oersted experiment in hindi इस नियम की खोज सर्वप्रथम सन 1820 में डेनमार्क के प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने ओर्स्टेड ने प्रयोग द्वारा पाया कि किसी चालक में धारा बहाने से उसके आस-पास चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
ओर्स्टेड का प्रयोग क्या है?
ओर्स्टेड ने बताया कि जिस प्रकार चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही हो तो उसके चारों और भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
ओर्स्टेड ने अब से पहले एक बैटरी ली और उन्होंने बैटरी के धन और ऋण दोनों सिरों पर एक चालक तार लगाकर एक परिपथ बनाया जो कि गोल घेरे जैसा था।
दूसरे शब्दों में इसे कहे तो उन्होंने एक बैटरी ली और एक तार लिया तार के दोनों सिरे धन और ऋण दोनों बैटरी में लगा दिए और उन्होंने दोनों तार आपस में जोड़ दिए व उसके बीच कंपास धर दिया।
दो धन और ऋण के तार आपस में जुड़े हुए थे और उनको एक गोल घेरे टाइप में बनाया गया था उसके बीच कंपास धरा था और कंपास में दक्षिण और उत्तर दिशाएं होती है, तो वहा कैंपस का सुई डगमगाने लगा ये इसलिए डगमगा रहा था क्योंकि वहा एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो गया था। अतः इसी को ओर्स्टेड का प्रयोग कहते हैं
ओर्स्टेड का प्रयोग से क्या सिद्ध होता है?
- जब तार को आपस में नहीं जोड़ा जाता है तो वहां एक चुंबकीय क्षेत्र नहीं बनता है इसके कारण, तो इसके कारण कंपास की सुई डगमगाती नहीं है।
- तार को आपस में जोड़ दिया जाता है और वहां चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण कंपास की सुई डगमगाने लगती है।
- अतः यह स्पष्ट होता है कि ओर्स्टेड के प्रयोग द्वारा बेट्री के धन और ऋण दो तारों को आपस में जोड़कर तारो के बीच कंपास रखने पर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसके कारण कंपास की सुई डगमगाती है।
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