प्रकृति के अनेक अभिकर्त्ता अपनी तरह से अपना काम करते हैं। हवा, पानी, तूफान, बादल, बिजली आदि सभी अपना काम कर रहे हैं। प्रकृति अपने दो रूपों में संसार को अपनी शक्ति का परिचय देती है। सुनहला बादल एक क्षण के बाद ही रूपहला बन जाता है और वही समय के फेर से कभी घोर रूप ग्रहण कर लेता है। कोमलता को कठोरता में परिणत होने में कोई देर नहीं लगती है।
सोने और चाँदी के समान चमकनेवाला बादल काला रंग और भयावह रूप लेकर धरती के किसी भी भाग का रूप बदल देता है, या कभी उसे नक्शे से ही गायब कर देता है। जल परिवर्तन एक सम्राट् की तरह मंच पर आता है। वह अपने सैनिकों के सामने अपनी मर्जी को जाहिर करता है। वह्नि, बाढ़, भूकम्प, प्लावन और मेघगर्जन आदि उसके इशारों पर चलते हैं। वह संसार में विवर्तन करता है, परन्तु अपने आप विवर्तनहीन बना रहता है।
प्रश्न: (क) अभिकर्ता शब्द का अर्थ बताते हुए प्रकृति के विविध अभिकर्त्ताओं का नामोल्लेख कीजिए।
प्रश्न: (ख) प्रकृति के दोनों रूपों का उल्लेख करते हुए संक्षेप में उनकी विशेषताएँ बताइए।
प्रश्न: (ग) परिवर्तनों के सैनिकों के नाम लिखिए।
प्रश्न: (घ) ‘परिवर्तन संसार में विवर्तन करता है, परन्तु अपने आप विवर्तनहीन बना रहता है।’ इस कथन का आशय बताइए।
प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर: (क) अभिकर्त्ता शब्द का अर्थ है – एजेण्ट, प्रतिनिधि। प्रकृति के विविध अभिकर्त्ता हवा, पानी, अतूफान, बादल, बिजली आदि हैं।
उत्तर: (ख) प्रकृति के दो रूप हैं – आनन्दकारी रूप, विनष्टकारी रूप। प्रकृति अपने आनन्दकारी रूप के द्वारा नित नए रूप धारण करती रहती है; जैसे आकाश में स्थित सुनहला बादल पल-प्रतिपल अपने रूप-रंग में परिवर्तन करके सबको आनन्द प्रदान करता है। वहीं विनष्टकारी रूप आँधी, तूफान, बाढ़, अग्नि आदि के द्वारा उस भूभाग को नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। कई बार तो पूरा का पूरा परिदृश्य नक्शे से गायब हो जाता है।
उत्तर: (ग) वह्नि, बाढ़, भूकम्प, जलप्लावन और मेघगर्जन आदि परिवर्तनों के सैनिकों के नाम हैं।
उत्तर: (घ) इस कथन का आशय यह है कि परिवर्तन संसार को गतिशील बनाता है, जबकि वह स्वयं गतिहीन रहता है।
उत्तर: (ङ) शीर्षक – ‘प्रकृति और परिवर्तन’ अथवा ‘परिवर्तन’।