आपदा के पश्चात पीड़ित पक्ष पर गहन कुप्रभाव दिखाई देता है। आपदा पीड़ितों के साथ राहत कार्य करते हुए उनकी समस्याओं एवं आवश्यकताओं को समझना महत्वपूर्ण पहलू है। दुष्प्रभावों का वर्गीकरण किया जाना समस्याओं के उचित निराकरण में सहायक होता है। मुख्य रूप में चार प्रकार दुष्प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।
जैस :- शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक ये दुष्प्रभाव आपदा के स्वरूप एवं तीव्रता के अनुपात में कम या अधिक होते हैं। इस सत्र में विशेश रूप में आपदा के कारण उत्पन्न मनोविकारों के उपचार हेतु दिशा प्रदान करना है। दुष्प्रभावों का वर्गीकरण का अर्थ इनके अर्न्तसम्बन्धों के मध्य समझ विकसित करने से है ताकि राहत कार्यों की प्रभावी योजना निर्मित करना आसान हो सके।
आपदा के उपरान्त प्रकट होने वाली सामान्य मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाऐं
सर्व प्रथम यह समझना आवश्यक है कि समस्त मनावैज्ञानिक एवं भावनात्मक प्रतिक्रियायें नकारात्मक नहीं होती हैं तथा कई बार पीड़ित व्यक्ति के जीवित बने रहने के लिए अवसरों को बढ़ा देता है। तनाव, मासिक सवास्थ के लिए खतरा है।
जब नवीन परिस्थियों को झेलना पीड़ित व्यक्ति के वश से बाहर हो जाता है। आपदा के पश्चात संवेगात्मक विस्फोट हो सकता है। यद्यपि मासिक आघात के कारण समस्त लोगों की प्रतिक्रिया स्वयं के भिन्न-भिन्न पूर्वानुभव एवं व्यक्तित्व के कारण एक समान नहीं होती है तथापि कुछ प्रतिक्रियाऐं अधिकांश लोगो की एक समान होती हैं जैसे:-
संवेगात्मक
व्यग्रता या घबड़ाहट, सदमा, क्रोध, उदासी, अवसाद। पागलपन की जैसी स्थिति (अनिद्रा, मांस पेशियों में तनाव, सिर दर्द, जी मिचलाना, पेचिस या कब्ज) तथा घुटन का अनंभव करना।
भ्रमपूर्ण मनस्थिति
घटनाओं को दोहराना, विस्मृति, डरावने स्वप्न, भ्रमपूर्ण मनःस्थिति, घटना का पुर्नस्मरण , अनिर्णय अथवा अनिश्चय की स्थिति, चंचलता, बदहवासी।
कार्य व्यवहार सम्बन्धी कठिनाई
सामाजिक व्यवहार में असामान्यता, प्रेरणा शक्ति एवं एकाग्रचित्तता की कमी, आलस्य में वृद्धि , निराशा। आपदा जनित मनोविकार सामान्यतया एक सप्ताह में सामान्य स्तर पर आ जाने चाहिए। यदि दुष्प्रभाव के लक्षण तीन माह तक अथवा इसके उपरान्त भी दृष्टिगोचर होते हैं तो स्पष्ट है।
कि पीड़ित अनेक मनोविकारों से ग्रस्त हो चुका है जिसके दुष्प्रभाव अन्य समस्याओं को भी जन्म दे सकते हैं । यदि कोई व्यक्ति आपदा पीड़ित लोगों से बात करता है तो उसे बच्चों एवं प्रौढ़ों की सामाजिक मनोदशा के मध्य अन्तर को अनुभव करना होगा। बच्चे भी आपदा से बड़ों के ही समान प्रभावित होते हैं तथापि उनकी प्रतिक्रिया प्रौढ़ लोगों से भिन्न हो सकती है।
आपदा बच्चों के सामान्य जीवन के कल्याण कारी/आनन्द दायक स्वरूप को तबाह कर देती है । उनके व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया को ध्वस्त कर देती है तथापि बच्चे इस बदलाव को समग्ररूप में नहीं समझ पाते हैं। इसलिए मनोविकारों के उपचार हेतु कोई भी कदम उठाने से पूर्व विभिन्न आयुवर्ग के बच्चों की तात्कालिक मनोदशा का आकलन किया जाना चाहिए।
सामाजिक मनोवैज्ञानिक (मनोदशा) काउसिलिंग
यह पीड़ित एवं सहायक के मध्य होने वाली संवाद-प्रक्रिया है जो कि मनोविकार से पीड़ित बच्चे/व्यक्ति को सामान्य स्थिति में लौटाने के लिए लिए की जाती है । इस प्रक्रिया का उददेश्य पीड़ित पक्ष को कोई सलाह देना नहीं है अपितु कुशलता पूर्वक वार्ता के द्वारा विगत घटनाओं, पीड़ित की अभिरुचियों आदि को वार्ता का विषय बनाते हुए पीड़ित को सहजता का अनुभव कराना है।
परामर्श (Counselling) के सामान्य सिद्धान्त
- विश्वास
- विश्वसनीयता
- आत्म निश्चय
- सकारात्मक दृष्टिकोण
- भावना केन्द्रित वार्ता
- भावनात्मक सहयोग
- काउंसिलर की कुशलता महत्वपूर्ण
- बिना शर्त सकारात्मक सम्मान
- जीवंता एवं खुलापन
- वाक्चातुर्य
- केन्द्रता
परामर्श की तकनीकें
नाटक :- काल्पनिक नाटकों के माध्यम से बच्चा अपनी आपबीती सुना सकता है। अपने भावों की अभिव्यक्ति कर सकता है। ऐसी परिस्थितियों को निर्मित किया जाए जिससे मन में छुपे हुए गुबार बाहर निकल जांए और बच्चा आनन्द का अनुभव करना प्रारम्भ कर दे।
चित्रांकनः- स्वच्छन्द चित्रांकन के द्वारा काउसिंलिंग के दौरान अनुभव की गई समस्या के समाधान के अनुरूप जीवन की भली-बुरी घटना के स्मृति चित्रण हेतु प्रेरित किया जाए।