हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको खनिज पोषण के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
खनिज पोषण किसे कहते हैं?
वह विधि जिसके द्वारा पौधे अपनी वृद्धि एवं परिवर्धन हेतु खनिज तत्वों का अवशोषण तथा उपयोग करते हैं वह खनिज पोषण कहलाती है।
तत्वों की अनिवार्यता के आधार पर
किसी पौधे में खनिज तत्वों की उपस्थिति पौधे की राख अथवा भस्म के रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात की जाती है पौधे में उपस्थित तत्वों की मात्रा एवं संख्या पौधों की जाती, आयु, वातावरण एवं आवास पर निर्भर करती है।
अब तक पौधों में लगभग 60 तत्वों की उपस्थिति पहचानी गई है लेकिन पौधों में उपस्थित सभी तत्व उसकी वृद्धि के लिए आवश्यक नहीं होते हैं। अतः पोधे में उपस्थित तत्व की वृद्धि के लिए आवश्यक है या नहीं इसका निर्धारण करने के लिए निम्नलिखित तीन नियमों को आधार माना गया है इन्हें तत्वों की अनिवार्यता के आधार भी कहते हैं।
- तत्व पौधे की कायिका वृद्धि एवं जनन के लिए आवश्यक होना चाहिए और इसकी अनुपस्थिति में ये क्रियाएं रुक जानी चाहिए।
- इस खनिज पोषण तत्व का पौधे के उपापचय में प्रत्यक्ष उपयोग होना चाहिए।
- तत्व किसी अन्य तत्व द्वारा प्रतिस्थापित न किया जा सकता हो अर्थात कुछ विशेष जैविक क्रियाएं केवल इसी तत्व की उपस्थिति में होती है।
- उदाहरण के लिए कहे तो मैग्नीशियम क्लोरोफिल का घटक है अतः प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक होता है। इस कार्य के लिए मैग्निशियम को किसी अन्य तत्व से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।
पौधों में आवश्यक तत्व (Essential elements in plants)
ऐसे तत्व के पौधे के विकास के लिए अति आवश्यक है, उन्हें हम पौधे के आवश्यक तत्व कहते हैं। अगर पौधे में किसी भी एक आवश्यक तत्व की कमी होती है तो पौधे में विकार उत्पन्न हो जाते हैं और वह विकार उस तत्व की पूर्ति करने पर ही दूर होता है इसलिए पौधों के लिए आवश्यक तत्व जरूरी होते हैं।
खनिज पोषण तत्व को पौधे के लिए उनकी आवश्यकता के आधार पर निम्न दो वर्गों में बांटा जा सकता है- गुरुपोषक तत्व और सूक्ष्म पोषक तत्व।
गुरुपोषक तत्व Micronutrients
ये वे खनिज पोषण तत्व है जिनकी पौधों को अपेक्षाकृत से भी ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। गुरुपोषक तत्व प्रणाली में मुख्यतः 10 तत्वों को रखा जाता है वह है, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, नाइट्रोजन, सल्फर, कैल्शियम, आयरन और मैग्नीशियम। गुरुपोषक तत्व का पौधे के प्रत्येक 1 ग्राम शुष्क भार में इन तत्वों की मात्रा कम से कम 1 मिली ग्राम होनी चाहिए।
सूक्ष्म पोषक तत्व Micronutrients
यह वे खनिज पोषण तत्व होते हैं जिनकी पौधों को गुरुपोषक तत्व की अपेक्षा कम मात्रा में आवश्यकता होती है, इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व कहते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व की संख्या 6 होती है। ये तत्व है- मैंगनीज, जिंक, बोरोन, कॉपर, मालीब्डेनम और क्लोरीन। इन्हें ट्रेस या सूक्ष्म मात्रिक तत्व भी कहते हैं। इसकी आवश्यकता पौधे में प्रत्येक 1 ग्राम शुष्क भार में इन तत्वों की मात्रा 0.1 मिली ग्राम के बराबर या इससे कम होती है।
पौधों में अनावश्यक तत्व (Unnecessary elements in plants)
ऐसे तत्व जो पौधे की वृद्धि तथा विकास के लिए आवश्यक नहीं होते हैं उन्हें हम अनावश्यक तत्व कहते हैं यह तत्व पौधे की संरचना एवं उपापचयी क्रियाओ में भाग नहीं लेते हैं तथा इनकी कमी या अनुपस्थिति से पौधों में किसी भी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं होता है।
