हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको पारगम्यता के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
पारगम्यता की परिभाषा
किसी भी पदार्थ का कोशिका (cell) में प्रवेश व उससे बाहर निकलने की प्रक्रिया कोशिका झिल्ली (cell membrane) की पारगम्यता पर निर्भर करती है। पारगम्यता (permeability) के आधार पर झिल्ली चार प्रकार की होती है।
पारगम्य
इस झिल्ली से होकर विलेय (solute) एवं विलायक (solvent) दोनों के अणु आर-पार जा सकते हैं।
अपारगम्य
इस झिल्ली से होकर कोई भी अणु (न तो विलेय का और न ही विलायक का) आर-पार नहीं जा सकते हैं।
अर्द्ध-पारगम्य
इस झिल्ली से होकर केवल विलायक के अणु ही आर-पार जा सकते हैं।
चयनात्मक पारगम्य अथवा विभेदक पारगम्य
इस झिल्ली से होकर विलायक एवं कुछ विशेष अथवा चुने हुए (selective) पदार्थों के अणु आर-पार जा सकते हैं लेकिन उनकी दर (rate) अलग-अलग होती है। प्लाज्मा झिल्ली, टोनोप्लास्ट (tonoplast) (रिक्तिकाओ के चारों ओर पायी जाने वाली झिल्ली) तथा कोशिकांगो के चारों ओर पाई जाने वाली झिल्लीया चयनात्मक पारगम्यता प्रदर्शित करती है। ये झिल्लीया विलायक (जल) के अणुओं के लिए अधिक पारगम्य होती है जबकि विलेय (पदार्थों) के अणुओं के लिए अपेक्षाकृत कम पारगम्य में होती हैं।
प्लाज्मा झिल्ली
कोशिका में परिवहन प्लाज्मा झिल्ली की पारगम्यता (permeability) पर निर्भर करता है। उभयसंवेदी (amphipathic) प्रकृति होने अर्थात जलस्नेही तथा जल विरागी विशेषताओं के कारण प्लाज्मा झिल्ली में चयनात्मक पारगम्यता पायी जाती है अर्थात यह विभिन्न पदार्थों (विलायक एवं विलेय) के आवागमन का नियमन करती है। प्लाज्मा झिल्ली के सामान्यतया अर्द्ध-पारगम्य (semi-permeable) मान लिया जाता है लेकिन वास्तव में सभी जैव-झिल्लियां चयनात्मक पारगम्यता होती है।
झिल्ली की पारगम्यता के सिद्धांत
कोशिका झिल्ली की पारगम्यता के संबंध में समय-समय पर अनेक सिद्धांत प्रस्तुत किए गये हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं।
धारण दाब सिद्धान्त
ट्राउबे (traube, 1883) ने "धारण दाब सिद्धांत" प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार किसी झिल्ली से किसी विलेय (solute) की पारगम्यता इस बात पर निर्भर करती है कि झिल्ली पदार्थ के प्रति उसकी सापेक्ष बन्धुता जल की तुलना में कितनी अधिक है। इस सिद्धांत को दूसरे वैज्ञानिकों का समर्थन नहीं मिला।
घोल (विलयन) सिद्धान्त
ओवरटोन (overton, 1895) ने 'घोल सिद्धांत' प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कोशिका झिल्लीया लिपिड या वसाओ की बनी होती है अतः इनमें घुलनशील पदार्थ आसानी से इन झिल्लियों से होकर जा सकते हैं। यह व्याख्या रिक्तिकाओ में कुछ अम्लो के संचय को समझने में सहायक है। ऐसे अम्ल जो लिपिड में नहीं घुलते, रिक्तिकाओ में पाये जाते हैं जबकि लिपिड में घुल जाने वाले अम्लो का उनमें सर्वथा अभाव होता है। इस सिद्धान्त को भी अधिक समर्थन हासिल नहीं हुआ।
मोजेक परिकल्पना
नाथनसोहन (Nathansohn, 1904) ने 'मोजेक सिद्धांत' प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार झिल्ली में लिपिड एवं प्रोटीन की स्थिति मोजेक के समान होती है अर्थात झिल्ली में लिपिडयुक्त एवं प्रोटीनयुक्त क्षेत्र स्पष्ट रूप से अलग-अलग होते हैं। लिपिड में घुलनशील पदार्थ सरलता से झिल्ली से होकर गुजरते हैं। अन्य पदार्थों का प्रवेश झिल्ली के प्रोटीन भाग पर निर्भर करता है जिसमें भिन्नता पाई जाती है।
अतिसूक्ष्म निष्पन्दन सिद्धान्त
अनेक वैज्ञानिकों रूहलैण्ड (Ruhland, 1912), कुस्टर (kuster, 1911-1918) तथा हांफमैन (Hoffman, 1925) का विचार था कि झिल्ली की छलनी (sieve) की तरह कार्य करती है क्योंकि इसमें अति सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनमें से होकर छोटे अणु, बड़े अणुओं की अपेक्षा सफलतापूर्वक गुजर जाते हैं। लेकिन इस सिद्धांत के भी कई अपवाद है। अतः यह सिद्धांत भी ज्यादा मान्य नहीं है।
विद्युत केशिका सिद्धान्त
विद्युत केशिका सिद्धांत के अनुसार झिल्लियों के छिद्र, आवेशित प्रोटीनों द्वारा घिरे रहते हैं। विद्युत-अपघटय (electrolyte) के उदाहरण में, यह ऋण आवेशित छिद्र से धन आवेशित (positively charged) कणों को तथा धन आवेशित छिद्रों से ऋण आवेशित कणों को प्रवेश करने देते हैं। विद्युत-अपघटन (non-electrolyte) के कणों की स्थती में प्रवेश तभी सम्भव होता है जब कणो का आकार छोटा हो। यह सिद्धांत (theory) मिचैल (Michael) एवं उनके साथियों ने दिया था।
रासायनिक प्रतिक्रिया सिद्धान्त
रासायनिक प्रतिक्रिया सिद्धांत (chemical reaction theory) के अनुसार जब कोई आयन या अणु (particle) झिल्ली (membrane) में प्रवेश करता है तब यह उसके एक ओर उपस्थित पदार्थों के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया (chemical reaction) करता है। चूंकि प्रतिक्रिया उत्क्रमणीय (reversible) होती है, इसलिए अणु दूसरी ओर चले जाते हैं।
वाहक सिद्धान्त
वाहक सिद्धांत (carrier theory) के अनुसार पदार्थों का झिल्ली में प्रवेश कुछ वाहकों द्वारा होता है। ये वाहक कुछ विशिष्ट प्रोटीन (specific protein) होते हैं जो विलेय के साथ झिल्ली की बाह्रा सतह (Outer surface) पर संयुक्त होकर वाहक-विलेय सम्मिश्र (carrier-solute complex) बनाते हैं। यह सम्मिश्र झिल्ली की भीतरी सतह पर टूटकर विलेय को मुक्त कर देता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पारगम्यता (permeability) को समझाने हेतु जितने भी सिद्धांत (theory) प्रस्तुत किये गये उनमें से कोई एक सिद्धांत पूर्ण-रूप से मान्य (valid) नहीं है तथा पारगम्यता को स्पष्ट (clear) करने के लिये एक से अधिक सिद्धांतों (theory) को आधार बनाना अधिक सही होगा।