Cart (0) - ₹0
  1. Home
  2. / blog
  3. / vastu-vinimay-kya-hai-hi

वस्तु-विनिमय क्या है?

वस्तु-विनिमय क्या है?

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको वस्तु-विनिमय के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

वस्तु-विनिमय का अर्थ

एक वस्तु से दूसरी वस्तु के प्रत्यक्ष विनिमय को ही ‘वस्तु विनिमय’ कहते हैं। प्रो जेवन्स के शब्दों में,“अपेक्षाकृत कम आवश्यक वस्तु से अधिक आवश्यक वस्तुओं का आदान प्रदान ही वस्तु-विनिमय है।”

वस्तु विनिमय की कठिनाइयां

यह निम्न प्रकार से हैं -

दोहरे संयोग का अभाव

वस्तु विनिमय प्रणाली मैं मनुष्य ऐसे व्यक्तियों को खोजता है।जो उनकी अतिरिक्त वस्तु लेकर उसे इच्छित वस्तु दे उदाहरण के लिए माना नकुल के पास एक किताब है।वह उसके बदले में दो पेन लेना चाहता है।तो उसे ऐसे व्यक्ति को ढूंढना होगा जो किताब देखा दो पेन देना चाहता हूं यह एक कठिन कार्य है।

इसमें उसका समय तथा शक्ति व्यर्थ नष्ट होंगे यह भी हो सकता है।कि उसे ऐसा व्यक्ति ही ना मिले एक विकसित अर्थव्यवस्था में जिसमें 1 दिन में लाखों व्यक्ति वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय करते हो ऐसे लोगों का मिलना लगभग असंभव सा ही है।

मूल्यमापन का अभाव

वस्तु विनिमय प्रणाली और विनिमय की दर निश्चित करना बहुत कठिन था।इसका कारण वस्तुओं की संख्या की निरंतर भरने जाना था उदाहरण के लिए गाय के बदले में कितना कपड़ा कितना गेहूं कितनी भूमि देनी चाहिए यह निश्चित करना है या याद रखना अत्यंत कठिन कार्य था।

मूल्य संचय का भाव

अधिकांश वस्तुएं शीघ्र नष्ट हो जाती है वस्तु विनिमय में ऐसी वस्तुओं का संचय करके अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता इसके मुख्य कारण है कुछ वस्तुएं न स्वान होती हैं।कुछ वस्तुएं अधिक स्थान गिरती हैं वस्तुओं के मूल्य में निरंतर परिवर्तन होता है।तथा वस्तुओं में तरलता का अभाव पाया जाता है।

स्थान परिवर्तन की कठिनाई

प्राचीन काल में परिवहन के साधनों के अभाव के कारण वस्तुओं की स्थानांतरण में बहुत अधिक कटाई होती है।यदि व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना जाता था तो उसके लिए अपनी संपत्ति को साथ ले जाना संभव नहीं था।

भावी भुगतान की सुविधा

आज अनेक वस्तुओं का क्रय विक्रय हम भविष्य में भुगतान करने के आधार पर करते हैं परंतु वस्तु विनिमय प्रणाली में यह संभव नहीं था उसमें तो एक वस्तु के बच्चे में दूसरी वस्तु उसी समय देनी पड़ती थी और तो विनिमय होने की दशा में उधार लेन-देन का प्रचलन नहीं था।