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आपदा का परिदृश्य

आपदा का परिदृश्य

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको आपदा के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

1-आपदाओं के प्रकार

आपदा दो प्रकार की होती हैं- प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदा। उदाहरण के लिये- आग, दुर्घटनाएँ (रेल या वायु) औद्योगिक दुर्घटनाएँ या महामारी मानव निर्मित आपदाओं के कुछ उदाहरण हैं। प्राकृतिक और मानवनिर्मित दोनों ही आपदा भयानक विनाश करती हैं।

मानव जीवन की क्षति, जीविका उपार्जन के साधनों, सम्पत्ति और पर्यावरण का अवक्रमण इन आपदाओं का परिणाम होता है। आपदाओं से समाज के सामान्य क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इसका दुष्प्रभाव दीर्घकालीन होता है। भूकम्प, चक्रवात, बाढ़ और सूखा प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरण हैं।

आपदा दो प्रकार की होती हैं- प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदा। उदाहरण के लिये- आग, दुर्घटनाएँ (, रेल या वायु) औद्योगिक दुर्घटनाएँ या महामारी मानव निर्मित आपदाओं के कुछ उदाहरण हैं।

(क) प्राकृतिक आपदा (Natural disaster)

कुछ आपदा प्रकृति में अपने आप ही पैदा हो जाती हैं जहाँ मनुष्य का कुछ हाथ या वश नहीं होता। इनका वर्णन नीचे किया जा रहा है-

(अ) बाढ़ (Flood)

नदियों या जलस्रोत और जलाशयों में अधिक जल आने से अचानक और अस्थाई रूप से किसी भूभाग का जलमग्न हो जाना, बाढ़ (Flood) कहलाता है।

ii) प्रभाव

हताहत (घायल)
डूबने, गम्भीर चोट, या महामारियों जैस डायरिया, हैज़ा, पीलिया या वाइरल संक्रमण के कारण मनुष्य और पशुओं की मृत्यु बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की सामान्य समस्या है।

बाढ़ के समय कुएँ तथा पेयजल के अन्य स्रोत भी जलमग्न हो जाते हैं जिसके कारण शुद्ध पेयजल की बहुत कमी हो जाती है। कभी-कभी लोगों को मजबूरी में बाढ़ का संक्रमित जल ही पीना पड़ता है जिससे गम्भीर रोग पैदा हो जाते हैं।

इमारतों की क्षति (संरचनात्मक क्षति)

बाढ़ के दौरान मिट्टी के घर और कमजोर नींव पर खड़े भवन ढह जाते हैं और जान माल के लिये खतरा और क्षति पैदा हो जाती है। सड़कों, रेल पटरियों, बांधों, स्मारकों, फसलों और पशुओं की भी भारी हानि होती है। बाढ़ों के कारण बड़े-बड़े पेड़ भी उखड़ जाते हैं जिसके कारण भूस्खलन और मृदा-अपरदन हो सकता है।

माल, सामान, सामग्री की क्षति

घरेलू सामान के साथ खाद्य पदार्थ, बिजली के उपकरण, फर्नीचर, कपड़े सब बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं। भूमि पर भंडारित सामान जैसे - अनाज, मशीनी उपकरण, गाड़ियाँ, पशुधन, साल्ट पैन (salt pan) और मछली के शिकार की नौकाएँ पानी में डूब कर बेकार हो जाती हैं।

उपयोगी वस्तुओं की क्षति

उपयोगी वस्तुएँ अर्थात जल-आपूर्ति, वाहितमल व्यवस्था (sewerage), संचार-व्यवस्था, बिजली व्यवस्था और परिवहन व्यवस्था, रेलमार्ग सभी बाढ़ के कारण खतरे में पड़ जाते हैं।

फसलों की क्षति

मानव और पशुधन की क्षति के साथ बाढ़ के कारण खेतों में खड़ी लहलहाती तैयार फसल की भी भारी हानि होती है। बाढ़ का पानी भंडारित अनाज के साथ काट कर रखी फसल को भी नष्ट कर देता है। बाढ़ के पानी से मिट्टी की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है। खेत के ऊपर की उपजाऊ मिट्टी पानी के साथ बह जाने से खेत बंजर हो जाते हैं। समुद्री तटों पर स्थित खेतों में समुद्र का खारा पानी भर जाने से वे कृषि के लिये अनुपयोगी हो जाते हैं।

