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लोकतंत्र क्या है? | प्रकार

लोकतंत्र क्या है? | प्रकार

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको लोकतंत्र के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

लोकतंत्र की परिभाषा

(लोकतन्त्र) (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन",) या प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक संदर्भ में किया जाता है, किन्तु लोकतंत्र का सिद्धान्त दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतंत्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण बनाती हैै।

लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसके अंतर्गत जनता अपनी मर्जी से चुनाव में आए हुए किसी भी दल को वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है ,तथा उसकी सत्ता बना सकती है। लोकतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है ,लोक + तंत्र लोक का अर्थ है जनता तथा तंत्र का अर्थ है शासन

लोकतंत्र के प्रकार

सामान्यत: लोकतंत्र-शासन-व्यवस्था दो प्रकार की मानी जानी है :

(1) विशुद्ध या प्रत्यक्ष लोकतंत्र तथा

(2) प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र

वह शासनव्यवस्था जिसमें देश के समस्त नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राज्यकार्य संपादन में भाग लेते हैं प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहलाती हैं। इस प्रकार का लोकतंत्र में लोकहित के कार्यो में जनता से विचार विमर्श के पश्चात ही कोई फैसला लिया जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो ने ऐस लोकतंत्र को ही आदर्श व्यवस्था माना है।

इस प्रकार का लोकतंत्र प्राचीन यूनान के नगर राज्यों में पाया जाता था। वर्तमान में स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र चलता है। यूनानियों ने अपने लोकतंत्रात्मक सिद्धांतों को केवल अल्पसंख्यक यूनानी नागरिकों तक ही सीमित रखा। यूनान के नगर राज्यों में बसनेवाले दासों, विदेशी निवासियों तथा स्त्रियों को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया था।

आजकल ज्यादातर देशों में प्रतिनिधि लोकतंत्र या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का ही प्रचार है जिसमें जनभावना की अभिव्यक्ति जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा की जाती है।

आजकल ज्यादातर देशों में प्रतिनिधि लोकतंत्र या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का ही प्रचार है जिसमें जनभावना की अभिव्यक्ति जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा की जाती है।

जनता का शासन व्यवस्था और कानून निर्धारण में कोई योगदान नहीं होता तथा जनता स्वयं शासन न करते हुए निर्वाचन पद्धति के द्वारा चयनित शासन प्रणाली के अंतर्गत निवास करती है। इस प्रकार की व्यवस्था को ही आधुनिक लोकतंत्र का मूल विचार बताने वालों में मतभेद है।

लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं

1.लोकतंत्र आम लोगों की भलाई का मनोरथ रखता है- 

लोकतंत्र लोगों का, लोगों द्वारा और लोगों के लिए शासन है। लोकतंत्र में, प्रभुसत्ता लोगों के हाथों में होती है। इसलिए जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खुद ही शासक होती है। लोकतंत्र का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण जनता की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रगति है। लोकतंत्र एक ऐसी प्रणाली है जिसमें कोई व्यक्ति या किसी विशेष वर्ग के कल्याण के लिए प्रशासन चलाया नहीं जाता है, बल्कि संपूर्ण जनता के कल्याण के लिए प्रयास किए जाते हैं।

2.यह समानता के सिद्धांत पर आधारित है - 

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का मुख्य सिद्धांत समानता है। इसका मतलब केवल राजनीतिक समानता नहीं है, बल्कि आर्थिक और समाजिक समानता भी है। लोकतंत्र में जाति, संपत्ति, धर्म या रंग के आधार पर राजनीतिक क्षेत्र में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है, बल्कि सभी को विकसित होने के लिए समान अधिकार दिए जाते हैं।

3.मजबूत और कुशल शासन - 

लोकतंत्र का शासन मजबूत और कुशल होता है। लोकतंत्र में, शासकों को जनता का समर्थन प्राप्त होता है, जिसके कारण सरकार अपने निर्णयों को दृढ़ता से लागू करती है। शासन कुशलतापूर्वक शासन चलाते है।

4-उदारवादी सरकार - 

लोकतंत्र में सरकार उदारवादी है जिसके द्वारा देश की बदलती परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक सुधार संभव हो सकते हैं।

5-कानूनों का अधिक पालन -

 लोकतंत्र में, जनता के चुने हुए प्रतिनिधि कानून का निर्माण करते है। दूसरे शब्दों में, लोग अपने ही प्रत्ख रूप में बनाए कानूनों के अधीन हैं। यह स्वाभाविक है कि, जनता की इच्छा अनुसार जनता के चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा बनाए कानूनों की आज्ञा का पालन ज्यादा हो।

लोकतंत्र के गुण

1.जनहित :- लोकतंत्र शासन को जनता के कल्याण, विकास व सुविधा का प्रतीक माना जाता है। लोकतंत्र में शासन की नीतियाँ, कार्यक्रमों, आदेशों के माध्यम से सर्वसाधारण का अधिक- से-अधिक जनहित करने का प्रयास किया जाता है।

