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बिंदु दोष किसे कहते है? | फ्रेंकल दोष

बिंदु दोष किसे कहते है? | फ्रेंकल दोष

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको बिंदु दोष के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

बिंदु दोष के बारे में 

किसी क्रिस्टल में परमाणु या आयनों की नियमित (regular) व्यवस्था में विचलन होने पर उत्पन्न दोष को बिंदु दोष कहते हैं। परमशून्य (absolute zero) तापक्रम पर ठोसो कि क्रिस्टलो में उनकी रचक इकाइयों (आयन, परमाणु(atomic), या अणुओ (molecule) की व्यवस्था क्रमबद्ध होती है। क्रिस्टल (crystal) में यह व्यवस्था निम्नतम ऊर्जा (lowest energy) व्यवस्था के संगत होती है। जैसे-जैसे क्रिस्टल का ताप (heat) बढ़ाया जाता है, वैसे-वैसे क्रिस्टल में रचकों की क्रमबद्ध व्यवस्था में विचलन (deviation) होने लगता है। इस प्रकार पूर्ण रूप से सही क्रिस्टल में विचलन के फलस्वरुप दोष (defect) अथवा अपूर्णता आ जाती है।

यह दोष (defects) अथवा अपूर्णता (imperfections) ऊष्मागतिकी दोष (thermodynamic defects) कहलाते हैं, क्योंकि ये ताप पर आधारित होते हैं। कभी-कभी क्रिस्टलो में अशुद्धियों के कारण भी योगात्मक दोष उत्पन्न हो जाते हैं, जिन्हें अशुद्धि दोष (impurity defects) कहते हैं। क्रिस्टलो में दोष अथवा अपूर्णता के कारण पदार्थ के गुणों में केवल रूपांतरण ही नहीं होता बल्कि कुछ नये गुण भी उत्पन्न हो जाते हैं। अनेक गुणों जैसे वैधुत चालकता (electric conductivity) तथा यांत्रिकीय शक्ति (Mechanical strength) को इन दोषों तथा अपूर्णताओ (incompleteness) के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है। क्रिस्टलो में पाए जाने वाले विभिन्न दोषों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। (1) इलेक्ट्रॉनिक दोष (electronic defects) (2) बिंदु दोष (point defects)

इलेक्ट्रॉनिक दोष

क्रिस्टल में इलेक्ट्रॉनों (electrons) की व्यवस्था के अनियमित होने से इस प्रकार का दोष (defects) उत्पन्न होता है। परमशून्य ताप (Absolute zero temperature) से अधिक ताप पर इलेक्ट्रॉन निम्नतम ऊर्जा स्तर (lowest energy level) से उच्च ऊर्जा स्तर (high energy level) पर आ जाते हैं। उदाहरण के लिए सिलिकॉन (Silicon) अधिक ताप पर (परमशून्य से अधिक) विद्युत का चालन मुक्त इलेक्ट्रॉनों (Free electron) के कारण करता है।

बिंदु दोष

परमाणु या आयन अपने नियत स्थान से विचलित होकर यह दोष उत्पन्न करते हैं। बिंदु दोष का विस्तार जालक दोष (lattice defect) कहलाता है। जालक दोष या तो रेखीय (line) या तलीय (plane) होते हैं। बिंदु दोषों को निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है।

रससमीकरणमितीय दोष

वह बिंदु दोष जिसके कारण ठोस की रससमीकरणमितीय (stoichiometry) में अंतर नहीं आता रससमीकरणमितीय दोष कहलाता है। ये दोष स्वाभाविक (intrinsic) दोष भी कहलाते हैं। रससमीकरणमितीय दोष दो प्रकार के होते हैं।

रिक्त स्थान दोष

क्रिस्टल के कुछ जालक बिंदु (lattice point) जब रचक घटक नहीं रखते अर्थात रचक घटक रहित होते हैं तो यह दोष रिक्त स्थान दोष (vacancy defect) कहलाता है। यह दोष क्रिस्टल को गर्म (hot) करने पर उत्पन्न होता है। इस दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व (density) कम हो जाता है।

क्रिस्टल के कुछ जालक बिंदु (lattice point) जब रचक घटक नहीं रखते अर्थात रचक घटक रहित होते हैं तो यह दोष रिक्त स्थान दोष (vacancy defect) कहलाता है।

अंतराकाशी दोष

जब जालक बिंदु के मध्य अंतराकाशी स्थान (space) में भी कुछ रचक घटक अतिरिक्त (extra) आ जाते हैं तो यह दोस्त अंतराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष क्रिस्टल पर उच्च दाब (high pressure) आरोपित करने से उत्पन्न हो जाता है। इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व (density) में वृद्धि हो जाती है।

जब जालक बिंदु के मध्य अंतराकाशी स्थान (space) में भी कुछ रचक घटक अतिरिक्त (extra) आ जाते हैं तो यह दोस्त अंतराकाशी दोष कहलाता है।