बाढ़ों का नियंत्रण

बाढ़ों को कई प्रकार से नियंत्रित किया जा सकता है। वृक्षारोपण करके (वृक्ष लगा कर) बहकर आने वाले जल की मात्रा कम करने से बाढ़ के पानी का स्तर भी घट जायेगा। जंगल बारिश के पानी को भूमि के अंदर जाने का रास्ता देते हैं। इससे भूमिगत जल स्तर पुनः स्थापित होता है और पानी का व्यर्थ बहना कम हो जाता है।

बांधों के निर्माण से पानी का भंडारण होता है और बाढ़ के जल में कमी आती है। बांध पानी को एकत्रित कर सकते हैं, इस कारण पानी नीचे नदियों तक नहीं पहुँच पाता। यदि बांध में एकत्रित पानी सीधा नदियों तक पहुँचे तो बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। बांधों से पानी को नियंत्रित रूप में छोड़ा जाता है। नदी/नहर/नालों से गाद निकालकर उन्हें गहरा करने से और तटों को चौड़ा करने से उनमें अधिक पानी भरने की धारण क्षमता बढ़ जाती है।

(iii) प्रबन्धन

यदि बाढ़ नियंत्रण की उचित योजना और उचित प्रबन्धन तरीकों का नियोजित ढंग से पालन करें तो बाढ़ से होने वाली क्षति और जान-माल की हानि को काफी हद तक रोका जा सकता है और कम किया जा सकता है।

आपदाओं का कारण क्या है?

  • वर्तमान समय में समुद्रों के तापमान के बढ़ने से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्र बढ़ रही है, जिससे कुछ स्थानों पर तो अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जबकि अन्य स्थानों पर सूखे का भयावह रूप देखने को मिलता है।  इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे क्षेत्र भी होते हैं जहाँ बाढ़ तथा सूखे की स्थिति एक साथ उत्पन्न हो जाती है| अतः आपदा का प्रभाव बहुत विध्वंसकारी होता है।  
  • विश्व में बढ़ते समुद्री स्तर को मापने के लिये टॉपेक्स/पोसीडॉन (TOPEX/Poseidon) नामक सबसे पहली सेटेलाइट को आज से 25 वर्ष पूर्व लॉन्च किया गया था और तब से लेकर अब तक किये गए समुद्री स्तरों के मापन से इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रतिवर्ष समुद्र के वैश्विक स्तर में 3.4 मिलीमीटर की वृद्धि हो रही है।  अतः इन 25 वर्षों के दौरान इसमें कुल 85 मिलीमीटर की वृद्धि हुई है।  समुद्रों के तापमान में होने वाली वृद्धि और उनका गर्म होना विश्व स्तर पर उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। 

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • आधुनिक युग का भीषणतम तूफान वर्ष 1201 में मिस्र एवं सीरिया में आया था, जिसमें 10 लाख लोग मारे गए थे। इसके पश्चात् सन् 1556 में चीन में आए भूकंप में 8.50 लाख व्यक्तियों की मौत हुई थी।
  • भारत का ज्ञात भीषणतम भूकंप सन् 1737 में कलकत्ता में आया था, जिसमें 3 लाख लोग हताहत हुए थे। 
  • रूस, चीन, सीरिया, मिस्र, ईरान, जापान, जावा, इटली, मोरक्को, तुर्की, मैक्सिको, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, यूनान, इण्डोनेशिया तथा कोलम्बिया इत्यादि भूकंप के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं।
  • हिमालय क्षेत्र आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि इस क्षेत्र की भीतरी चट्टानें निरंतर उत्तर की ओर खिसक रही हैं। विश्वभर में 10 ऐसे खतरनाक ज्वालामुखी हैं जो एक बड़े क्षेत्र को तबाह कर सकते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय-आपदा शमन रणनीति (यूएनआईएसडीआर) के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं के मामले में चीन के बाद दूसरा स्थान भारत का है। 
  • भारत में आपदाओं की रूपरेखा मुख्यतः भू-जलवायु स्थितियों और स्थालाकृतियों की विशेषताओं से निर्धारित होती है और उनमें जो अंतनिर्हित कमज़ोरियाँ होती हैं उन्हीं के फलस्वरूप विभिन्न तीव्रता की आपदाएँ वार्षिक रूप से घटित होती रहती हैं। आवृति, प्रभाव और अनिश्चितताओं के लिहाज़ से जलवायु-प्रेरित आपदाओं का स्थान सबसे ऊपर है।
  • भारत के भू-भाग का लगभग 59 प्रतिशत भूकंप की संभावना वाला क्षेत्र है। हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र, पूर्वोत्तर, गुजरात के कुछ क्षेत्र और अंडमान निकोबार द्वीप समूह भूकंपीय दृष्टि से सबसे सक्रिय क्षेत्र हैं।