2.राजनीतिक प्रशिक्षण :- लोकतंत्र, सर्वसाधारण को राजनीतिक प्रशिक्षण भी देता है। लोकतंत्र में संचार के साधनों, प्रेस, दूरदर्शन आदि का प्रयोग व्यापक तरीके से किया जाता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दल, राजनेता, दबाव समूह और संगठन सक्रिय रूप से कार्य करते हैं।

राजनीतिक दल जनता की इच्छाओं, आकांक्षाओं को सरकार के सामने रखते हैं। सरकार इन पर नीतियाँ बनाते हुए समस्त राजनीतिक गतिविधियों के बारे में जानकारी जनता को उपलब्ध करवाती है। इसमें समानता स्थापित करने के प्रयास किये जाते हैं।

4.नैतिकता का विकास :- लोकतंत्र में राष्ट्रीय चरित्र व नैतिकता का विकास नागरिकों में होना चाहिए। राष्ट्रप्रेम, देश – भक्ति, त्याग, बलिदान, सेवा और सहनशीलता आदि गुणों का विकास नागरिकों को राष्ट्र से जोड़े रखने का प्रयास करता है। लोकतंत्र उच्च गुणों का विकास करने का प्रयास करता है। नैतिकता लोकतंत्र को भ्रष्ट होने से रोकती है। नैतिकता से नागरिकों में आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। लोकतंत्र में अच्छे आदर्शों का संकल्प दोहराया जाता है।

4-लोकतंत्र मैं क्रांति-लोकतंत्र की क्रांति संभवनाए बहुत कम होती है क्योंकि लोकतंत्रर में जनता को विभिन्नन माध्यमों द्वारााा अपनी आवाज और विभिन्न्न माध्यमों अपनी आवाज को उठाने की स्वतंत्रा होती है।

5-लोकतंत्र राष्ट्रवाद-लोकतंत्र राष्ट्रवाद तथा अंतरराष्ट्री्रीयवाद मैंं भी समन्वय स्थापित करता है।

लोकतंत्र के दोष

1.राजनीति का राजनीतिकरण :- लोकतंत्र में राजनेता, जिन आदर्शो, मूल्यों की स्थापना के लिए राजनीति में आता है। वह शासन व्यवस्था में आने के बाद राजनीतिकरण का शिकार हो जाता है। एक बार शासन व्यवस्था में आने के बाद शासन व्यवस्था से अलग नहीं होना चाहता है। वह जीवनपर्यन्त लोकतंत्र से जुड़े रहना चाहता है। जनता के आदर्शों, मूल्यों के लिए दिखावे का व्यवहार करता है। जबकि सार्वजनिक जीवन में वह कुछ करना चाहता है। वह अपने आप को राजनीतिकरण के कारण असमर्थ पाता है। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र सबका नहीं होकर सीमावृहद, अर्थों में सिमट कर रह जाता है। लोकतंत्र में सार्वजनिक राजनीति के स्थान पर व्यक्तिकरण की राजनीति बढ़ती चली जाती है। यही इसके दोषों को उत्पन्न करती चली जाती है।

2. व्यावहारिक सामाजिक समानता का अभावः – जिन देशो में लोकतंत्र की स्थापना हुई, उनमें अधिकांश रूप से यह देखने को मिलता है कि व्यावहारिक रूप से सामाजिक समानता कायम नहीं रहती है। ऊंच – नीच, गरीबी – अमीरी, वर्ग – संघर्ष, तरीके और आर्थिक असमानताओं के कारण सामाजिक समानता कभी स्थापित नहीं होती है।

3. अयोग्य व्यक्तियों का शासन : – अरस्तू ने लोकतंत्र को विकृत रूप मानते हुए इसे अयोग्य शासन माना गया था। लोकतंत्र में जो व्यक्ति, नेता, राजनीतिज्ञ शामिल होते हैं वे अयोग्य इसलिए माने जाते हैं कि उन्हें राजनीति का सघन प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता है। केवल मात्र साधारण योग्यता के आधार पर शासन व्यवस्था में भर्ती होना ही, अयोग्यता का द्योतक है। लोकतंत्र में धन, शक्ति के आधार पर अयोग्य व्यक्ति शासन में प्रवेश करते हैं इसलिए लोकतंत्र में अयोग्य व्यक्तियों की भीड़ पायी जाती है। लेकी ने भी इस सम्बन्ध में लिखा है,

4-संकटकालीन स्थिति-संकटकालीन स्थिति का तत्कालीन समाधान करने में लोकतंत्र अधिक सफल नहीं रहता है क्योंकि लोकतंत्र मेंंक्षनिर्णय लेने में काफी समय नष्ट हो जाता नष्ट होमय नष्ट हो जाता है।