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देव का जीवन परिचय

देव का जीवन परिचय

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको देव का जीवन परिचय के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

देव का जन्म

देव का जन्म इटावा में सन 1673 में हुआ था उनका पूरा नाम देव दत्त द्विवेदी था देव के अनेक आश्रय दाताओं में औरंगजेब के पुत्र आजमसाह डीजे परंतु देव को सबसे अधिक संतोष और सम्मान उनकी कविता के गुण ग्राही आश्रयदाता भोगीलाल से प्राप्त हुआ। उन्होंने उनकी कविता पर रिज कर लाखों की संपत्ति दान की उनक काव्य ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है।

देव की प्रमुख पुस्तकें

1- रसविलास,

2- भावविलास,

3- काव्यरसायन,

4- भवानीविलास,

आदि भी देव की प्रमुख ग्रंथ माने जाते हैं।

देव की मृत्यु

देव की मृत्यु सन 1767 में हुई।

देव का परिचय

देव रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं।रीतिकालीन कविता का संबंध दरबारों आश्रयदाताओं से था।इस कारण उसमें दरबारी संस्कृति का चित्रण अधिक हुआ है देव भी इससे अछूते नहीं थे किंतु वह इस प्रभाव से जब-जब भी मुक्त हुए उन्होंने प्रेम और सौंदर्य के सहित चित्र कीजिए अलंकारिकता और शृंगारिकता उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है शब्दों की आवृत्ति के जरिए नया सौंदर्य पैदा करके उन्होंने सुंदर ध्वनि चित्र प्रस्तुत किए हैं।

देव का जन्म इटावा में सन 1673 में हुआ था उनका पूरा नाम देव दत्त द्विवेदी था देव के अनेक आश्रय दाताओं में औरंगजेब के पुत्र आजमसाह डीजे परंतु देव को सबसे अधिक संतोष और सम्मान उनकी कविता के गुण ग्राही आश्रयदाता भोगीलाल से प्राप्त हुआ।

देव का सवैया

पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये  हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

अर्थ

सवैया में कवि देव ने कृष्ण के रूप-सौंदर्य का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है। उन्होंने श्रृंगार के माध्यम से श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का गुण-गान किया है। उन्होंने कृष्ण को दूल्हे के रूप में बताया है। कवि के अनुसार, श्री कृष्ण के पैरों में बजती हुई पायल बहुत ही मधुर ध्वनि पैदा कर रही हैं। उनकी कमर में बंधी हुई करघनी जब हिलती है, तो उससे निकलने वाली किंकिन की आवाज़ भी बड़ी ही सुरीली लगती है।

उनके सांवले शरीर पर पीले रंग का वस्त्र बहुत ही जँच रहा है। उनके गले में पड़ी पुष्पों की माला देखते ही बनती है। श्री कृष्ण के माथे पर मुकुट है और उनके चाँद रूपी मुख से मंद मुस्कान मानो चांदनी के समान फ़ैल रही है। उनकी बड़ी-बड़ी आँखें चंचलता से भरी हुई हैं, जो उनके मुखमंडल पर चार चाँद लगा रही हैं। कवि के अनुसार बृज-दूल्हे (श्री कृष्ण) इस संसार रूपी मंदिर में किसी दीये की भाँति प्रज्वलित है।

कवित्त

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

अर्थ

प्रस्तुत कवित्त में कवि ने वसंत को एक नव शिशु के रूप में दिखाया गया है। उनके अनुसार पेड़ की डालियां वसंत रूपी शिशु के लिए पालने का काम कर रही हैं। वृक्ष की पत्तियाँ पालने में बिछौने की तरह बिछी हुई हैं। फूलों से लदे हुए गुच्छे बालक के लिए एक ढीले-ढाले वस्त्र के रूप में प्रतीत हो रहे हैं। वसंत रूपी बालक के पालने को पवन बीच-बीच में आकर झूला रही है। तोता एवं मैना उससे बातें करके उसे हंसा रहे हैं, उसका दिल बहला रहे हैं।

कोयल भी आ-आकर वसंत-रूपी शिशु से बातें करती है तथा तालियां बजा-बजा कर उसे प्रसन्न करने की कोशिश कर रही है। पुष्प से लदी हुई लतायें किसी साड़ी की तरह दिख रही हैं, जो ऐसी प्रतीत हो रही है कि किसी नायिका ने उसे सिर तक पहना हुआ है। उन पुष्पों से पराग के कण कुछ इस तरह उड़ रहे हैं, मानो घर की बड़ी औरत किसी बच्चे की नजर उतार रही हों। कामदेव के बालक वसंत को रोज सुबह गुलाब चुटकी बजाकर जगाते हैं।