शॉटकी दोष

आयनिक क्रिस्टलो में ये दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब कुछ धनायन और उसी संख्या में ऋणायन अपनी-अपनी निश्चित जगह यानी जालक बिंदुओ (lattice point) को छोड़कर रिक्तिया (holes) बना देते हैं। अर्थात धनायनो द्वारा छोड़े गए होल तथा ऋणायनो द्वारा छोड़े गए होलों की संख्या बराबर होती है। यह तभी संभव है जब योगिक का सूत्र AB प्रकार का हो।

आयनिक क्रिस्टलो में ये दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब कुछ धनायन और उसी संख्या में ऋणायन अपनी-अपनी निश्चित जगह यानी जालक बिंदुओ (lattice point) को छोड़कर रिक्तिया (holes) बना देते हैं।

क्रिस्टलो में इस प्रकार के दोष ऐसे यौगिको के क्रिस्टलो में पाए जाते हैं, जिनमें आयनों की समन्वय संख्या अधिक होती है और धनायन तथा ऋणायन के आकार लगभग समान होते हैं। उदाहरण- NaCl, KCl, CsSl तथा KBr। सामान्य तापक्रम पर सोडियम क्लोराइड क्रिस्टल में 10¹⁵ लैटिस बिंदुओ में से एक पर यह दोष पाया जाता है। 775 K तापमान पर एक दोष 10⁶ बिंदुओ में ही मिल जाता हैं और उच्च तापमान पर दोष 10⁴ बिंदुओ में पाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि तापमान बढ़ने के साथ शॉटकी दोष (schottky defect) की संख्या में वृद्धि हो जाती है। क्रिस्टल में अधिक शॉटकी दोषो के कारण उसके घनत्व (density) में कमी आ जाती है।

शॉटकी दोष सहायक कारक
  • (k) उच्च समन्वय अंक
  • (l) धनायन व ऋणायन का लगभग समान आकार
  • (m) AB प्रकार के क्रिस्टल।
शॉटकी दोष के परिणाम
  • (x) क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है।
  • (y) क्रिस्टल की जालक ऊर्जा (lattice energy) कम हो जाती है।
  • (z) क्रिस्टल का स्थायित्व कम हो जाता है।
  • (q) क्रिस्टल विद्युत का चालक हो जाता है।

फ्रेंकल दोष

क्रिस्टलो में इस प्रकार के दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब कोई आयन अपने नियत लैटिस बिंदु से हटकर अंतराकाशी रिक्ति (interstitial space) में अपना स्थान बना लेता है। अतः लैटिस बिंदु पर रिक्ति (vacancy) हो जाती है। आयनो की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता। यह दोष कम समन्वय अंक वाले क्रिस्टलो में पाया जाता है। इन क्रिस्टलो में धनायन का आकार ऋणायन की अपेक्षा छोटा होता है। यह दोष ZnS, AgCl, AgBr, Agl आदि क्रिस्टलो में पाया जाता है।

क्रिस्टलो में इस प्रकार के दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब कोई आयन अपने नियत लैटिस बिंदु से हटकर अंतराकाशी रिक्ति (interstitial space) में अपना स्थान बना लेता है।

फ्रेंकल दोष सहायक कारक
  • (k) निम्न समन्वय अंक
  • (l) धनायन छोटा ऋणायन बड़ा
  • (m) AB प्रकार के क्रिस्टल।
फ्रेंकल दोष के परिणाम
  • (x) क्रिस्टल विद्युत का चालक हो जाता है।
  • (y) क्रिस्टल का स्थायित्व कम हो जाता है।
  • (z) द्विवैधुत स्थरांक (dielectric constant) में वृद्धि हो जाती है।

शॉटकी एवं फ्रेंकल दोषों में अंतर

क्र.सं. शॉटकी दोष फ्रेंकल दोष
1. इस दोष में कुछ आयन जालक बिंदुओं (lattice points) से गायब हो जाते हैं। इस दोष में कुछ आयन जालक बिंदु को छोड़कर अंतराकाशी स्थान (Interstitial space) पर चले जाते हैं।
2. द्विवैधुतांक (dielectric constant) में अंतर नहीं आता। इस दोष में द्विवैधुतांक में वृद्धि हो जाती है।
3. क्रिस्टल का घनत्व (density) कम हो जाता है। क्रिस्टल का घनत्व अपवर्तित (density unchanged) रहता है।
4. उच्च समन्वय अंक वाले क्रिस्टलो में पाया जाता है तथा क्रिस्टल में धनायन व ऋणायन लगभग समान आकार के होते हैं। उदाहरणार्थ- NaCl, CsCl आदि। निम्न समन्वय अंक वाले क्रिस्टलो में पाया जाता है तथा धनायन (positive) का आकार ऋणायन (negative) से कम होता है।

नोट- क्रिस्टल में शॉटकी दोष संख्या (n) = Ne⁻ᵉ/²ᵏᵗ, क्रिस्टल में फ्रेंकल दोष संख्या (n) = (NNᵢ)½ e⁻ᵉ/²ᵏᵗ, N = आयन संख्या, Nᵢ = अंतराकाशी स्थान संख्या, T = परमताप, k = बोल्ट्जमैन (boltzmann) स्थिरांक, E = दोष उत्पन्न करने के लिए आवश्यक ऊर्जा।