बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. गतिशील आवेश उत्पन्न करता है- (2013)
(i) केवल वैद्युत क्षेत्र
(ii) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
(iii) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों
(iv) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र में से कोई नहीं
उत्तर-(ii) वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों
प्रश्न 3. चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक होता है- (2011)
(i) वेबर x मीटर2
(ii) वेबर/मीटर2
(iii) वेबर
(iv) वेबर/मीटर
उत्तर-(i) वेबर/मीटर
प्रश्न 4. एक इलेक्ट्रॉन तथा एक प्रोटॉन जिनकी गतिज ऊर्जाएँ समानहैं, एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् प्रक्षेपित किए जाते हैं।पथ की त्रिज्या होगी-(2013)
(i) प्रोटॉन के लिए अधिक
(ii) इलेक्ट्रॉन के लिए अधिक
(iii) दोनों के पथ समान वक्रीय होंगे।
(iv) दोनों पथ सरल रेखीय होंगे
उत्तर-(1) प्रोटॉन के लिए अधिक
प्रश्न 5. किसी समान चुम्बकीय क्षेत्र में एक इलेक्ट्रॉन क्षेत्र के लम्बवत दिशा में प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन का पथ होगा (2013, 15,17)
(i) परवलयाकार
(ii) दीर्घवृत्ताकार
(iii) वृत्ताकार
(iv) सरल रैखिक
उत्तर-(iii) वृत्ताकार
प्रश्न 7. एक वृत्ताकार छल्ले का क्षेत्रफल 1.0 सेमी है तथा इसमें 10.0 ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही है। 0.1 टेस्ला तीव्रता का चुम्बकीय क्षेत्र छल्ले के तल के लम्बवत लगाया जाता है। चुम्बकीय क्षेत्र के कारण छल्ले पर लगने वाला बल-आघूर्ण होगा (2015)
(i) शून्य
(ii) 10-4 न्यूटन-मी
(iii) 102 न्यूटन-मी
(iv) 1.0 न्यूटन-मी
उत्तर-(iv) 1.0 न्यूटन-मी
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. साइक्लोट्रॉन किस सिद्धान्त पर कार्य करता है?(2015)
उत्तर-साइक्लोट्रॉन के कार्य करने का सिद्धान्त यह है कि डीज के बीच लगने वाले प्रत्यावर्ती विभवान्तर की रेडियो आवृत्ति, डीज के भीतर आवेशित कण के परिक्रमण की आवृत्ति के बराबर होनी चाहिए।
प्रश्न 2. चल-कुण्डल धारामापी की सुग्राहिता से क्या तात्पर्य है?
(2014)
उत्तर-यदि किसी धारामापी में थोड़ी-सी धारा प्रवाहित करने से ही पर्याप्त विक्षेप आ जाए तो धारामापी को सुग्राही कहते हैं। कुण्डली में एकांक धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन्न विक्षेप को धारामापी की सुग्राहिता कहते हैं।
प्रश्न 3. एक धारामापी को वोल्टमीटर में कैसे बदलते हैं?(2014)
उत्तर-श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध जोड़ने पर धारामापी वोल्टमीटर में परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 4. किसी चल कुण्डली धारामापी का ऐमीटर और वोल्टमीटर में कैसे रूपान्तरण किया जाता (2015)
उत्तर-
- धारामापी की कुण्डली के समान्तर में लघु प्रतिरोध
(शन्ट) लगा देते हैं, जिसका मान ऐमीटर की परास पर
निर्भर करता है। इस प्रकार चल कुण्डली धारामापी का
ऐमीटर में रूपान्तरण हो जाता है। - श्रेणीक्रम में उच्च प्रतिरोध जोड़ने पर धारामापी
वोल्टमीटर में परिवर्तित हो
प्रश्न 5. चुम्बकीय आघूर्ण की परिभाषा दीजिए। (2017, 18)
हल- चुम्बकीय द्विध्रुव का चुम्बकीय आघूर्ण वह बल आघूर्ण है
जो इस विश्व को एकांक व एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र
की दिशा के लम्बवत रखने पर द्विध्रुव पर लगता है।
प्रश्न 6. चुम्बकीय बल रेखाओं एवं वैद्युत बल रेखाओं में अन्तर लिखिए। (2017)
हल-
- चुम्बकीय बल रेखाएँ बन्द वक्र में होती हैं जबकि वैद्युत
बल रेखाएँ बन्द चक्र में नहीं होती हैं। इसका मुख्य
कारण चुम्बकीय ध्रुव का विलगित नहीं होना है जबकि
