हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको कार्य तथा ऊर्जा के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
कार्य किसे कहते हैं?
विज्ञान में हम उन सब कारणों को कार्य कहते हैं, जिनमें किसी वस्तु पर बल लगाने से वस्तु की स्थिति में परिवर्तन हो जाता है।
किसी वस्तु पर जितना अधिक बल लगाया जाता है तथा जितना अधिक वस्तु की स्थिति में विस्थापन होता है, कार्य उतना ही अधिक होता है। अत: कार्य की माप लगाये गये बल तथा बल की दिशा में वस्तु के गुणनफल के बराबर होती है। अर्थात्
कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन
यदि किसी पिण्ड पर F बल लगाने से पिण्ड में बल की दिशा में ΔS विस्थापन हो तो बल द्वारा किया गया कार्य
W = F x ΔS
यदि बल F, पिण्ड के विस्थापन की दिशा में होकर उससे θ कोण बना रहा हो, तब किया गया कार्य
W = F Cosθ × ΔS
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उर्जा किसे कहते हैं?
जब किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है, तो कहा जाता है कि वस्तु में ऊर्जा है, जैसे-गिरते हुए हथौड़े, चलती हुई बन्दूक की गोली, तेज गति से बहता झरना, ऊष्मा इंजन, विद्युत सेल आदि ऐसी वस्तुयें हैं, जो कार्य कर सकती हैं। अत: इनमें ऊर्जा व कार्य एक दूसरे के समरूप हैं। ऊर्जा का मात्रक भी जूल होता है। यह दो प्रकार की होती है –
- गतिज ऊर्जा: बन्दूक चलाने पर उसकी नली से निकलने वाली गोली में इतनी शक्ति होती है कि वह सामने की दीवार को भेद सकती है। इस उदाहरण में गति प्रदान कर द्रव्यमान को ऊर्जा दी गई।
द्रव्यमान में गति के कारण ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं।
माना m द्रव्यमान की कोई वस्तु v वेग से गतिमान है तो –
गतिज ऊर्जा = [latex]frac { 1 }{ 2 } m{ v }^{ 2 }[/latex]
गतिज ऊर्जा = [latex]frac { 1 }{ 2 }[/latex]द्रव्यमान/(वेग)2
गजित ऊर्जा सदैव धनात्मक होती है।
- स्थिजित ऊर्जा: किसी वस्तु की विशेष अवस्था अथवा स्थिति के कारण उसमें कार्य करने की जो क्षमता होती है, उसे वस्तु की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। उदाहरणस्वरूप दवी हुई स्प्रिंग, घड़ी में चाबी भरना, पृथ्वी से कुछ ऊंचाई पर स्थित वस्तु आदि में स्थितिज ऊर्जा संचित होती है।
स्थितिज ऊर्जा के कई रूप होते हैं, जैसे- प्रत्यास्थ स्थितिज उर्जा, गुरुत्वीय स्थितिज उर्जा, वैद्युत स्थितिज उर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि।
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गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा
जब वस्तु को ऊपर उठाते हैं, तो गुरुत्व बल के विरुद्ध किया गया कार्य ही उसमें ऊर्जा के रूप में एकत्र हो जाता है। किसी वस्तु की ऊँचाई पर ले जाने में उसमें जो ऊर्जा आ जाती है, उसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
यदि m द्रव्यमान का पिण्ड पृथ्वी तल से h ऊंचाई पर स्थित है, तो वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा = mgh जहाँ g गुरुत्वीय त्वरण है।
ऊर्जा का रूपान्तरण
भौतिक जगत में सभी प्रक्रियाओं में किसी न किसी प्रकार ऊर्जा का एक या अधिक रूपों में रूपान्तरण होता रहता है। उदाहरणार्थ, जब दो गतिमान वस्तुयें एक-दूसरे से टकराती हैं तो उनमें ध्वनि व ऊष्मा उत्पन्न होती है। ध्वनि व ऊष्मा भी ऊर्जा के एक रूप हैं। जब किसी वस्तु को बहुत अधिक गर्म करते हैं तो उसमें प्रकाश उत्पन्न होता है, जो कि ऊर्जा का एक रूप है। वैद्युत ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा की ऊर्जा के रूप है, जिनका एक-दूसरे में रूपान्तरण किया जा सकता है।