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परितंत्र किसे कहते हैं? | प्रकार

परितंत्र किसे कहते हैं? | प्रकार

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको परितंत्र के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

पारितंत्र क्या है?

पिछले पाठ में आपने सीखा कि प्रकृति में जीवों के विभिन्न समुदाय एक साथ रहते हैं। और परस्पर एक दूसरे के साथ-साथ अपने भौतिक पर्यावरण के साथ एक पारिस्थितिक इकाई के रूप में अन्योन्यक्रिया करते हैं। हम इसे पारितंत्र कहते हैं।

पारितंत्र जैव मण्डल के जैविक और अजैविक घटकों की कार्यात्मक रूप से स्वतंत्र इकाई है। - जलवायु, अकार्बनिक वस्तुएँ, कार्बनिक यौगिक, उत्पादक वृहत उपभोक्ता तथा सूक्ष्म उपभोक्ता पारितंत्र के संरचनात्मक घटक हैं

एक पारिस्थितिकी तंत्र जिसमें एक दिए गए क्षेत्र में रहने वाली सभी वस्तुएं (पौधे, जानवर और जीव) शामिल रहती हैं तथा एक दूसरे के साथ मिलकर निर्जीव वातावरण (मौसम, पृथ्वी, सूर्य, मिट्टी, जलवायु, वातावरण) को प्रभावित करती हैं।

पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) शब्द की रचना 1935 में ए-जी- टैन्सले के द्वारा की गई थी। एक पारितंत्र प्रकृति की क्रियात्मक इकाई है जिसमें इसके जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच होने वाली जटिल अन्योन्यक्रियाएँ सम्मिलित हैं। उदाहरण के लिये तालाब पारितंत्र का अच्छा उदाहरण

पारितंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

  • स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Terrestrial ecosystem)
  • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Aquatic ecosystem)

पारितंत्र के घटक

पारितंत्र के घटकों को दो समूहों में बांटा गया है।

(क) अजैविक तथा (ख) जैविक

  1. अजैविक घटक (निर्जीव): अजैविक घटकों को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया गया हैः
    1. भौतिक कारक (Physical factor): सूर्य का प्रकाश, तापमान, वर्षा, आर्द्रता तथा दाब। यह पारितंत्र में जीवों की वृद्धि को सीमित और स्थिर बनाए रखते हैं।
    2. अकार्बनिक पदार्थः कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ़ास्फ़ोरस, सल्फर, जल, चट्टान, मिट्टी तथा अन्य खनिज।
    3. कार्बनिक पदार्थः कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड तथा ह्यूमिक पदार्थ यह सजीव तंत्र के मूलभूत अंग हैं और इसीलिये ये जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच की कड़ी हैं।
  2. जैविक घटक (सजीव):
    1. उत्पादक (Producer): हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पूरे पारितंत्र के लिये भोजन का निर्माण करते हैं। हरे पौधे स्वपोषी कहलाते हैं क्योंकि यह इस प्रक्रम के लिये मिट्टी से जल एवं पोषक तत्व, वायु से कार्बनडाइऑक्साइड प्राप्त करते हैं, तथा सूर्य से सौर ऊर्जा अवशोषित करते हैं।
    2. उपभोक्ता (Consumer): यह विषमपोषी कहलाते हैं और स्वपोषियों द्वारा संश्लेषित किए गए भोजन को खाते हैं। भोजन की पसंद के आधार पर इन्हें तीन वर्गों में रखा जा सकता है। शाकाहारी (गाय, हिरन और खरगोश आदि) सीधे ही पौधों को खाते हैं। मांसाहारी वे जन्तु हैं जो अन्य जन्तुओं को खाते हैं। (उदाहरण शेर, बिल्ली, कुत्ता आदि) और सर्वाहारी जीव पौधों और जन्तुओं दोनों को खाते हैं) उदाहरण-मानव, सुअर और गोरैया)।
    3. अपघटक (Decomposer): इन्हें मृतपोषी भी कहते हैं। यह अधिकतर बैक्टीरिया (जीवाणु) और कवक होते हैं, जो पौधों तथा जन्तुओं के मृत अपघटित और मृत कार्बनिक पदार्थ जो सड़ रहे पदार्थों पर अपने शरीर के बाहर एन्जाइमों का स्राव करके ग्रहण करते हैं। पोषकों के चक्रण में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इन्हें अपरदभोजी (Detrivores) भी कहा जाता है।पारितंत्र के कार्य

