हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको ललद्यद के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
जीवन परिचय
लोकप्रिय संत कवित्री ललद्यद का जन्म सन 1320 ईस्वी के लगभग कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गांव में हुआ था। उन्हें लला, लल्लेश्वरी आदि नामों से भी जाना जाता था। वे जाति और धर्म के भेदभाव पर विश्वास नहीं करती थी। वे धार्मिक आडंबर का विरोध करती थी और प्रेम को सबसे बड़ा जीवन मूल्य मानती थी। उनकी मृत्यु सन 1391 ईस्वी के आसपास मानी जाती है।
रचनाएं – वाख।
काव्यगत विशेषताएं
ललद्यद का अधिकांश साहित्य काव्य रूप में है। अपने काव्य में उन्होंने हिंदी के भक्ति कालीन कवियों के ही समान जाति, धर्म, संप्रदाय आदि के भेदों से ऊपर उठकर ईश्वर की भक्ति पर जोर दिया है। उनके काव्य में धार्मिक आडंबर के विरोध और मानव प्रेम को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
उन्होंने अपनी वाणी मैं जीवन की नश्वरता और इश्वर की अमरता का गायन करते हुए प्रभु भक्ति पर विशेष बल दिया है। उन्होंने जीवन में समभाव अपनाने की प्रेरणा सभी मानवो को दी है। वह अपने एक वाख कहती हैं।
खा खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी,
सम खा तभी होगा समभावी
खुलेगी सांकल बंद द्वार की।
भाषा शैली
ललद्यद अपनी वाखों के लिए प्रसिद्ध है। उनकी काव्य शैली को वाख कहा जाता है। उनकी भाषा लोक जीवन से प्रेरित है अतः ना उसमें पंडितों संस्कृत भाषा का दबाव है और ना दरबारी फारसी का, बल्कि उनके वाखों मैं जनता की सरल भाषा का प्रयोग हुआ है। आधुनिक कश्मीरी भाषा का वह स्तंभ मानी जाती है। वे अपनी भाषा और शैली की स्वाभाविक प्रकृति के कारण आज भी कश्मीरी जनता की स्मृति और वाणी में जीवित है।