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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

हिंदी साहित्य के छायावादी युग के साहित्य कर्मियों में महादेवी वर्मा का स्थान अविस्मरणीय है। उनकी वेदना भरी कविताओं के कारण उन्हें ‘आधुनिक युग की मीरा ‘ कहा जाता है।

जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद नगर में हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। बाद में वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्य नियुक्त हुई। उन्होंने बाद में वही पर कुलपति पद को भी सुशोभित किया।

महादेवी जी सन 1929 ईस्वी में बौद्ध धर्म में दीक्षा लेकर बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थी, किंतु गांधी जी के संपर्क में आने के बाद उनकी प्रेरणा से वह समाज सेवा के कार्य में लग गये। शिक्षा तथा साहित्य के क्षेत्र में उनकी सेवाएं अभूतपूर्व थी। सन 1956 ईस्वी में उन्होंने साहित्य अकादमी की स्थापना के प्रयास मैं अकथनीय योगदान दिया। सन 1987 ईस्वी में उनका देहावसान हो गया।

उपलब्धियां

महादेवी वर्मा को विक्रम, दिल्ली तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय ने डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया। उनके यामा कार्य के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी साहित्यिक सेवाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य भी मनोनीत किया था।

रचनाएं

महादेवी जी की प्रमुख काव्य रचनाएं इस प्रकार हैं-

(1) काव्य कृतियां- नीरजा, रश्मि, नीहार, दीपशिखा, यामा।

(2) गद्य रचनाएं- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, मेरा परिवार, पथ के साथी, श्रृंखला की कड़ियां।

साहित्यिक विशेषताएं

महादेवी जी के काव्य और गद्य परक साहित्य में मानवतावादी धारा का प्रभाव सर्वत्र दृष्टिगोचर है। वे करुणा और भावना की देवी है। उनके साहित्य में जहां दिन-हिन मानवता का भावनामय में अंकन है, वहीं निरीह पशु पक्षियों का भी हृदयस्पर्शी एवं रोचक चित्रण हुआ है।

पशु पक्षियों के साथ मानवीय संबंधों की अभिव्यक्ति अतुलनीय है। रेखा चित्र में उनका गद्य कौशल देखते ही बनता है। उनके नीलकंठ मोर, गोरा गाय, सोना हिरनी, आदि रेखाचित्र अपने में अनोखे हैं।

यह पशु-पक्षी भी अपने सजीव व्यक्तित्व से पाठकों को मोहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, महादेवी जी की कोमल लेखनी का स्पर्श प्राप्त करके यह प्राणी भी मनुष्यों की तरह बोलने लगते हैं, रोते हैं, हंसते हैं। उनका वैचारिक गंभीरता से युक्त है, फिर भी उसने काव्य सा लालित्य है। यह विशेषता महादेवी जी को अपने समकालीन साहित्यकारों मैं एक विशेष स्थान दिलाती है।

भाषा शैली

महादेवी जी की गद्य भाषा अपने आप में अनूठी है। यह कहना सही है कि हजारों लाखों में महादेवी जी का गद्य अलग से पहचाना जा सकता है। उनकी भाषा में संस्कृत निष्ठाता सर्वत्र विद्यमान है। वाक्य रचना लंबी और घुमावदार है। पाठक उनकी शैली में मधुरता, अनुभूति की तरलता, और सुंदरता के एक साथ दर्शन करता है। भावमयता के स्तर पर महादेवी जी के गद्य की भाषा शैली का कोई जोड़ नहीं है।