हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको भारत का भौतिक स्वरूप के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
भौतिक स्वरूप
पंचकूला जिला एक उप उष्णकटिबंधीय महाद्वीप है, जहाँ मानसून जलवायु होती है जहां ऋतु, गर्मी में गर्म, सर्दी में ठंड, अच्छी मानसून वर्षा और तापमान में काफी भिन्नता (0 डिग्री से 43 डिग्री सेल्सियस) होती है। सर्दियों में, कभी-कभी दिसम्बर और जनवरी के दौरान ज्यादा ठंड होती है जिले को पश्चिमी अशांति से शीतकालीन बारिश भी प्राप्त होती है
बारिश आमतौर पर मानसून में प्राप्त होती है। मोरनी की पहाड़िया जिले के साथ ही हरियाणा के उच्चतम बिंदु हैं। घग्गर नदी केवल बारहमासी नदी है यह मानसून के बाहर बहुत उथले है। घग्गर नदी व्यवस्था को अब मूल सरस्वती नदी माना जाता है, यह अब राजस्थान में सूख जाता है
और समुद्र तक नहीं पहुंचता है। यह भूवैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण है जो रोप्पर से सतलुज को एक और चैनल ले जाने के लिए परिवर्तित कर दिया। जिला की महत्वपूर्ण नदियों / धाराएं घग्गर, सिरसा, कौशल्या हैं।
आम तौर पर जिले की ढलान उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक होती है और इस दिशा में, अधिकांश नदियां / बारिश हुई नदियां बहती हैं और अपने रास्ते में बहुत कंकड़ और पत्थर फैलती हैं। केवल सिरसा नदी, कालका तहसील में, शिवालिक मार्ग के एक “यू” एरो के माध्यम से उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है।
जिले में मिट्टी मुख्य रूप से प्रकाश लोम (सीओटी) पीडमोंट (घर और कंडी), स्वालिक (पहाड़), सिल्टिकले (नली और छःरा डाकर) आदि हैं। जिले में भूमिगत जल की पुष्टि की जाती है और अर्ध-पुष्टि की स्थिति होती है जो आम तौर पर ताजा होती है और घरेलू और सिंचाई प्रयोजनों के लिए उपयुक्त होती है।
भूजल के नीचे का स्तर दक्षिणी भागों में आम तौर पर उच्च होता है और उत्तर और उत्तर-पूर्व में कम होता है जो पहाड़ी मार्ग में होता है। जिला उस क्षेत्र में स्थित है जहां अतीत में मध्यम से उच्च तीव्रता के भूकंप महसूस किए गए हैं। हिमालय सीमा के दोष क्षेत्र में स्थित होने के नाते यह भूकंप का खतरा है
भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार
भारत पूर्णतया उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। भारत की मुख्य भूमि 804’ से 3706’ एवं 680 7’ से 970 25’ पूर्वी देशांतर के बीच फैली हुई हैं।इस प्रकार भारत का अंक्षांशीय तथा देशांतरीय विस्तार लगभग 290 अंशों में हैं।
अत: पूर्वांचल में यदि 6 बजे प्रात: सूर्योदय हेाता हैं तो सुदूर पश्चिम में सूर्योदय दो घंटे बाद होगा। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक 3214 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम तक 2933 किमी. और समुद्री तट रेखा अंडमान निकोबार द्वीप समूह तथा लक्ष्यद्वीप समूह के साथ 7517 कि.मी. हैं। कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य भाग से गुजरती है।
इसी प्रकार लगभग मध्य भाग से निकलने वाली 82030’ देशांतर रेखा का समय ही भारत का मानक समय निर्धारित किया गया र्है। यह रेखा उत्तर में मिर्जापुर एंव दक्षिण में चैन्नई के निकट से गुजरती हैं। उदाहरण- हमारे देश का स्थानीय समय ग्रीनविच के स्थानीय समय से 5.30 घंटा आगे हैं। यदि 00 मुख्य देशांतर रेखा में दोपहर के 12 बजे हैं। तब भारत में शाम को 5 बजकर 30 मिनिट होगा।
विश्व में भारत का स्थान
भारत को उपमहाद्वीप का स्तर प्रदान करने वाले भौगोलिक कारक हैं:-
- सामाजिक गतिविधियां विश्व में अलग से दृष्टि गोचर होती हैं।
- कई धर्म, जातियाँ, जनजातियाँ एवं संस्कृतियों को समेटकर रखी हैं।
- भौतिक दषायें जलवायु, वनस्पतियां, धरातल, मिट्टी, खनिज एवं समस्त जीवों में विषमता मिलती हैं।
- कश्मीरी, बंगली, असमी, राजस्थानी, केरली एवं समस्त जनों का एक ही नारा हम सब भारतीय है।
