हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको ऊतक के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
ऊतक
उत्तक क्या है , परिभाषा , प्रकार , पुष्पी पादपों का शरीर ऊत्तक किसे कहते है ? पादप उत्तक कितने प्रकार के होते हैं ?
पुष्पी पादपों का शरीर
उत्तक (Tissue in hindi ) - कोशिकाओं का ऐसा समूह जो उद्भव व कार्य की दृष्टि से समान होता है , ऊत्तक कहलाता है। पादपों में ऊत्तक मुख्य रूप से दो प्रकार का होता हैं।
(A) विभज्योत्तकी - यह उत्तक पौधे के वृद्धिशील भागों में पाया जाता है , इस ऊत्तक की कोशिकाएँ निरन्तर विभाजन कर नयी कोशिकाएं बनाती रहती है। यह उत्तक पौधे में स्थिति के आधार पर तीन प्रकार का होता है।
- शीर्षस्थ मेरेस्टेमी - यह मेरेस्टेमी ऊत्तक पौधे के शीर्षस्थ भागों जैसे – जड़ के शीर्ष , प्ररोह के शीर्ष पर पाया जाता है। इस ऊत्तक द्वारा बनी नयी कोशिकाओं से पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है , इस उत्तक के कारण पौधे जीवन भर वृद्धि करते है।
- अंतर्वेशी मेरेस्टेमी - यह उत्तक पौधों के पत्तियों की आधार पर्ण व पर्णसंधियों में पाया जाता है , यह स्थायी उत्तक के मध्य होता है। इस उत्तक के कारण पौधे के मध्य भागो में लम्बाई बढती है।
- पाशर्व मेरेस्टेमी - यह उत्तक पौधों के पाशर्व भागों में स्थित होता है। इस उत्तक से बनी कोशिका से पौधों की मोटाई में वृद्धि होती है।
(B) स्थायी उत्तक - ऐसा उत्तक जिसकी कोशिकाएँ स्थायी या अस्थायी रूप से विभाजन की क्षमता खो देती है , स्थायी उत्तक कहलाता है।
इस उत्तक की कोशिकाएँ जीवित या मृत प्रकार की होती है।
यह उत्तक पुन- दो प्रकार का होता है।
(1) सरल स्थायी उत्तक - यह स्थायी उत्तक समान संरचना वाली कोशिकाओं से मिलकर बना होता है , यह तीन प्रकार का होता है।
- मृदु उत्तक (पैरेन्काइमा) - इस उत्तक की कोशिकाएँ जीवित व जीव द्रव्य युक्त होती है। ये अण्डाकार , गोल आयताकार या बहुभुजी प्रकार की होती है। इन कोशिकाओं के मध्य अन्तरा कोशिकीय अवकाश पाये जाते है। इन कोशिकाओ की कोशिका भित्ति पतली व सेलुलोस की बनी होती है। यह उत्तक प्रकाश संश्लेषण भोजन संचय व स्त्राव का कार्य करती है।
- स्केरेलेंकइमा / दृढ उत्तक - इस उत्तक की कोशिकाएँ परिपक्वव दृढ कठोर जीव द्रव्य विहीन व मृत होती है। इस उत्तक की कोशिकाएँ लम्बी , सक्रीय , सिरों पर नुकीली होती है। इनकी कोशिका भित्ति समान रूप से मोटी व लिग्निन युक्त होती है। कोशिका भित्ति में गर्त पाये जाते है। यह उत्तक पौधों को यांत्रिक शक्ति प्रदान करता है। यह उत्तक फलो की भित्ति बीजो के आवरण , चाय की पत्ती आदि में पाया जाता है।
