उद्योगों को रक्षा प्रदान करना और उन्हें बढ़ावा देना है।
अर्थव्यवस्था की दशा
1. साल 2003-08 के दौरान हमारे देश ने अब तक की सबसे शानदार विकास दर दर्ज की है। इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर औसतन 8-9 प्रतिशत सालाना रही है। परन्तु 2007-08 में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से शुरू हुयी महामन्दी का इस उछाह पर भी सीधा असर पड़ा है।
2008-12 के दौरान भारत की विकास (जीडीपी) दर 6.7-8.4 प्रतिशत के बीच झूलती रही है। 2012 के यूरो ज़ोन संकट के कारण तथा आंशिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के भीतर मैन्यूफेक्चरिंग एवं खेती में आए ठहराव की वजह से विकास दर और भी नीचे चली गयी है। 2011-12 की चौथी तिमाही में विकास दर 5.3 प्रतिशत रही जो तकरीबन नौ साल में सबसे कम विकास दर थी।
31 मार्च 2012 को खत्म हुयी तिमाही में मैन्यूफेक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर 0.3 प्रतिशत पर पहुँच गयी थी जो 2010-11 को इसी तिमाही में 7.3 प्रतिशत थी। कृषि उपज में भी कुछ ऐसा ही रुझान दिखाई दिया। इस तिमाही में कृषि उपज में केवल 1.7 प्रतिशत का इज़ाफा दर्ज किया गया।
जबकि 2010-11 की चौथी तिमाही में ये इज़ाफा 7.5 प्रतिशत था। संकटों में फँसीं विश्व अर्थव्यवस्था के साथ गहरे तौर पर बँधे होने की वजह से आने वाले दौर की तस्वीर बेहद अनिश्चित दिखाई देने लगी है।38
2. 1991 से अब तक औद्योगिक उत्पादन तिगुना हो गया है जबकि बिजली उत्पादन दुगने से भी ऊपर चला गया है। बुनियादी ढ़ाँचे का फैलाव भी प्रभावशाली रहा है। संचार साधनों तथा वायु, रेल एवं सड़क यातायात की गुणवत्ता में भारी विस्तार और सुधार आया है।39
3. 2009 में हमारे यहाँ 2700 से ज्यादा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ काम कर रही थीं।40
4. दिनोंदिन बहिर्मुखी होती जा रही अर्थव्यवस्था में देश के विदेशी कर्जे को भी उसके विदेशी मुद्रा भण्डार के साथ मिलाकर देखना जरूरी है। 1991 में विदेशी कर्जा 83 अरब डॉलर था जो 2008 में 224 अरब डॉलर पहुँच गया था।
यह कर्जा जीडीपी का लगभग 20 प्रतिशत था। पिछले कुछ सालों में यह कर्ज और तेजी से बढ़ा है। मार्च 2011 और मार्च 2012 के बीच ये 306 अरब डॉलर से बढ़कर 345 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। इसकी तुलना विदेशी मुद्रा भण्डार से की जा सकती है जो 1991 में लगभग शून्य पर पहुँच गया था और 2012 में 287 अरब डॉलर था।
पिछले कुछ समय में भारत से पूँजी के निर्गम की वजह से मुद्रा भण्डार में कुछ गिरावट आयी है। जुलाई 2011 में ये 314 अरब डॉलर था जो साल भर बाद 287 अरब डॉलर रह गया था।
भारतीय समाज पर वैश्वीकरण का प्रभाव
सामान्य व्यापार नीतियां
वैश्वीकरण ने एक सामान्य व्यापार नीति का विकास किया है जिसने अर्थव्यवस्था में समन्वय और विकास को बढ़ाने में मदद की है। यह भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए विशेष रूप से मददगार रहा है।
उदाहरण – विश्व व्यापार संगठन प्रशासन
प्रौद्योगिकी विकास
वैश्विक कंपनियों के बीच सहभागिता ने तकनीकी समाधानों के उद्धभव और विकास में मदद की है। इससे समाज को उल्लेखनीय रूप से आधुनिक बनाने में मदद मिली है।
उदाहरण : उद्योगों में स्वचालन (ऑटोमेशन )
सामाजिक सुधार
पश्चिमी दुनिया के सामाजिक रीति-रिवाजों और विचारों के साथ पारस्परिक संवाद ने वास्तव में भारतीय समाज में क्रांति ला दी है। वैश्वीकरण के माध्यम से बुरी प्रथाओं को काफी हद तक समाप्त कर दिया गया है।
उदाहरण : लिंग समानता
शासन सुधार
लोकतंत्र ,वैश्वीकरण का सबसे बड़ा उपहार रहा है। लोकतंत्र के जुड़े विचार जैसे समानता, न्याय आदि बाहरी दुनिया के साथ संवाद के कारण संभव हो पाए हैं।
उदाहरण : सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
पारिवारिक मूल्यों की हानि
सबसे बड़ा दोष पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों का सिकुड़ना रहा है। ये वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप एक नकारात्मक रुप में परिवर्तित हो गए हैं।
उदाहरण : तलाक में वृद्धि
बाल श्रम
रोजगार सृजन और आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि ने रोजगार को अल्पवयस्क के लिए भी आसान बना दिया है। इससे बाल श्रम में वृद्धि हुई है।