- भारत भूिम की विषालता, जनसंख्या, ऐतिहासिक, पृष्ठभूमि समस्त रितिरिवाज परम्पराये देखी जा सकती है।
भारत का भौतिक स्वरूप (प्राकृतिक विभाग)
भारत का निर्माण विभिन्न भूगर्भीय कालों में हुआ हैं यहां सभी प्रकार की स्थलाकृतियां (पर्वत, पठार, मैदान, घाटी) एवं तट पाये जाते है। सामान्यत: भू आकृतिक दृष्टि से भारत को चार विभागों में बांटा जा सकता है।
- उत्तर का विषाल पर्वतीय विभाग
- उत्तरी भारत का विषाल मैदानी विभाग (भारतीय मरूस्थल सहित)
- प्रायद्वीपीय पठार
- समुद्रतटीय मैदान एवं द्वीप समूह
उत्तरी भारत का विशाल पर्वतीय विभाग
भारत के उत्तरी भाग पर स्थित पर्वत की श्रृखलायें पश्चिम पूर्व दिषा में सिंधु से लेकर ब्रम्हपुत्र तक फैली हैं यह नवीन वलित पर्वत माला है। जो टेथिस सागर के स्थान पर आज मौजूद हैं। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इस विभाग को चार भागों में बांट सकते हैं।
उत्तरी भारत का विशाल मैदान
यह उत्तरी मैदान सिंधु गंगा, बम्हपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों द्वारा लायी गई हैं। कांप मिट्टियों से बना उपजाऊ प्रदेश इस मैदान का क्षेत्ऱफल 7 लाख वर्ग किमी. से अधिक हैं। समुद्रतल से इसकी आसै त ऊचँ ाई लगभग 200मी. हैं। मैदान के अपेक्षाकृत ऊँचे भाग को ‘बॉगर’ कहते हैं।
इस भाग में नदियाँ की बाढ़ का पानी कभी नहीं पहुँचता। इसके विपरीत ‘खादर’ मैदान का अपेक्षाकृत नीचा भाग हैं। जहां बाढ़ का पानी हर साल पहुंचता रहता है। पंजाब में खादर को ‘बेट’ कहते हैं। पंजाब हरियाणा और उत्तर प्रदेश मे शिवालिक पर्वत श्रेणी के साथ-साथ 10-15 किमी. चौड़ी मैदानी पट्टी को ‘भाबर’ कहते हैं।
यह पट्टी कंकरीली बुलई मिट्टी से बनी हैं। ग्रीष्म ऋतु में छोटे छोटे नदी नाल े इस पट्टी में भूि मगत हो जाते हैं और इस पट्टी को पार करके इनका जल धरातल पर पुन: आ जाता हैं। यह जल भाबर के साथ साथ फैली 15-30 किमी. चौडी़ तराई नाम की पट्टी में जमा हो जाता हैं। इससे यहाँ दलदली क्षेत्र बन गया हैं। तराई का अधिकांश क्षेत्र कृषि योग्य बना लिया जाता है।
उत्तरी विषाल मैदान को चार भागों में विभाजित किया गया हैं-
1. पश्चिमी मैदान:- पश्चिमी मैदान में राजस्थान का मरूस्थल तथा अरावली पर्वत श्रेणी का पश्चिमी बांगर क्षेत्र सम्मिलित हैं। मरूस्थल का कुछ भाग चट्टानी तथा कुछ भाग रेतीला हैं। प्रचीन काल में यहा सरस्वती और दृशदवती नाम की सदानीरा नदियां बहती थी । उत्तरी मैदान के इस भाग में बीकानेर का उपजाऊ क्षेत्र भी हैं। पश्चिमी मैदान से लूनी नदी कच्छ के रन में जाकर विलीन हो जाती हैं। सांभर नाम की खारे पानी कह प्रसिद्ध झील इस क्षेत्र में हैं।
2. उत्तरी मध्य मैदान- पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैला हैं। इस मैदान का पंजाब और हरियाणा में फैला भाग सतलज, रावी, और व्यास नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी से बना हैं। यह भाग उपजाऊ हैं । इस मैदान का उत्तर प्रदेश में फैला भाग गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती , घाघरा, गंडक नदियों के द्वारा लाई मिट्टी से बना हैं। मैदान का यह भाग भी बहुत उपजाऊ हैं और भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पालना रहा हैं।
3. पूर्वी मैदान- गंगा की मध्य और निचली घाटी में फैला हैं। इस मैदान का विस्तार बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यों में हैं। बिहार राज्य में गंगा नदी इस मैदान के बीच से होकर गुजरती हैं। पश्चिम बंगाल राज्य में जो मैदानी भाग हैं उसका विस्तार हिमालय के पाद प्रदेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक हैं। यहां यह मैदान कुछ अधिक चौड़ा हो गया हैं। इसका दक्षिणी भाग डेल्टा क्षेत्र हैं। इस डेल्टा क्षेत्र में गंगा अनेक वितरिकाओं में बंट जाती हैं। यह मैदानी भाग बहुत ही उपजाऊ हैं।