हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको रसारोहण के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
रसारोहण के बारे में
अवशोषित जल का गुरुत्वाकर्षण शक्ति (gravitational force) के विपरीत पौधे के वायवीय भागों (Pneumatic parts) में ऊपर चढ़ने को जल का स्थानांतरण (परिवहन) कहते हैं, लेकिन यह शुद्ध जल (pure water) नहीं होता है, इसमें लवण भी घुलित अवस्था में होते हैं, अतः इसे रसारोहण (ascent of sap) भी कहते हैं।
मूलदाब सिद्धान्त
“सक्रिय जल अवशोषण के समय जड़ की जाइलम वाहिकाओं में उत्पन्न द्रवस्थैतिक दाब को मूलदाब कहते हैं।” मूलदाब शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम स्टीफन हेल्स (stephan Hales, 1727) ने किया था. मूलदाब मूल कोशिकाओं द्वारा सक्रिय जल अवशोषण के दौरान एकत्रित जल के कारण उत्पन्न द्रवस्थैतिक दाब (hydrostatic pressure) है। रसारोहण का मूलदाब सिद्धांत प्रीस्टले (priestly) ने प्रस्तुत किया।
इस सिद्धांत के अनुसार “जड़ों में उत्पन्न मूलदाब अवशोषित जल को तने में पत्तियों तक पहुंचा देता है”। इस सिद्धांत के समर्थन में दो प्रमाण है- रसस्त्राव (bleeding) तथा बिंदुस्त्राव (guttation), जो इस सिद्धांत को आधार प्रदान करते हैं। परंतु यह सिद्धांत निम्नलिखित कारणों के आधार पर रसारोहण (ascent of sap) को समझाने में विफल रहा।
- यह मूलदाब का अधिकतम मान 2 atm तक पाया जाता है जो जल को अधिक से अधिक 60 फीट तक उठा सकता है, जबकि लंबे पौधे इससे अधिक दाब चाहते हैं।
- अनावृतबीजी पौधों (gymnosperms) में मूलदाब का अभाव होता है, जबकि इस समूह में सबसे लंबे पौधे सम्मिलित है।
- दोपहर के बाद वाष्पोत्सर्जन (transpiration) की उच्च दर के कारण पौधे (plant) में मूलदाब शून्य होता है, लेकिन इस स्थिति में भी पौधे में लगातार रसारोहण (ascent of sap) की क्रिया होती रहती है।
- मूलदाब के अभाव में भी रसारोहण होता रहता है। एक कटी हुई शाखा (branch) को पानी में रखने पर उसमें पानी लगातार (continue) ऊपर चढ़ता रहता है।
जैव सिद्धान्त
जैव सिद्धांत (bio theory) के अनुसार रसारोहण के लिए जीवित कोशिकाओं (living cells) का होना आवश्यक है। परंतु अब यह सिद्ध (proved) हो चुका है कि रसारोहण के लिए जीवित कोशिकाओं (cells) का होना आवश्यक नहीं है। अतः इन सिद्धांतों (theory) का कोई विशेष महत्व नहीं है। दो प्रमुख जैव सिद्धान्त निम्न प्रकार से हैं।
रिले पम्प सिद्धान्त
रिले पम्प सिद्धान्त गॉडलेवस्की (godlewski, 1884) ने प्रस्तुत किया था। इस सिद्धांत के अनुसार जल तने में सीढ़ीनुमा पथ (stair case path) द्वारा ऊपर चढ़ता है। इसमें जाइलम मृदुतक कोशिकाओं के परासरण दाब में आवर्ती परिवर्तन (periodic changes) होते रहते हैं जिसके फलस्वरूप ये कोशिकाएं अपने से ऊपर स्थित जाइलम वाहिका में जल पम्प कर देती है। इस प्रकार जाइलम से संबंध जीवित कोशिकाओं से जल वाहिकाओं तत्वों (Water vessels elements) में निरंतर ऊपर की ओर बढ़ता है। यह सिद्धांत निम्नलिखित आपत्तियो (objection) के कारण अमान्य है।
- जाइलम मृदुतक कोशिकाओं तथा जाइलम वाहिकाओं के बीच सीढीनुमा (scalariform) व्यवस्था नहीं पाई जाती है।
- जीवित कोशिकाओं को प्रभावित करने वाले संदमक पदार्थों (inhibitors) से रसारोहण की दर में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- जीवित कोशिकाओं की अनुपस्थिति में भी रसारोहण होता रहता है स्ट्रॉसबर्गर (starsburgher) के प्रयोग के अनुसार शाखा के सिरे को पिक्रिक अम्ल (picric acid) डुबोकर कोशिकाओं को मृत कर देने पर भी रसारोहण जारी रहता है।
बोस का स्पंदन सिद्धान्त
बोस का स्पंदन सिद्धांत सर जे. सी. बोस (sir j.c. boss, 1923) के अनुसार, पौधों में रसारोहण वल्कुट की सबसे भीतरी परत में नियमित लयबद्ध स्पंदन (rhythmic pulsation) के फलस्वरुप होता है। इस परत में इस प्रकार की स्पंदन क्रियाओं का प्रदर्शन एक विद्युत प्रोब (electric probe) द्वारा दर्शाया गया जिसमें एक सूचक सुई तथा गैल्वेनोमीटर (galvanometer) लगा हुआ था। जब सूचक सुई को डेस्मोडियम (desmodium) पौधे के तने के अंदर वल्कुट की आंतरिक परत तक प्रवेश कराते हैं तो गैल्वेनोमीटर की सुई में दोलन (oscillation) लक्षित होते हैं।