खनिज एवं अखनिज तत्व (Minerals and Non-Minerals Elements)
वे आवश्यक तत्व जो पौधे मिट्टी से प्राप्त करते हैं खनिज तत्व कहलाते हैं। जैसे- कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन जिन्हें पौधे वायु या जल से प्राप्त कर सकते हैं, जिन्हें अखनिज तत्व कहते हैं।
पौधों में पाए जाने वाले खनिज पोषण तत्व
पौधों में आवश्यक तत्व और अनावश्यक तत्व पाए जाते हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है।
कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन
कार्बन हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ये तीनों खनिज तत्व के अंतर्गत नहीं आते हैं परंतु पौधे के पोषण के लिए ये तत्व अति आवश्यक माने जाते हैं। पौधों को कार्बन वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड मिलता है और ऑक्सीजन वायु या मिट्टी दोनों से प्राप्त हो जाती है।
नाइट्रोजन Nitrogen
हमारे वायुमंडल में नाइट्रोजन 78% होती है किंतु पौधों को हमारे वायुमंडल से नाइट्रोजन उस रूप में प्राप्त नहीं होती है जिस रूप में हमारे पौधों को नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है इसकी कमी को पूरा करने के लिए पोधो की जड़ों में एक राइजोबियम नामक जीवाणु होता है जो नाइट्रोजन को पौधों में उपलब्ध कराता है।
- कार्यिकीय भूमिका- यह प्रोटींस न्यूक्लिक अम्ल में उपस्थित रहती है।
- यह प्रोटीन संश्लेषण एवं अन्य उपापचयी क्रियाओ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- कमी के लक्षण- नाइट्रोजन से पौधे की वृद्धि प्रभावित होती है।
- क्लोरोफिल के निर्माण में कमी आ जाती है तथा पत्तियों का रंग पीला हो जाता है।
- इसकी कमी से एंथोसायनिन नामक रंगद्रव्य बनता है।
पोटेशियम Potassium
पोटेशियम पौधों के बढ़ने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है पौधे में पोटेशियम की मात्रा 0.3% से 6% तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- यह कोशिकाद्रव्य का प्रमुख घटक है।
- प्रकाश संश्लेषण, श्वसन तथा अन्य क्रियाएं इसकी उपस्थिति में ही होती है।
- यह अनेक एन्जाइम्स को सक्रिय बनाता है।
- कमी के लक्षण- पौधे में पोटेशियम की कमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
- तने की वृद्धि रुक जाती है।
- पत्तियों के अग्र सिरे विशेष प्रकार से मुड़ जाते हैं।
- पत्तियां मुरझा जाती हैं।
फास्फोरस Phosphorus
पौधे को प्रोटीन के संश्लेषण के लिए फास्फोरस की अत्यंत आवश्यकता पड़ती है। पौधे के शुष्क भार में इसकी मात्रा 0.2% से 0.8% तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- फास्फोरस अनेक कार्बनिक पदार्थों जैसे कि फास्फोलिपिड, न्यूक्लिक अम्ल, प्रोटीन आदि का मुख्य घटक है।
- प्रोटीन संश्लेषण में फास्फोरस की बहुत अधिक मात्रा आवश्यक होती है।
- कमी के लक्षण- फास्फोरस की कमी के कारण पौधे के जड़ एवं तने छोटे एवं कमजोर हो जाते हैं।
- पत्तियां तथा फलों में उत्तकक्षय क्षेत्र बन जाते हैं।
- कैंबियम की सक्रियता कम हो जाती है।
मैग्नीशियम Magnesium
पौधे की पत्ती में जो धब्बे पड़ जाते हैं वह मैग्नीशियम की कमी के कारण ही पड़ जाते हैं इसलिए पौधे में मैग्नीशियम की आवश्यकता अत्यंत होती है। पौधे में इसकी मात्रा लगभग 0.0 5% से 0.7% तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- मैग्नीशियम क्लोरोफिल अणु का मुख्य घटक है।
