हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन 1918 में गुना मध्य प्रदेश में हुआ प्रारंभिक शिक्षा झांसी उत्तर प्रदेश में ग्रहण करने के बाद उन्होंने m.a. अंग्रेजी व एलएलबी की उपाधि लखनऊ से अर्जित कि शुरू में कुछ समय तक वकालत की बाद में आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यरत हुए उनका निधन 1944 म हुआ।
गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएं-
1-नाश और निर्माण
2-धूप के धान
3-सिलापंख चमकीले
4-भीतरी नदी की यात्रा
नई कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर रोमानी मिजाज के कवि माने जाते हैं वह विषय की मौलिकता के पक्षधर तो है परंतु सिर्फ की विलक्षणता को नजरअंदाज करके नहीं चित्र को अधिक स्पष्ट करने के लिए हुए वातावरण के रंग को भरते हैं।
वह मुक्त छंद में ध्वनि सामने के प्रयोग के कारण दुख के बिना भी कविता में संगीत आत्मक संभव कर सके हैं भाषा के दो रंग उनकी कविताओं में मौजूद हैं वहीं जहां रोमानी कविताओं में छोटी-छोटी ध्वनि वाली बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करते हैं वही क्लासिक मिजाज की कविताओं में लंबी और गंभीर धोने वाले शब्दों को तरहीज देते हैं।
गिरिजाकुमार माथुर की कविता
इनकी कविता निम्न प्रकार से है -
छाया मत छूना
छाया मत छूना मनहोता है दुख दूना मन
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनीछवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअनबनता हर जीवित क्षणछाया मत छूना मनहोगा दुख दूना मन
यश है न वैभव है, मान है न सरमाया;जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिनउसका तू कर पूजन-छाया मत छूना मनहोगा दुख दूना मन
दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहींदेह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,क्या हुया जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसेकर तू भविष्य वरण,छाया मत छूना मनहोगा दुख दूना मन
अर्थ-
कविता में कवि ने बताया है कि हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए, चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों न हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। आँखों के सामने भूतकाल के कितने ही मोहक चित्र तैरने लगते हैं।
प्रेयसी के साथ रात बिताने के बाद केवल उसके तन की सुगंध ही शेष रह जाती है। कोई भी सुहानी चाँदनी रात बस बालों में लगे बेले के फूलों की याद दिला सकती है। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। इसलिए हमें अपने भूतकाल को कभी भी पकड़ कर नहीं रखना चाहिए।
यश या वैभव या पीछे की जमापूँजी; कुछ भी बाकी नहीं रहता है। आप जितना ही दौड़ेंगे उतना ज्यादा भूलभुलैया में खो जाएँगे; क्योंकि भूतकाल में बहुत कुछ घटित हो चुका होता है। अपने भूतकाल की कीर्तियों पर किसी बड़प्पन का अहसास किसी मृगमरीचिका की तरह है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चाँद के पीछे एक काली रात छिपी होती है। इसलिए भूतकाल को भूलकर हमें अपने वर्तमान की ओर ध्यान देना चाहिए।
कई बार ऐसा होता है कि हिम्मत होने के बावजूद आदमी दुविधा में पड़ जाता है और उसे सही रास्ता नहीं दिखता। कई बार आपका शरीर तो स्वस्थ रहता है लेकिन मन के अंदर हजारों दुख भरे होते हैं। कई लोग छोटी या बड़ी बातों पर दुखी हो जाते हैं।
जैसे कि सर्दियों की रात में चाँद नहीं दिखने पर। यह उसी तरह है जैसे कि पास तो हो गए लेकिन 90% मार्क नहीं आए। कई बार लोग उचित समय पर कुछ प्राप्त न कर पाने की वजह से दुखी रहते हैं। लेकिन जो न मिले उसे भूल जाना ही बेहतर होता है। भूतकाल को छोड़कर हमें अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए और एक सुनहरे भविष्य के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।