हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको औद्योगिक रुग्णता के गुण तथा दोष के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
औद्योगिक रुग्णता की परिभाषा
भारत में औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में एक प्रमुख समस्या औद्योगिक रुग्णता की है। रुग्ण इकाइयों के निरंतर वित्तीय प्रभाव से बैंकिंग संसाधनों के दुरप्रयोग के साथ साथ सरकारी व्यय में भी वृद्धि होती है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी एक विज्ञप्ति में औद्योगिक रुग्णता को इस प्रकार परिभाषित किया है, रुग्ण औद्योगिक इकाई वह होगी जिसे वर्तमान वर्ष में नगद हानि सहन करनी पड़ी है और आने वाले 2 वर्षों में उसकी दिशा में निरंतर रूप से घाटे की स्पष्ट संभावनाएं होती है।
औद्योगिक रुग्णता के लक्षण
- व्यवसाय के चालू अनुपातों में गिरावट, दोषपूर्ण माल किराया सूची, इन्वेंटरी आवृत्ति में निरंतर कमी के फल स्वरुप माल के स्टाक मैं वृद्धि।
- रोकड़ निर्गमन मैं स्थिरता, किंतु रोकड़ आगामों निरंतर गिरावट।
- बाजार की दृष्टि से उपकरण के विशुद्ध मूल्यांकन में गिरावट, अंश मूल्यों में कमी तथा व्यवसाय में अवनति।
- अंशु के स्वामित्व एवं व्यवसाय की प्रबंध व्यवस्था में अचानक परिवर्तन।
- कटौती में वृद्धि करके बिक्री बढ़ाने के असफल प्रयास, पुराने ग्राहकों से टकराव वह कानूनी उलझने।
औद्योगिक रुग्णता के कारण
यह निम्न प्रकार से हैं-
1. आंतरिक करण
1. उपक्रम के स्वामियों में स्वार्थपरता-यदि उपक्रम के स्वामी स्वार्थी बन जाए तो वह अनुचित कार्रवाई करने लगेंगे। जैसे - बेईमानी, खातों में हेरफेर, अपव्यय आदि। ऐसा होने से व्यवसाई को हानि होने लगती हैं। हानी होते ही साझेदारों में मतभेद उत्पन्न हो जाता है और उनका रवैया परस्कर सहयोग पूर्ण नहीं रहता। फल स्वरुप उपक्रम धीरे-धीरे रुग्ण अवस्था में आ जाता है।
2. श्रम-प्रबंध संघर्ष- जिस उपक्रम में सौहार्दपूर्ण श्रम प्रबंध नहीं पाए जाते और निरंतर औद्योगिक संघर्ष होते रहते हैं, वहां उत्पादन के माल एवं किस्म दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे उत्पादन गिर जाता है, उत्पादन लागत बढ़ जाती है और लाभ की मात्रा निरंतर गिरने लगती है।
2. बाहृय कारण
1. तकनीकी परिवर्तन-औद्योगिक क्षेत्र में उत्पाद एवं उत्पादों की किस में सुधार के लिए अनुसंधान होते रहते हैं। नए नए अनुसंधान एवं अविष्कार कुछ उत्पादनों को अनुपयुक्त बना देते हैं। इसमें संबंधित औद्योगिक इकाइयां संकट में आ जाती है।
2. सरकारी नीति में आकस्मिक परिवर्तन- सरकार की तत्कालीन औद्योगिक नीति के तहत औद्योगिक उपक्रमों की स्थापना हो जाती है। इस नीति में आकाश में परिवर्तन से औद्योगिक संकट उत्पन्न हो जाता है।
3. अंतरराष्ट्रीय नीतियों में परिवर्तन- यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिवर्तन हो जाते हैं तो भी प्रवाहित उपक्रम संकट में आ जाते हैं। तेल के मूल्य में वृद्धि, आयात निर्यात नीति में परिवर्तन, व्यापारिक प्रति बंधन, आदि से भी औद्योगिक रुग्णता में वृद्धि होती है।
औद्योगिक रुग्णता को रोकने के उपाय
- औद्योगिक रुग्णता के लिए उत्तरदाई व्यक्तियों को उचित दंड दिया जाए।
- आवश्यक होने पर रुग्ण इकाई के विकास के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
- रुग्ण इकाई की प्रबंध व्यवस्था में व्यापक फेरबदल किया जाना चाहिए।
- रुग्ण औद्योगिक इकाई को रुग्णता से बाहर निकालने के लिए सभी आवश्यक उपाय अपनाए जाने चाहिए।
- बैंक वित्तीय संस्थान व सरकार ऐसे उद्योगों को उपदान दे।