धनावेश एवं ऋणादेश विलगित अवस्था में प्राप्त किए
जा सकते हैं। - चुम्बकीय बल रेखाओं का किसी चुम्बकीय पदार्थ से
किसी भी कोण पर निर्गमन अधवा आगमन सम्भव
होता है। जबकि वैद्युत बल रेखाओं को किसी चालक
पदार्थ से लम्बवत् निर्गमन अथवा आगमन होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में एक धारावाही आयताकार
कुण्डली लटकायी गई है। इस पर लगने वाले बल युग्म के
आघूर्ण का व्यंजक प्राप्त कीजिए। (2017)
हल-एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारा-लूप (अथवा कुण्डलीअथवा परिनालिका) को व्यवहार ठीक वैसा ही होता है जैसा दण्ड-चुम्बक का। हमने यह पढ़ा है कि चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारा-लूप पर एक बल-युग्म लगता है जो कि लूप को ऐसी स्थिति में घुमाने की प्रवृत्ति रखता है जिसमें कि लूप की अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाये।
ठीक इसी प्रकार,
चुम्बकीय क्षेत्र में लटकाया गया दण्ड-चुम्बक भी घूम कर ऐसी
स्थिति में ठहरता है जिसमें कि चुम्बक की अक्ष चुम्बकीय क्षेत्र
के समान्तर हो जाती है। स्पष्ट है कि चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित
दण्ड-चुम्बक पर भी एक बल-युग्म लगता है जो कि चुम्बक की
अक्ष को क्षेत्र के समान्तर करने की प्रवृत्ति रखता है।
चुम्बक के परमाणवीय मॉडल के अनुसार, चुम्बक का प्रत्येक परमाणु एक नन्हा धारा-लूप होता है तथा ये सभी धारा-लूप एक ही दिशा में संरेखित होते हैं चुम्बकीय क्षेत्र में इन नन्हें धारा-लूपों पर लगने वाले बल-युग्मों का योग ही चुम्बक पर लगने वाला बल-युग्म होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. साइक्लोट्रॉन के सिद्धान्त एवं कार्य विधि का संक्षिप्त विवरण दीजिए। साइक्लोट्रॉन की सीमाओं का उल्लेख कीजिए। (2017)
हल-सिद्धान्त- चुम्बकीय क्षेत्र में परिक्रमण करने वाले आवेशित
कणों की परिक्रमण आवृत्ति कण की ऊर्जा पर निर्भर नहीं
करती है। अत: क्रॉसित (परस्पर लम्बवत्) वैद्युत तथा
चुम्बकीय क्षेत्रों का उपयोग कर आवेशित कण को चुम्बकीय
क्षेत्र की सहायता से बार-बार एक ही वैद्युत क्षेत्र से गुजारकर
उसको उच्च ऊर्जा तक त्वरित किया जा सकता है।
कार्य-विधि- माना m द्रव्यमान तथा +q आवेश का एक
आयन, आयन-स्रोत से उस क्षण निर्गत होता है जबकि D2
ऋण विभव पर है। यह आयनन डीज के बीच के अन्तराल में
विद्यमान वैद्युत क्षेत्र के द्वारा D2 की ओर को त्वरित होकर D2
में वेग v (माना) से प्रवेश कर जाता है।
डीज के भीतर प्रवेश करते ही यह आयन डीज की धात्विक दीवारों द्वारा वैद्युत क्षेत्र से परिरक्षित कर दिया जाता है। अब डीज के तल के लम्बवत्चु म्बकीय क्षेत्र के कारण आयन नियत चाल v से त्रिज्या के वृत्ताकार पथ पर चलने लगता है। आयन की वृत्तीय गति के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल, उस पर कार्यरत चुम्बकीय बल से प्राप्त होता है। अतः अभिकेन्द्र बल = चुम्बकीय बल।
साइक्लोट्रॉन की सीमाएँ-
(i) साइक्लोट्रॉन द्वारा अनावेशित कण जैसे- न्यूट्रॉन (जो कि
नाभिकीय क्रियाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रक्षेप्य कण है) को त्वरित
नहीं किया जा सकता है।
(ii) साइक्लोट्रॉन द्वारा इलेक्ट्रॉनों को त्वरित नहीं किया जा
सकता है क्योंकि इनका द्रव्यमान बहुत कम होता है, अतः
सूक्ष्म गतिज ऊर्जा ग्रहण कर ही ये बहुत उच्च वेग से गति
करने लगते हैं।
(iii) साइक्लोट्रॉन द्वारा आवेशित कणों को इतने उच्च वेग तक
त्वरित नहीं किया जा सकता है कि उनका वेग प्रकाश के वेग
के तुल्य हो जाए क्योंकि इतने उच्च वेग पर आवेशित कणों का
द्रव्यमान नियत न रहकर वेग के साथ परिवर्तित होता हैं।