हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको जयशंकर प्रसाद (देवसेना का गीत कार्नेलिया का गीत) के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
जीवन परिचय
सन् 1888 में काशी के लुघनी साहु-परिवार में उन्होंने विधिवत शिक्षा केवल ऑठवीं कक्षा तक प्राप्त की। स्वशिक्षा द्वारा उन्होंने संस्कृतपालि, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन किया। लेखन कार्य वेदों और उपनिषदों में उनका विशेष चिंतन और मनन रहा। साहित्य की विविध विधाओं में उनकी लेखनी निरन्तर चलती रही।
रचनाएं
(i) काव्य:-झरना, ऑसूलहर, कामायनी,कानन कुसुम।
(ii) नाटक:-राज्यश्री, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी
(iii) उपन्यास:-ककाल, तितली, इरावती (अधूरा)
(iv) कहानी संग्रह:-छाया, प्रतिध्वनि,आँधी, इन्द्रजालआकाश द्वीप
(v) निबन्ध:-काव्य कला तथा अन्य निबंध
पुरस्कार
हिन्दुस्तानी एकेडमी ‘ एवम’ काशी नागरी प्रचारिणी सभा ‘ द्वारा कामायनी पर.मरणोपरांत-‘ मंगला प्रसाद पारितोषिक
साहित्यिक विशेषताएँ?
प्रसाद-साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें भारतीय दर्शन, संस्कृति एंव मनोविज्ञान के साथ-साथ भारतीय जीवन का सफल चित्रण हुआ है जैसे-
- प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण
- मानव प्रेम
- ईश्वर प्रेम
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न 1. ” मैंने भ्रमवश जीवन संचित,मधुकरियों की भीख लुटाई”-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:-प्रस्तुत पंक्ति में देवसेना की वेदना का परिचय मिलता है। वह स्कंदगुप्त से प्रेम कर बैठती है परन्तु स्कंदगुप्त के हृदय में उसके लिए कोई स्थान नहीं है। जब देवसेना को इस सत्य का पता चलता है, तो उसे बहुत दुख होता है। वह स्कंदगुप्त को छोड़कर चली जाती है। उन्हीं बीते पलों को याद करते हुए वह कह उठती है कि मैंने प्रेम के भ्रम में अपनी जीवन भर की अभिलाषाओं रूपी भिक्षा को लुटा दिया है। अब मेरे पास अभिलाषाएँ बची ही नहीं है। अर्थात्अ भिलाषों के होने से मनुष्य के जीवन में उत्साह और प्रेम का संचार होता है। परन्तु
आज उसके पास ये शेष नहीं रहे हैं।
प्रश्न 2. कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है?
उत्तर-आशा बहुत बलवती होती है परंतुु इसके साथ वह बावली भी होती है। आशा यदि डूबे हुए को सहारा देती है। तो उसे बावला भी कर देती है। प्रेम मैं तो आशा बहुत बावली होती है, वह जिसे प्रेम करता है। उसके प्रति हजारों सपने बुनता है। फिर उसका प्रेमी उसे प्रेम करें या ना करें। वह आशा के सहारे सपनों में डूबता है। यही कारण है कि आशा बावली होती है।
प्रश्न 3. देवसेना की हार या निराश के क्या कारण थे?
उत्तर-सम्राट स्कंद गुप्त ने राजकुमारी देवसेना प्रेम करती थी। उसने अपने प्रेम को पाने के लिए बहुत प्रयास किया। परंतु उसे पाने में उसके सारे प्रयास असफल साबित हुई। यह उसके लिए घोर निराशा का कारण था। पिता पहले ही मृत्यु की गोद में समा चुके थे। तथा भाई भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था। बहुत दर्द और भिक्षा मांगकर गुजारा करती थी। उसे प्रेम का ही सहारा था। परंतु उसने भी उसे स्वीकार नहीं किया था।
प्रश्न 4. मैंने निज दुर्बल….. होड़ लगाई इन पंक्तियों में दुर्बल पद बल और हारी होड़ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– दुर्बल पद बल देवसेना के बल की सीमा का ज्ञान कराता है। अर्थात देवसेना अपने बल की सीमा को बहुत भली प्रकार
से जानती है। उसे पता है कि वह बहुत दुर्बल है। इसके बाद भी वह अपने भाग्य से लड़रही है।
होड़ लगाई पंक्ति में निहित व्यंजना देवसेनाकी लगन को दर्शाता है। देवसेना भली प्रकार से जानती है कि प्रेम में उसे हार ही प्राप्त होगी परन्तु इसके बाद भी पूरी लगन के साथ
प्रलय (हार) का सामना करती है। वह हार नहीं मानती।
प्रश्न 5. कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को
अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- प्रसाद जी के अनुसार भारत देश बहुत सुंदर और प्यारा है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। यहाँ सूर्योदय का दृश्य
बड़ा मनोहारी होता है। सूर्य के प्रकाश में सरोवर में खिले कमल तथा वृक्षों का सौंदर्य मन को हर लेता है। ऐसा लगता है मानो यह प्रकाश कमल पत्तों पर तथा वृक्षों की चोटियों पर क्रीड़ा कर रहा हो। भोर के समय सूर्य के उदित होने के कारण चारों ओर फैली लालिमा बहुत मंगलकारी होती है। मलय
पर्वत की शीतल वायु का सहारा पाकर अपने छोटे पंखों से उड़ने वाले पक्षी आकाश में सुंदर इंद्रधनुष का सा जादू उत्पन्न करते हैं। सूर्य सोने के कुंभ के समान आकाश में सुशोभित होता है। उसकी किरणें लोगों में आलस्य निकालकर सुख बिखेर देती है।
जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ
1888
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं-
(i) काव्य:-झरना, ऑसूलहर, कामायनी,कानन कुसुम।
(ii) नाटक:-राज्यश्री, अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी
(iii) उपन्यास:-ककाल, तितली, इरावती (अधूरा)
(iv) कहानी संग्रह:-छाया, प्रतिध्वनि,आँधी, इन्द्रजालआकाश