गैल्वेनोमीटर (galvanometer) में इस प्रकार का परिवर्तन इस परत (layer) के अलावा किसी भी अन्य स्थान पर नहीं देखा गया। बोस के अनुसार वल्कुट की भीतरी परत की कोशिकाओं (Inner layer cells) में होने वाली स्पंदन क्रिया ही रसारोहण के लिए उत्तरदायी है। बोस का स्पंदन सिद्धांत निम्नलिखित आपत्तियो (objection) के कारण अमान्य है।
- बोस के बाद के वैज्ञानिकों (scientist) द्वारा यह देखा गया कि स्पंदन (flutter) तथा रसारोहण की दरों में कोई सह-संबंध नहीं है।
- अन्य वैज्ञानिक बोस द्वारा दर्शायी गई स्पंदन गति (pulsing speed) को प्रमाणित नहीं कर सके।
- स्ट्रॉसबर्गर के प्रयोग (experiment) द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि रसारोहण में जीवित कोशिकाओं (living cells) का योगदान नहीं होता है।
- रसारोहण के लिए प्रत्येक सेकंड में लगभग 230 से 400 स्पंदन कोशिकाओं में आवश्यक है, लेकिन यह दर बोस द्वारा पायी गई दर से लगभग 8,000 से 30,000 गुनी अधिक है।
भौतिक सिद्धान्त
भौतिक सिद्धांत (physical theory) के अनुसार रसारोहण की क्रिया जीवित कोशिकाओं (living cells) द्वारा नहीं होती है अपितु कुछ भौतिक बलों (physical forces) द्वारा संपन्न होती है। इसके अंतर्गत चार निम्न सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं।
केशिकत्व सिद्धान्त
यह केशिकत्व सिद्धांत के अनुसार जाइलम की वाहिकाओं की तुलना केशिका नली (capillary tube) से की जा सकती है। बोह्म (boehm) के के अनुसार जाइलम में जल केशिका क्रिया (capillary action) अथवा केशिका बल (capillary force) के द्वारा ऊपर को चढ़ता है। यह सिद्धांत निम्नलिखित आपत्तियों के कारण अमान्य है।
- केशिकत्व (capillarity) के लिए पानी की खुली सतह का होना आवश्यक है, जबकि जाइलम तत्वों (xylem elements) में खुली सतह का अभाव होता है।
- रसारोहण की दृष्टि से केशिकत्व (capillarity) का मान बहुत कम होता है। सामान्य वाहिकीय तत्वों (vascular elements) में जल अधिक से अधिक 1.5 मीटर ऊंचाई तक ऊपर चढ़ सकता है।
- केशिकत्व के लिए केशिका नली (capillary tube) का एक सिरा जल के सीधे संपर्क में होना आवश्यक है, परंतु मृदा जल (soil water) सीधे वाहिकाओं के संपर्क में नहीं होता है।
- अनावृतबीजी पौधों में वाहिकाएं अनुपस्थित होती हैं तथा वाहिनिकाओ में अतःभित्ति (cross wall) के कारण ये केशिका का कार्य नहीं करती हैं।
अन्तःशोषण सिद्धान्त
अन्तःशोषण सिद्धान्त के अनुसार, रसारोहण, वाहिकाओं की मोटी भित्तियो द्वारा जल के अन्तःशोषण से होता है, क्योंकि इनकी भित्ति में कोलाइडी कण उपस्थिति होते है। यह सिद्धांत अग्रलिखित आपत्तियों के कारण अमान्य है।
- यदि किसी शाखा के कटे सिरे पर वाहिकाओं की गुहिका (lumen) को मोम से बंद कर दिया जाय तो शाखा पर लगी पत्तियां मुरझा जाती है। इससे सिद्ध होता है कि रसारोहण अन्तःशोषण से नहीं होता है।
- रसारोहण भित्तियो द्वारा नहीं जाइलम की गुहिका (xylem cavity) द्वारा होता है।
- अन्तःशोषण (inhalation) द्वारा रसारोहण (ascent of sap) बहुत धीमी गति से ही संभव है।
वायुमण्डलीय सिद्धान्त
वायुमंडलीय दाब सिद्धांत (atmospheric pressure theory) के अनुसार, रसारोहण वायुमंडलीय दाब के कारण होता है लेकिन सामान्य वायुमंडलीय दाब (atmospheric pressure) जल को केवल 30 फीट ऊंचाई तक ही पहुंचा सकता है। इसके अतिरिक्त वायुमंडलीय दाब पानी की स्वतंत्र खुली सतह (open surface) पर कार्य करता है जो वाहिकाओं में अनुपस्थित होती हैं। इन्हीं कारणों से इस सिद्धांत को भी अमान्य कर दिया गया।
डिक्सन तथा जॉली का ससंजन सिद्धान्त
डिक्सन तथा जॉली का ससंजन सिद्धान्त डिक्सन तथा जॉली ने सन् 1894 में प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत सबसे आधुनिक, महत्वपूर्ण एवं सबसे अधिक मान्य है। यह सिद्धांत मुख्य रूप से दो निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है।
- जल के अणुओ के ससंजन (cohesion) एवं आसंजन (adhesion) गुणों के कारण जाइलम में जल का अखण्ड-स्तंभ (continuous columm) बन जाता है।
- वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष (pull) अथवा तनाव (tension) इस जल स्तंभ (water columm) को प्रभावित करता है।
नोट– एक ही प्रकार के अणुओं (particle) के मध्य उपस्थित आकर्षण (attraction) ससंजन तथा असमान अणुओं के मध्य उपस्थित आकर्षण आसंजन कहलाता है।