- कोलेन्काइमा / स्थुलकोण उत्तक - इस उत्तक की कोशिकाएँ जीवित व क्लोरोप्लास्ट युक्त होती है , कोशिका भित्ति पतली परन्तु कोनो पर मोटी होती है , कोशिका भित्ति हेमीसेलुलोस सेलुलोस तथा पेक्टिन की बनी होती है। कोशिकाएँ अण्डाकार गोल या बहुकोणीय होती है। यह पौधों को यांत्रिक शक्ति व मजबूती प्रदान करता है। एकबीजपत्री पादपों में यह अनुपस्थित होता है।
(2) जटिल उत्तक - एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने उत्तक को जटिल उत्तक कहते है।यह दो प्रकार का होता है।
ऊत्तक (tissue in hindi) - एक या एक से अधिक प्रकार की पास पास व्यवस्थित कोशिकाओं का समूह जिसकी कोशिकाएँ संयुक्त रूप से मिलकर किसी एक कार्य को संपादित करती है तो उसे उत्तक कहते है।
वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार किसी विशेष उत्तक में उपस्थित कोशिकाओं की प्रकृति के आधार पर इनको दो वर्गों में विभेदित किया जा सकता है। यह है –
(1) विभाज्योतक (meristematic tissue in hindi)
वह ऊत्तक जिसकी कोशिकाएँ निरंतर विभाजित होती है , विभाज्योतक कहलाता है। इस उत्तक की कोशिकाएं बहुभुजी , गोलाकार या अण्डाकार हो सकती है जिनमें सामान्यतया बड़ा केन्द्रक और सघन जीवद्रव्य होता है। इनमें अंतर्कोशिक स्थल का अभाव होता है। इनका वर्गीकरण विभिन्न आधार पर किया जाता है। यह उत्तक प्राय- मूल शीर्ष और प्ररोह शीर्ष पर स्थित होता है और स्थायी उत्तकों का निर्माण करता है।
(2) स्थाई ऊत्तक (permanent tissue in hindi)
इनमें सम्मिलित कोशिकाएँ स्थायी प्रकृति की होती है और किसी कार्य विशेष को सम्पादित करती है। इनमें कोशिका विभाजन की क्षमता नहीं होती। स्थायी उत्तकों में क्योंकि एक अथवा एक से अधिक प्रकार की कोशिकाएँ संयुक्त रूप से मिलकर किसी कार्य को संपन्न करती है। अत- कोशिकाओं की समानता या असमानता के आधार पर भी इनको हम निम्न श्रेणियों में विभेदित कर सकते है। यह है –
(i) सरल ऊत्तक (simple tissue) -
जिसमे शामिल कोशिकाएं एक ही प्रकार की होती है , सरल उत्तक कहलाता है। जैसे – मृदुत्तक , दृढोत्तक आदि।
(ii) जटिल उत्तक (complex tissue) -
जिसमें सम्मिलित कोशिकाएँ एक से अधिक प्रकार की होती है , जटिल ऊत्तक कहलाते है। जैसे जाइलम और फ्लोएम।
(iii) विशिष्ट उत्तक (special tissue) - इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तकों का एक और वर्ग विभेदित किया जा सकता है , जिसकी कोशिकाएँ भले ही एक अथवा अधिक प्रकार की हो लेकिन इनकी संरचना और कार्य निष्पादन अत्यंत विशिष्ट प्रकार का पाया गया है। ऐसे ऊतकों को एक अलग ही श्रेणी में रखा जा सकता है , इसे विशिष्ट ऊत्तक कहते है जिसमें स्त्रावी संरचनाएँ प्रमुख है।
सरल ऊत्तक (simple tissue in hindi)
जैसा कि हम जानते है , सरल उत्तक की कोशिकाएं समांगी अथवा एक ही प्रकार की होती है। संरचना के आधार पर विभिन्न पौधों में तीन प्रकार के सरल उत्तक पाए जाते है। यह है –
- मृदुतक (parenchyma)
- स्थूलकोणोतक (collenchyma)
- दृढोतक (sclerenchyma)
