पालमपुर गांव की कहानी का उद्देश्य उत्पादन से संबंधित विचारों से परिचय कराना था। पालमपुर गांव भारत के हिमाचल-प्रदेश राज्य के काँगड़ा ज़िले में स्थित है। ओर पालमपुर गांव में खेती ही मुख्य क्रिया है, जबकि कई अन्य ‘क्रियाएँ जैसे की, लघु-स्तरीय निर्माण, डेयरी, परिवहन आदि सीमित स्तर पर की जाती थी। इन उत्पादन क्रियाओं के लिए।
विभिन्न प्रकार के संसाधन(resources) की जरूरत होती है, यहां प्राकृतिक संसाधन(resources), मानव निर्मित सामान, मानव प्रयास, मुद्रा आदि। पालमपुर की कहानी से हमें जानकारी होगा कि गाँव में इच्छित वस्तुओं और सेवाओं को उत्पादित करने के लिए. विभिन्न संसाधन(resources) किस प्रकार समा-योजित होते हैं।
‘पालमपुर गावं आस-पड़ोस के गाँवों और कस्बों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। वह एक रायगंज नामक गॉंव एक बड़ा गाँव है, पालमपुर से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्रत्येक मौसम में यह सड़क गाँव को रायेगंज और उससे आगे नज़दीकी छोटे कस्बे शाहपुर से जोंडती है। इस सड़क पर गुड़ और अन्य वस्तुओं से लदी हुई बैल-गाड़ियों, बैंसा-बुँग्ची से लेकर अन्य कई तरह के वाहन जैसे, मोटर-साइकिल, जीप, ट्रैक्टर और ट्रक तक दिखते थे।
इस गाँव में तरह तरह की जातियों के लगभग 450 तक परिवार रहते हैं। इस गाँव में अधिकांश भूमि के स्वामी उच्च-जाति के 80 परिवार थे। उनके मकान, जिनमें से कुछ बहुत बड़े हैं, कुछ माकन ईंट और सीमेंट के भी बने हुए हैं। अनुसूचित जाति (दलित) के लोगों की संख्या गाँव की कुल जनसंख्या लगभग एक तिहाई है और वे गाँव के एक कोने में काफ़ी छोटे घरों में रहते हैं, जिनमें कुछ मिट्टी और घास-फूस
के बने हैं। बहुसंख्या, घरों में बिजली थी।
उत्पादन का संगठन
उत्पादन का उद्देश्य ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित करना है, जिनकी हमें आवश्यकता है। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए चार चीज़ें आवश्यक हैं। पहली आवश्यकता है भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन, जैसे-जल, वन, खनिज। दूसरी जरूरत है श्रम अर्थात् जो लोग काम करेंगे। कुछ उत्पादन क्रियाओं में आवश्यक कार्यों को करने के लिए बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों(employees) की आवस्यकता होती है। दूसरी क्रियाओं के लिए शरीर संबंधी कार्य करने वाले श्रमिकों की ज़रूरत होती है। प्रत्येक श्रमिक उत्पादन के लिए जरूरी श्रम प्रदान करता हैं। तीसरी जरूरत भौतिक पूँजी है, अर्थात् उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर आकांक्षा किया हुआ कई तरह के आगत। क्या आप जानते हैं कि भौतिक पूँजी के अंतर्गत दो मुद्दे आती हैं।
- औज़ार, मशीन, भवन : औजारों तथा मशीनों में अत्यंत साधारण औज्ञार जैसे-किसान का हल से लेकर परिष्कृत मशीनें जैसे-जेनरेटर, टरबाइन, कंप्यूटर आदि आते हैं। औज़ारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता हैं और इन्हें स्थायी पूँजी कहा जाता है।
- कच्चा माल और नकद मुद्रा : उत्पादन में कई प्रकार के कच्चे माल की जरूरत होती है, जैसे बुनकर ऑर्थत कपड़ा बनाने वाला के द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सूत और कुम्हारों अर्थात मिट्टी के बर्तन बनाने वाले के द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली मिट्टी। ओर उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा आवस्यक माल खरीदने के लिए कुछ पैसों की भी जरूरत होती है। कच्चा माल तथा नकद पैसों को ‘कार्यशील पूँजी कहते हैं। औज़ारों, मशीनों तथा भवनों से भिन्न ये चीज़ें उत्पादन-क्रिया के दौरान समाप्त हो जाती हैं।
पालमपुर गांव की कहानी के प्रश्न उत्तर बताइए?
स्थायी पूँजी किसे कहते है ?
औज़ारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता हैं और इन्हें स्थायी पूँजी कहा जाता है।
कार्यशील पूँजी किसे कहते है ?
कच्चा माल तथा नकद पैसों को ‘कार्यशील पूँजी कहते हैं। औज़ारों, मशीनों तथा भवनों से भिन्न ये चीज़ें उत्पादन-क्रिया के दौरान समाप्त हो जाती हैं।
पालमपुर गांव की मुख्य क्रिया क्या है?
पालमपुर गांव में खेती ही मुख्य क्रिया है, जबकि कई अन्य ‘क्रियाएँ जैसे की, लघु-स्तरीय निर्माण, डेयरी, परिवहन आदि सीमित स्तर पर की जाती थी। इन उत्पादन क्रियाओं के लिए. विभिन्न प्रकार के संसाधन(resources) की जरूरत होती है, यहां प्राकृतिक संसाधन(resources), मानव निर्मित सामान, मानव प्रयास, मुद्रा आदि।
पालमपुर गांव के लोगों की मुख्य आर्थिक क्रिया क्या है?
पालमपुर का प्रमुख क्रियाकलाप कृषि है। 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं।
पालमपुर गांव में कितने परिवार रहते हैं?
तरह तरह की जातियों के लगभग 450 तक परिवार रहते हैं। इस गाँव में अधिकांश भूमि के स्वामी उच्च-जाति के 80 परिवार थे। उनके मकान, जिनमें से कुछ बहुत बड़े हैं,
पालमपुर गांव में परिवहन के कौन-कौन से साधन उपलब्ध थे?
पालमपुर गांव की सड़क पर गुड़ और अन्य वस्तुओं से लदी हुई बैल-गाड़ियों, बैंसा-बुँग्ची से लेकर अन्य कई तरह के वाहन जैसे, मोटर-साइकिल, जीप, ट्रैक्टर और ट्रक तक दिखते थे।