हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको पायस के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
पायस किसे कहते हैं?
ऐसा निकाय जिसमें एक द्रव की बूंदे दूसरे द्रव में परिक्षिप्र रहती है, अर्थात जब एक द्रव दूसरे द्रव अमिश्रणीय द्रव में परिक्षिप्र होकर कोलाइडी विलयन बनाता है पायस कहलाता है।
पायसीकरण किसे कहते हैं?
जब दो या दो से अधिक द्रवों को आपस मिलाया जाता है, तो पायस प्राप्त होते हैं, इस क्रिया को पायसीकरण कहते हैं। पायस स्थायी नहीं होते हैं, क्योंकि द्रवो के बीच ससंजक बल अधिक होता है।
पायस के प्रकार
- जल में तेल– जब जल की अधिक मात्रा में तेल को लेकर हिलाया जाता है तो जल में तेल प्रकार का पायस बनता है। उदाहरण- दूध
- तेल में जल– जब तेल की अधिक मात्रा में कम मात्रा में जल को मिलाकर हिलाया जाता है तो तेल में एक प्रकार का पायस बनता है। उदाहरण- कॉड-लिवर या कोल्ड क्रीम
उपयोग
- आमाशय व छोटी आंत में वसा का पाचन पायसीकरण की प्रक्रिया से ही होता है।
- साबुन तथा अपमार्जक की क्रियाविधि पायसीकरण के द्वारा ही समझायी जा सकती है।
- सड़कों के निर्माण में जल में पायसीक्रत स्फाल्ट प्रयुक्त होता है।
- दूध जो कि हमारे भोजन का महत्वपूर्ण भाग है, वास्तव में द्रव वसा का जल में पायस है।
पायस की विशेषताएं
- स्थिरता - पायस की स्थिरता उनकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता होती है। सही स्थिरक (emulsifier) का उपयोग करके, पायस को लंबे समय तक स्थिर रखा जा सकता है।
- फैलाव - पायस में दो अमिश्रणीय द्रव्यों के बारीक कण एक दूसरे में समान रूप से फैले होते हैं।
- अवक्षेपण - बिना स्थिरक के, पायस में दो चरण अलग हो सकते हैं, जिसे अवक्षेपण कहते हैं।
अंतिम निष्कर्ष– दोस्तों आज मैंने इस पोस्ट के माध्यम से आपको पता है कि पारस क्या होता है और इसके उपयोग क्या होते हैं।
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