हम जानेंगे की कूलॉम नियम (Coulam’s law) क्या होता है चूंकि हम पढ़ चुके हैं कि आवेश दो प्रकार के होते हैं - धन आवेश और ऋण आवेश। सजातीय अवेशो (like charges) के मध्य प्रतिकर्षण (repulsion) तथा विजातीय आवेशों (unlike charges) के मध्य आकर्षण बल लगता है।
इस बल का परिमाण ज्ञात करने के लिए सन 1785 में प्रयोगों के आधार पर कूलॉम ने एक नियम प्रतिपादित किया जिसके अनुसार दो बिंदु आवेशों के मध्य लगने वाला आकर्षण या प्रतिकर्षण बल (Repulsion force), उन दोनों आवेशों के परिमाण के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती (Sequentially) तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रानुपाती (Inversely) होता है। यह बल उन आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश लगता है। इसे कूलॉम का व्युत्क्रम वर्ग नियम (Inverse square rule) कहते हैं।
कूलॉम के नियम की सीमाएं
- कूलॉम का नियम केवल बिंदु आवेशों (Point charges) के लिए ही सत्य है, परंतु इस नियम को विपरीत आवेशों के लिए भी समाकलन विधि (Integration method) द्वारा लागू किया जा सकता है।
- यह नियम केवल विरामावस्था (Period of rest) में स्थित आवेशों के लिए ही सत्य है गतिशील आवेशों के मध्य लगने वाला बल (force) अन्य नियमों द्वारा दिया जाता है।
- कूलॉम का नियम, आवेशों के मध्य अत्यधिक दूरी (किलोमीटर की कोटि) से अत्यल्प दूरी (Short distance) (10⁻¹⁵ मीटर की कोटि) तक सत्य है। अतः इस बल के आधार पर परमाणु के इलेक्ट्रॉनों का नाभिक के साथ बंधन (bond) तथा दो या दो से अधिक परमाणुओं के परस्पर संयोग से अणु (particle) की रचना समझायी जा सकती है। यह नियम आवेशों के मध्य दूरी 10⁻¹⁵ मीटर (10⁻¹⁵ m) से कम होने पर लागू नहीं होता।
- स्मरणीय है कि नाभिक के अंदर (r < 10⁻¹⁵ मीटर) उपस्थित कणों प्रोटॉन-प्रोटॉन, प्रोटॉन-न्यूट्रॉन तथा न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन के मध्य आकर्षण लगता है। इस बल को नाभिकीय बल कहते हैं। इस बल का कूलॉम के नियम से कोई संबंध (connection) नहीं होता है।
C.G.S पद्धति
C.G.S. पद्धति में यदि बल का मात्रक डायन, दूरी का मात्रक सेमी, आवेश का मात्रक स्थैत-कूलॉम हो तथा दोनों आवेश निर्वात (अथवा वायु) में स्थित हो तो नियतांक ᵅ का मान 1 होता है। अतः निर्वात (या वायु) में स्थित दो बिंदु आवेशों के मध्य लगने वाला बल S.I. पद्धति में न्यूटन तथा C.G.S. पद्धति में डायन होता है।
विद्युत बल की दिशा
यदि आवेश Q₁ व Q₂ सजातीय है, तो आवेश Q₁ के कारण आवेश Q₂ पर बल F₂₁ की दिशा Q₁ से Q₂ को मिलाने वाली रेखा की दिशा में होगी तथा आवेश Q₂ के कारण आवेश Q₁ पर बल F₁₂ की दिशा Q₂ से Q₁ को मिलाने वाली रेखा की दिशा में होगी।
लेकिन यदि Q₁ या Q₂ में से कोई एक आवेश धनात्मक हो तथा दूसरा आवरण ऋण आत्मक हो (अर्थात आवेश विजातीय हो), तो आवेश Q₁ के कारण आवेश Q₂ पर बल F₂₁ की दिशा Q₂ से Q₁ को मिलाने वाली रेखा की दिशा में होगी तथा आवेश Q₂ के कारण आवेश Q₁ पर बल F₁₂ की दिशा Q₁ से Q₂ को मिलाने वाली रेखा की दिशा (direction) में होगी अतः बल की दिशा को प्रदर्शित (Displayed) करने के लिए कूलॉम के नियम में लिखा जाता है।
कूलॉम के नियम का सदिश रूप
यदि आवेश Q₁ से Q₂ को मिलाने वाली दिशा में एक एकांक सदिश r₁₂ है तथा आवेश Q₂ से Q₁ को मिलाने वाली दिशा में एकांक सदिश r₂₁ है तो समीकरण (1.4) को सदिश रूप में अग्र प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है।
कूलॉम के नियम का महत्त्व
- यह नियम प्रयोग के आधार पर प्राप्त हुआ है, अतः यह एक प्रायोगिक (practical) नियम है।
- दो बिंदु आवेशों (Point charge) के बीच लगने वाले बल पर उनके पास स्थित अन्य आवेशों (charge) की उपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- दो आवेशित कणों (Charged particles) के बीच लगने वाला विद्युत बल उन कणों के द्रव्यमान (mass) पर निर्भर नहीं करता है।
- आवेशित कणों के बीच वायु के स्थान पर परावैद्युत माध्यम (परावैद्युतांक K) भरा होने पर उनके बीच लगने वाला विद्युत बल घट जाता है (1/K गुना रह जाता है)।
- कूलॉम का नियम नाभिक के अंदर स्थित आवेशित कणों (particles) पर लागू नहीं होता है।
- विद्युत बल, केंद्रीय बल है।