बायोगैस एक अक्षय ईंधन है जो खाद्य स्क्रैप और पशु अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों के टूटने से उत्पन्न होता है। इसका उपयोग विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है जिसमें वाहन ईंधन और हीटिंग और बिजली उत्पादन शामिल है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें।
बायोगैस ज्यादातर मीथेन (CH4), प्राकृतिक गैस में एक ही यौगिक और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से बना है। कच्चे (अनुपचारित) बायोगैस की मीथेन सामग्री 40% -60% से भिन्न हो सकती है, जिसमें CO2 जलवाष्प और अन्य गैसों की थोड़ी मात्रा के साथ शेष का अधिकांश भाग बनाती है।
गोबर गैस (Gobar gas)
हमारे देश को 70% आबादी गाँवों में निवास करती है जहाँ पर प्रचुर मात्रा में पशुधन है। पशुओं से प्राप्त गोवर का उपयोग सामान्यतया केंडे बनाकर जलाने के रूप में किया जाता है, जबकि इसका सदुपयोग जैविक खाद बनाने एवं गोबर गैस उत्पादन में किया जा सकता है। गोबर से उत्तम खाद बनाने के लिए इसे उपयुक्त आकार के गढ़ों में नियमित रूप से भरा जाना चाहिए।
गड्ढा ऊँचे स्थान पर बनाना चाहिए तथा इसको गहराई एक मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। जीवाणुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के किण्वन (Fermentation) से उत्पादित गैस को बायो गैस कहते हैं। भारत में बायो गैस उत्पादन के लिए सामान्यतया गोवर का उपयोग किया जाता है।
कई गाँवों में ऊर्जा प्राप्ति के लिए गोबर गैस संयंत्र संचालित किये जा रहे हैं। यह केवल ऊर्जा प्राप्ति का सस्ता स्रोत ही नहीं है वरन् प्रदूषण नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गोबर गैस संयंत्र में अवायवीय किण्वन तीन चरणों में पूर्ण होता है।
- प्रथम चरण में आवायवी विकल्पी जीवाणु जटिल कार्बनिक पदार्थों जैसे सेलुलोस, हेमीसेलुलोस को सरल पदार्थों में अपघटित कर देते हैं।
- द्वितीय चरण में जीवाणु आंशिक वायवीय व आंशिक अवायवीय किण्वन द्वारा सरल पदार्थों को पहले कार्बनिक अम्लों में तथा अन्त में ऐसीटिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं।
- तृतीय चरण में मोथेनोबैक्टोरियम द्वारा ऐसीटिक अम्ल को मोथेन में ऑक्सीकृत कर दिया जाता है । संयंत्र में शेष बचे पदार्थ "स्लरी" को सुखाकर इसका उपयोग खाद के रूप में किया जा सकता है।
बायोगैस की क्षमता प्राकृतिक गैस से कुछ कम होती है। इसका कारण बायोगैस में उपस्थित 31% कार्बन डॉइऑक्साइड गैस है यदि कार्बन डाई ऑक्साइड (CO) की मात्रा कम हो जाये तो इसका ऊष्मा मान बढ़ सकता है।
ऐसे प्रयास किये जा रहे हैं कि विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट पदार्थों के मिश्रण से जैविक किचन द्वारा उच्च मान की गैसें प्राप्त की जाये। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के अजीतमल स्थान पर 1961 में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन की स्थापना की गई।