- मृदुतक (parenchyma)- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है। इस ऊत्तक में शामिल कोशिकाएं सजीव , पतली भित्ति वाली अथवा कोमल होती है। इस ऊत्तक के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित प्रकार है –
- कोशिकाएँ जीवित और स्पष्ट केन्द्रक युक्त होती है। कोशिका भित्ति सेल्यूलोज और उसके साथ बहुधा कैल्शियम पेक्टेट द्वारा निर्मित होती है।
- कोशिकाओं के बीच प्राय- अन्तरकोशिकीय स्थान पाए जाते है।
- कोशिका द्रव्य में स्पष्ट रिक्तिकाएं पायी जाती है।
- कोशिकाओं की आकृति विभिन्न प्रकार की जैसे अण्डाकार , गोलाकार , बहुभुजीय , बेलनाकार अथवा ताराकार हो सकती है।
वितरण - पादप शरीर में मृदुतक कोशिकाएं इनके सभी कोमल गुद्देदार और मांसल भागों जैसे जड़ , तना , पत्तियाँ , बीजपत्र , फल का गूदा , वल्कुट और मज्जा में पायी जाती है। वैसे अनेक उदाहरणों में यह जटिल ऊत्तको में जैसे जाइलम में जाइलम मृदुतक और फ्लोएम में फ्लोएम मृदुतक के रूप में मिलती है।
पादप शरीर का अधिकांश भाग इन सरल प्राथमिक प्रकार की कोशिकाओं का बना होता है। इन कोशिकाओं के समूह को कई बार भरण ऊत्तक भी कहते है। यही नहीं अन्य ऊत्त्कों की कोशिकाओं का प्रारंभिक विकास वस्तुतः मृदुतक कोशिकाओं से ही होता है।
उत्पत्ति - मृदुतक कोशिकाएँ मूल रूप से प्राथमिक विभाज्योतकी कोशिकाओं द्वारा निर्मित होती है और पौधे के विभिन्न हिस्सों का ढांचा बनाती है। पौधे के विभिन्न ऊत्तक क्षेत्र , जैसे – वल्कुट , मज्जा , पर्णमध्योतक , भरण विभाज्योतक से और प्राथमिक संवहन उत्तकों में पाए जाने वाले जाइलम और फ्लोयम मृदुतक प्रोकेम्बियम से बनते है। द्वितीयक वृद्धि के दौरान बनने वाली मृदुतक कोशिकाओं की उत्पत्ति केम्बियम और कार्क केम्बियम से होती है।
संरचना - मृदुतक कोशिकाएं सामान्यतया समव्यापी प्रकार की होती है , लेकिन अनेक पौधों में यह लम्बवत अंडाकार अथवा बहुकोणीय दिखाई देती है।
इनका विन्यास सामान्यतया सरल अथवा जटिल प्रकार का हो सकता है। परिपक्व मृदुतक कोशिकाएँ एक दूसरे के पास पास व्यवस्थित पायी जाती है और इसके बीच उपस्थित अंतरकोशिकीय स्थान अत्यंत छोटे होते है। भ्रूणपोष की मृदुतक कोशिकाओं के बीच अंतरकोशिकीय स्थान नहीं पाए जाते लेकिन विभिन्न फलों के गुदो में उपस्थित मृदुतक कोशिकाओं के मध्य पर्याप्त अन्तरकोशिकीय स्थान पाए जाते है और यह कोशिकाएँ शिथिलतापूर्वक व्यवस्थित होती है।
कोशिका भित्ति अत्यन्त पतली और सेल्यूलोज और पेक्टिन अथवा हेमीसेल्यूलोज की बनी होती है और भित्ति में जीवद्रव्य तन्तु भी सामान्यतया उपस्थित रहते है। लेकिन द्वितीयक जाइलम में उपस्थित जाइलम मृदुतक की कोशिका भित्ति मोटी और लिग्निन युक्त होती है।
