हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको अम्लीय वर्षा के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
अम्लीय वर्षा
अम्लीय वर्षा वायु प्रदूषण का विनाशकारी प्रभाव है। विभिन्न उत्पादन क्रियाओं -उद्योगों, कारखानों, वाहन एवं तेल शोधकों से निकली कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2), वायु में घुल जाती है।
वर्षा जब होती है जब सूर्य किरणों की ऊष्मा समुद्र की सतह, झीलों एवं नदियों की जल सतह पर वाष्पीकरण को उत्प्रेरित करती है। इस विधि के अंतर्गत जो जल वाष्प बनती है एक ऊँचाई तक वायुमंडल में जाती है,
वहाँ यह आद्रर्ता में संघनित हो जाती है। यदि अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं तब यह वर्षा के रूप में पृथ्वी पर आती है। अम्लीय वर्षा की स्थिति में जलवाष्प वायुमंडल में पहुँचकर संघनित होती और SO2, NO2 एवं CO2 गैसों से जो वायुमंडल में पाई जाती हैं, उनसे अभिक्रिया करती हैं।
यह गैस अभिक्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulphuric Acid), नाइट्रिक अम्ल (Nitric Acid) एवं कार्बोनिक अम्ल (Carbonic Acid) का निर्माण करती है। जब यह वर्षा होती है तब यह वायुमंडलीय प्रदूषक मिट्टी, वनस्पति, सतही जल या जलाशयों में संचित हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप क्षति होती है, क्योंकि प्रदूषक अम्लीय होते हैं।
अम्लीय वर्षा के प्रभाव
अम्लीय वर्षा का अधिकतम प्रभाव वनस्पतियों पर दिखाई देता है। वनस्पति नष्ट हो जाती हैं, पत्त्ाों के रंग में परिवर्तन, वृक्षों के शिखर की सीमित वृद्धि, वनस्पति, वृक्षों की वृद्धि एवं प्रजनन में कमी, असमय फूलों, पत्त्ाों एवं कलियों का गिरना।
अनेक देशों में वनों का क्षेत्र नष्ट होता जा रहा है।
अम्लीय वर्षा के प्रभाव से जलीय जीव जात मछलियाँ, शैवाल एवं अन्य जलीय प्राणी नष्ट हो रहे हैं। मछलियाँ अपने शरीर में लवण के स्तर को संतुलित नहीं रख पाती हैं तथा हानिकारक विषाक्त तत्व जैसे – जस्ता, सीसा, कैडमियम, मैगनीज, निकल, एल्यूमीनियम की सान्द्रता मछलियों के शरीर में अधिक हो जाती है जिसके कारण मछलियाँ एवं जीव जात की मृत्यु हो जाती है। इन मछलियों के खाने से मनुष्य प्रभावित होता है।
जलीयकाय अनुपयोगी हो जाते हैं। झीलों, तालाब में उद्योगों से निकली SO2, NO2 अन्य हाइड्रोकार्बन्स के मिल जाने से इनकी जैविक सम्पदा नष्ट हो जाती है, इस कारण इन झीलों को जैविक सम्पदा की दृष्टि से मृत झीलें (Dead Lakes) कहा जाता है।
अम्लीय वर्षा के कारण मिट्टी अम्लीय हो जाती है, इस कारण मृदा की उर्वरता, उत्पादकता समाप्त हो जाती है या कम हो जाती है।
अम्लीय वर्षा के कारण प्राचीन ऐतिहासिक भवनों/पुरातत्वीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भवनों को क्षति पहुँचती है। उदाहरण: भारतवर्ष का ताजमहल, लाल किला, मोती मस्जिद, आगरा एवं ग्वालियर का किला, यूनान की एक्रियोपोलिस, अमेरिका का लिंकन स्मारक आदि की सुंदरता समाप्त हो रही है।
अम्लीय वर्षा के कुप्रभाव
- अम्ल वर्षा (acid rain) से जलसाधन प्रदूषित होते हैं जिससे जल में रहने वाले जीवों में से मछलियाँ सर्वाधिक प्रभावित हुई हैं.
- अम्ल वर्षा (acid rain) से जंगलों को क्षति पहुँची है. पश्चिमी जर्मनी के तीन चौथाई जंगलों को अम्ल वर्षा (acid rain) से हानि पहुँची है.
- इमारतों को भी अम्ल वर्षा (acid rain) से नुकसान पहुँचता है. मुख्यतया SO2 चूना पत्थर द्वारा अवशोषित होकर उसे जिप्सम में बदल देती है जिससे दरारें पड़ जाती हैं.
- अम्ल वर्षा (acid rain) का एक अन्य कुप्रभाव संक्षारण (Corrosion) के रूप में देखा जाता है. इससे ताँबें की बनी नालियाँ प्रभावित होती हैं और मिट्टी में से अलमुनियम (Al) घुलने लगता है. यही नहीं सीसा (Pb) कैडमियम (Cd) तथा पारद (Hg) भी घुलकर जल को जहरीला बनाते हैं.