- नाइट्रोजन उपापचय से संबंधित अनेक फास्फेट स्थानांतरण क्रियाओं उत्प्रेरितको करता है।
- यह राइबोसोम की दो उप इकाइयों को आपस में बांधने का कार्य भी करता है।
- राइबोसोम के डाइमर्स तथा पोलाइमर्स का बनना मैग्नीशियम आयन की सांद्रता पर भी निर्भर करता है।
- कमी के लक्षण- मैग्नीशियम की कमी के कारण पत्तियों में अंतरशिरीय हरिमाहीनता हो जाती है।
- एंथोसायनिन वर्णक बनने लगता है जिसके कारण क्लोरोटिक भागों में लाल या बैंगनी रंग के धब्बे बनने लगते हैं।
- पणवृन्त दुर्बल हो जाते हैं तथा पत्तियां समय से पूर्व ही झड़ने लगती है।
- पौधे की कायिका एवं जनन वृद्धि भी कम हो जाती है।
आयरन Iron
पौधे में आयरन की कमी के कारण पौधे की श्वसन प्रक्रिया धीमी हो जाती है इसलिए पौधे को आयरन की आवश्यकता होती है। पौधे में इसकी मात्रा 10 से 100 PPM तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- यह क्लोरोफिल के संश्लेषण में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
- यह अनेक ऑक्सीकारक अपचयन अभिक्रियाओ में प्रयुक्त एंजाइमों का सक्रिय कारक है।
- कमी के लक्षण- शिशु पत्तियों में हरिमाहीनता पाई जाती है।
- आयरन की कमी के कारण लवको का विघटन होने लगता है।
- प्रोटीन संश्लेषण कम हो जाता है।
- श्वसन प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
कैल्शियम Calcium
कैल्शियम पौधे के लिए आवश्यक होता है इसकी कमी के कारण कोशिका विभाजन के समय कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं हो पाता है।
- कार्यिकीय भूमिका- यह कोशिका भित्ति की मध्य पटलिका का मुख्य घटक है।
- यह कोशिका कला की पारगम्यता को नियंत्रित करता है।
- कमी के लक्षण- कोशिका विभाजन के समय कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता है।
- कैल्शियम की कमी के कारण प्ररोह तथा मूल शीर्ष पर उपस्थित विभज्योतक की मृत्यु हो जाती है।
- नई पत्तियों के किनारों पर हरिमाहीनता पाई जाती है।
- मूलो का बहुत कम विकास होता है।
मैंगनीज Manganese
मैंगनीज खनिज पोषण पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक होती है। इसकी मात्रा 15 से 15 से PPM तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- यह क्लोरोफिल के निर्माण में भाग लेता है।
- यह पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
- कमी के लक्षण- हरित लवक में क्लोरोफिल का बनना रुक जाता है।
- मैंगनीज की कमी के कारण पत्तियों की शिराओं में हरिमाहीनता हो जाती है।
- मण्ड कण पीले रंग के हो जाते हैं।
जिंक Zinc
जिंक की भूमिका पौधे में एन्जाइम्स की क्रियाशीलता को बढ़ाना होता है। इसलिए यह पौधों के लिए आवश्यक होता है इसकी मात्रा पौधे में 3 से 350 PPM तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- यह ट्रिप्टोफेन के निर्माण में भाग लेता है।
- यह पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
- कमी के लक्षण- पत्तियां छोटी व पीली हो जाती है।
- बीजों का बनना रुक जाता है।
- पौधा बोना रह जाता है।
क्लोरीन Chlorine
आपने देखा होगा कि पत्तियों में तांबे जैसा रंग उत्पन्न हो जाता है यह क्लोरीन की कमी के कारण ही होता है पौधों में इसकी मात्रा 100 से 300 PPM तक होती है।
- कार्यिकीय भूमिका- वाष्प उत्सर्जन में भी इसकी भूमिका होती है।
- प्रकाश संश्लेषण में फोटोसिस्टम-II में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- कमी के लक्षण- क्लोरीन की कमी के कारण पौधे सूखने लगते हैं।
- इसकी कमी के कारण हरिमाहीनता ऊतकक्षय हो जाता है।