पादप शरीर में इनकी स्थिति और कार्य के अनुसार मृदुतक कोशिकाओं में उपस्थित अंतर्वस्तुएँ भी अलग अलग प्रकार की हो सकती है , जैसे प्रकाश संश्लेषी मृदुतक में हरितलवक और मंड कण पाए जाते है जबकि भोजन संगृहीत करने वाली संचयी मृदुतक कोशिकाओं में मंड कण , तेल गोलिकाओं और शर्कराओं की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। कुछ मृदुतक कोशिकाओं में टेनिन और अल्कलाइड भी पाए जाते है। इस प्रकार हम देखते है कि अंतर्वस्तुओं की दृष्टि से मृदुतक कोशिकाओं में काफी विविधता पायी जाती है , लेकिन इन सभी में केन्द्रक आवश्यक रूप से उपस्थित होता है।
मृदुतक के प्रकार (types of parenchyma tissue)
पादप शरीर में स्थिति , कार्य और संरचना के आधार पर मृदुतक कोशिकाएँ विभिन्न प्रकार से रूपांतरित हो सकती है , जिसके उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से है –
(1) हरितमृदूतक (chlorenchyma tissue) - वे मृदुतक कोशिकाएं जिनमें पर्याप्त मात्रा में हरितलवक पाए जाते है तो उनको हरितमृदुतक कहते है। इन कोशिकाओं का प्रमुख कार्य स्वपोषी पौधों में प्रकाश संश्लेषण का होता है। पत्तियों की पर्ण मध्योतक विशेषकर द्विबीजपत्री पर्ण में खंभ मृदुतक और स्पंजी उत्तक हरितमृदूतक के प्रमुख उदाहरण है।
(2) वायुतक (aerenchyma) - मृदुतक कोशिकाओं के मध्य जब अपेक्षाकृत बड़े आकार के अन्तरकोशिकीय स्थान बन जाते है तथा उन स्थानों में वायु भरी रहती है जो वायुयुक्त स्थानों के आस पास उपस्थित इन ऊत्तको को वायुतक कहते है। इनका प्रमुख कार्य गैसीय विनिमय के साथ साथ जिस पादप अंग में यह उपस्थित हो उसे प्लावी अवस्था में रखने का होता है। इससे पादप शरीर अथवा पादप अंग पानी की सतह पर तैरते रहते है।
(3) इडियोब्लास्ट (Idioblast) - यह विशेष प्रकार की मृदुतक कोशिकाएँ होती है जिनमें विभिन्न रासायनिक पदार्थ जैसे – टेनिन , तेल अथवा वसीय पदार्थ और कैल्शियम आक्सेलेट के क्रिस्टल और रेफिड्स आदि संचित रहते है।
(4) दीर्घमृदूतक (prosenchyma) - यह मृदूतक कोशिकाएं समव्यापी नहीं होती अपितु यह सुदीर्घित और दोनों सिरों पर नुकीली अथवा संकड़ी होती है। कुछ द्विबीजपत्रियों के परिरंभ में यह कोशिकाएँ पायी जाती है।
(5) ताराकृत मृदूतक (stellate parenchyma) - इनकी आकृति तारे के समान होती है और यह केले के पर्णवृन्त और कई जलीय पौधों में पायी जाती है।
मृदूतक के कार्य (functions of parenchyma tissue)
- हरितमृदूतक कोशिकाएँ प्रकाश संश्लेषण का कार्य करती है।
- सामान्य मृदूतक कोशिकाएँ विभिन्न खाद्य पदार्थो के संचय का कार्य भी करती है , जैसे आलू औ अरबी में स्टार्च का संचय।
- वायुतक जो प्राय- जलीय पौधों में पायी जाती है। वे गैसीय विनिमय के साथ साथ पादप अंग को प्लावी अवस्था में भी रखने का कार्य करती है।
- विभिन्न मरुद्भिद माँसल पौधों जैसे केक्टस में उपस्थित मृदुतक कोशिकाएं जल संचय का कार्य करती है।