पारितंत्र जटिल परिवर्तनात्मक तंत्र है। ये विशिष्ट कार्य करते हैं जो इस प्रकार हैं:-

(i) खाद्य शृंखला में ऊर्जा का प्रवाह।
(ii) पोषकों का चक्रण (भूजैवरासायनिक चक्र)।
(iii) पारिस्थितिकीय अनुक्रम या पारितंत्र का विकास।
(iv) समस्थापन (या संतांत्रिका, cybernetic) या पुनर्भरण नियंत्रण प्रणालियाँ तालाब, झीलें, चरागाह, दलदल, घास के मैदान, मरुस्थल और जंगल प्राकृतिक पारितंत्र के उदाहरण हैं। आप लोगों में से कुछ ने अपने पड़ोस में एक्वेरियम, बगीचा या लॉन इत्यादि देखा होगा। ये मानव निर्मित पारितंत्र पारितंत्र के प्रकार

पारितंत्रों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता हैः

(i) प्राकृतिक पारितंत्र (Natural ecosystem) (ii) मानव निर्मित पारितंत्र (Human modified ecosystem)

पिछले पाठ में आपने सीखा कि प्रकृति में जीवों के विभिन्न समुदाय एक साथ रहते हैं। और परस्पर एक दूसरे के साथ-साथ अपने भौतिक पर्यावरण के साथ एक पारिस्थितिक इकाई के रूप में अन्योन्यक्रिया करते हैं। हम इसे पारितंत्र कहते हैं।

(i) प्राकृतिक पारितंत्र

(क) पूर्ण रूप से सौर विकिरण पर निर्भर। उदाहरण, जंगल, घास के मैदान, समुद्र, झील, नदियाँ और मरुस्थल। इनसे हमें भोजन, ईंधन, चारा तथा औषधियां प्राप्त होती हैं।

(ख) पारितंत्र सौर विकिरण तथा ऊर्जा सहायकों (वैकल्पिक स्रोत) जैसे हवा, वर्षा और ज्वार-भाटा पर निर्भर होता है। उदाहरण- उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, ज्वारनद मुख, कोरल रीफ (मूंगा चट्टान)

(ii) मानव निर्मित पारितंत्र

(क) सौर-ऊर्जा पर निर्भर- उदाहरणः खेत और एक्वाकल्चर तालाब।
(ख) जीवाश्म ईंधन पर निर्भर उदाहरण- नगरीय और औद्योगिक पारितंत्र।

3-खाद्य श्रृंखलाएँ दो प्रकार की हैं:

(i) चारागाह वाली खाद्य श्रृंखलाएँ: यह श्रृंखलाएँ उन हरे पौधों से आरम्भ होती हैं जो शाकाहारी और मांसाहारी जन्तुओं के लिये खाद्य उत्पन्न करते हैं।

(ii) अपरद खाद्य श्रृंखलाएँ: यह श्रृंखलाएँ मृत कार्बनिक पदार्थ तथा उन मृतजीवी जीवों से आरम्भ होती हैं जो प्रोटोजोन तथा मांसाहारी जन्तुओं के लिये भोजन उत्पन्न करते हैं।

पारितंत्र में दोनों श्रृंखलाएँ परस्पर संयोजित हो जाती हैं तथा y-के आकार की खाद्य श्रृंखला बनाती हैं। ये खाद्य श्रृंखलाएँ दो प्रकार की हैं:

(i) उत्पादक → शाकाहारी → मांसाहारी
(ii) उत्पादक → अपरदहारी → मांसाहारी

4-भूजैवरासायनिक चक्र के दो मुख्य घटक हैं -

(1) भण्डार निकाय- वायुमण्डल या चट्टान, जिसमें पोषक तत्वों का विपुल भंडार है।

(2) चक्रण निकाय या चक्र के उपखण्ड- ये पौधों और जंतुओं के रूप में कार्बन के अपेक्षाकृत छोटे भंडार हैं।

अब आप कार्बन, नाइट्रोजन तथा जल जैसे भूजैवरासायनिक चक्रों के बारे में अध्ययन कर कार्बन चक्र (Carbon cycle)

वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड सभी प्रकार के कार्बनों का स्रोत है। यह पानी में अत्यंत घुलनशील होती है। अतः समुद्र में भी बड़ी मात्रा में घुलनशील कार्बन डाइऑक्साइड होती है।