- स्फीत अवस्था में मृदुतक कोशिकाएँ पादप अंग को यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करती है।
- पादप शरीर के कट फट जाने अथवा क्षतिग्रस्त हो जाने की अवस्था में घाव भरने का कार्य मृदुतक कोशिकाओं द्वारा ही संपादित होता है।
- आवश्यकता पड़ने पर मृदूतक कोशिकाएँ द्वितीयक विभाज्योतक में परिवर्तित होकर संवहन केम्बियम के रूप में कार्य करने लगती है और इस प्रकार यह पौधे की द्वितीयक वृद्धि में योगदान देती है।
B. स्थूलकोणोतक (collenchyma)
यह वस्तुतः विशेष प्रकार की मृदूतक कोशिकाएँ होती है जिनकी कोशिका भित्ति के कोनों पर स्थूलन पदार्थ का निक्षेप पाया जाता है।
स्थूलकोणोंतक कोशिकाएं मृदुतक की तुलना में अधिक मोटी भित्ति युक्त होती है। कोशिका भित्ति में सेल्यूलोज , हेमीसेल्यूलोज और पेक्टिन होता है परन्तु लिग्निन नहीं पाया जाता। पेक्टिन के जलरागी गुण के कारण कोशिकाभित्ति नमनशील और लचीली बनी रहती है। यहाँ कोशिका भित्ति की मोटाई असमान होती है। यह मोटाई कोणों पर विशेषकर उन कोणों पर जहाँ कि 3 , 4 कोनों के कोण मिलते है वहां अधिक होती है।
इस उत्तक का एक और महत्वपूर्ण लक्षण यह भी है कि यहाँ कोशिका भित्ति की मोटाई में वृद्धि अथवा इसका स्थूलन कोशिका की लम्बाई बढ़ने के साथ साथ ही होता जाता है। इसी कारण स्थूलकोणोतक पौधे के युवा या तरुण हिस्सों को जैसे टहनी , पर्ण , पर्णवृन्त को बिना इनकी वृद्धि में बाधा डालते हुए एक लचकमयी दृढ़ता प्रदान करता है। यही कारण है कि पौधे के यह भाग हवा के प्रबल झौकों को आसानी से सहन कर लेते है , उनकी दिशा में मुड़ जरुर जाते है पर टूटते नहीं है।
वितरण - यह उत्तक केवल पौधे के प्राथमिक भागों में ही जैसे वल्कुट अथवा अधोत्वचा के रूप में बाह्य त्वचा के नीचे 3-4 परतों में पाए जाते है जैसे सूरजमुखी और कुकुरबिटा के तने में।
एकबीजपत्री पौधों में प्राय- स्थूलकोणोतक नहीं पाए जाते। इसी प्रकार भूमिगत तनों और जड़ों में भी स्थूलकोणोतक उपस्थित नहीं होते।
स्थूलकोणोतक के प्रकार (types of collenchyma tissue)
पेक्टिन और हेमीसेल्यूलोज के विभिन्न प्रकार के स्थूलन के अनुसार स्थूलकोणोतक तीन प्रकार के होते है –
कोणीय स्थूलकोणोतक- स्थूलकोणोतक कोशिकाओं में जब स्थूलन पदार्थ का जमाव कोशिकाओं के कोणों पर पाया जाता है तब उनको कोणीय स्थूलकोणोतक कहते है। उदाहरण – टमाटर और धतूरा।
रिक्तिकामय अथवा नलिकावत स्थूलकोणोतक- इस प्रकार की स्थूल कोणोतक कोशिकाओं में सुस्पष्ट अन्तरकोशिकीय स्थान पाए जाते है और स्थूलन पदार्थ का जमाव कोशिका भित्ति के उन भागों पर होता है जो कोशिका भित्ति के सम्मुख अंतरकोशिकीय स्थानों के सामने होते है। उदाहरण - सेल्विया , होलीहोक और मालवा।
स्तरीय स्थूलकोणोतक- यहाँ स्थूलन पदार्थ का जमाव स्पर्श रेखीय कोशिका भित्तियों पर होता है और ये कोशिकाएँ पट्टिकाओं के समान व्यवस्थित दिखाई देती है। उदाहरण – मूली।