एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते, राजनीतिक दल भारत और अन्य सभी लोकतांत्रिक राष्ट्रों के सुचारू कामकाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सभी राजनीतिक नेता एक अलग पार्टी बनाते हैं और उनमें कई सदस्य शामिल होते हैं और वे राष्ट्र की भलाई और विकास के लिए मिलकर काम करते हैं। और कई राजनीतिक दलों की उपस्थिति उनके बीच प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा करती है, जिसके कारण वे एक-दूसरे की कमियां ढूंढते हैं और यह एक तरह से देश के विकास के लिए अधिक उपयुक्त और कुशल नीतियों को खोजने में मदद करता है।
यदि सभी प्रतिभागी चुनाव में व्यक्तिगत रूप से भाग लें तो अकेले सब कुछ संभालना बहुत मुश्किल होगा। जब सभी सदस्य एक साथ काम करते हैं तो चीजें और भी आसान हो जाती हैं। लोकतंत्र कई रूप ले सकता है, लेकिन अधिकांश आधुनिक लोकतंत्रों में संसदों और समान विधायी निकायों (कांग्रेस, राज्य सदनों, नगरपालिका या काउंटी परिषदों, आदि) के चारों ओर घूमने वाली एक विधायी प्रणाली है।
एक राजनीतिक दल समान विचारों वाले राजनेताओं और उम्मीदवारों के समूहों को संसाधनों को साझा करने, समन्वय करने और आपस में पक्ष मुद्दों पर निर्णय लेने की अनुमति देता है। यह उन मतदाताओं को भी अनुमति देता है जिनके पास एक राजनेता के बारे में सब कुछ जानने का समय नहीं है, यह जानने के लिए कि वे कैसे मतदान कर सकते हैं, मतदाताओं को अधिक सूचित विकल्प प्रदान करते हैं। बहुप्रचारित स्थानीय राजनीतिक व्यवस्था पर विचार करें - क्या आप ईमानदारी से जानते हैं कि आपके शहर के जोनिंग बोर्ड के सदस्य कौन हैं? शायद नहीं; और चूंकि ये दौड़ अक्सर गैर-पक्षपाती होती हैं, इसलिए आपके पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि बोर्ड उन मुद्दों पर मतदान कैसे कर सकता है जो आपके जीवन को गहराई से प्रभावित करते हैं जब तक कि आप एक महत्वपूर्ण मात्रा में खोजी कार्य नहीं करते हैं।
ऐसा कुछ जो स्वाभाविक रूप से सभी की आवाज़ को सबसे अधिक निर्धारित करता है। लोकतांत्रिक सरकार की गैर-पक्षपाती योजनाएं हैं जिनका निर्माण किया जा सकता है, लेकिन गणित और अर्थशास्त्र काफी हद तक यह सुनिश्चित करता है कि अमेरिकी शैली के जिलों में निर्वाचित विधायकों के साथ किसी भी प्रणाली में पक्षपातपूर्ण हो जाएगा।
भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका
राजनीतिक दल एक राजनीतिक संस्था के रूप में होते हैं जो शासन में राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने एवं उसे बनाए रखने का प्रयत्न करते हैं। राजनीतिक दल स्वैच्छिक संगठन अथवा लोगों के ऐसे संगठित समूह होते हैं जो समान दृष्टिकोण रखते हैं। साथ ही संविधान के प्रावधानों के अनुरूप राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिये राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।
राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अर्थ है- दलों की आंतरिक या सांगठनिक संरचना के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने और दलों की कार्यप्रणाली व भूमिका संबंधी विचार-विमर्श में दलों के सदस्यों को शामिल करना और दलों के विभिन्न पदों पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से दलों के सदस्यों का निर्वाचन करना।
राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र स्थापित होने से निम्नलिखित फायदे सुनिश्चित होंगे।
- इससे वंशवादी राजनीति, राजनीति में भाई-भतीजावाद और विशेष प्रकार की पृष्ठभूमि से मिलने वाले लाभों का उन्मूलन होगा।
- इससे राजनीतिक दलों के अंदर असहमति के स्वर को भी स्वीकृति मिलेगी जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत आवश्यक है।
- इससे राजनीतिक दलों के अंदर शीर्ष नेतृत्व के प्रति वफादारी दिखाने या चापलूसी करने जैसी गतिविधियाँ हतोत्साहित होंगी तथा दलों के अंदर भागीदारी, प्रतियोगिता एवं प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे राजनीतिक व्यवस्था में धनबल व बाहुबल कमज़ोर पड़ेगा और दलों के कोष संचालन में पारदर्शिता आएगी।
- इससे प्रतिभा संपन्न राजनीतिक नेतृत्व का निर्माण होगा। साथ ही स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के विषयों पर गुणवत्तापूर्ण राजनीतिक विचार-विमर्श सुनिश्चित हो सकेगा।
- वर्तमान राजनीतिक हालातों पर नजर डालें तो देश भर के राज्यों में अलग−अलग पार्टियों की सरकारें हैं। हम सब का दुर्भाग्य यह है कि कोई भी दल, कोई भी सरकार अच्छे कार्यों में एक−दूसरे के साथ स्पर्धा करने के बजाय गलत कामों में होड़ बनाए हुए है।
जब भाजपा वाले यूपी या बिहार में कानून व्यवस्था के बिगड़ने की दुहाई देते हैं तो वहां के सत्तारूढ़ नेता राजस्थान या महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश के हालात दिखाने लगते हैं। कांग्रेस वाले ममता बनर्जी के शासन पर उंगली उठाते हैं तो ममता पलटकर कर्नाटक या उत्तराखंड या हिमाचल के नमूने पेश कर देती हैं। सच तो यह है
कि कानून व्यवस्था से लेकर संवेदनशील प्रशासन या नेताओं, अफसरों की जवाबदेही आदि के मामले में सभी सत्तारूढ़ पार्टियां एक−दूसरे की तुलना में बहुत घटिया प्रदर्शन कर रही हैं। इसके बाद इस देश की जनता के लिए कुछ भी सुखद निकल सकेगा, इस बारे में संदेह है। वो चाहे यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान या अन्य कोई प्रदेश वहां की जनता बार−बार एक पार्टी विशेष के शासन से दुखी होकर दूसरी पार्टी को सरकार सौंपती है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।
कई प्रदेशों की कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार तथा सरकारी संवेदनहीनता का विश्लेषण किया जाए तो तो राजनीतिक दलों में एक−दूसरे को हराने की होड़ में लगी दिखाई देती है। गांधी जी की लिखित सलाह के विपरीत कांग्रेस ने राजनीतिक दल के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया। स्वतंत्रता आंदोलन की साख के कारण कई दशकों तक सत्ता पर उसका एकछत्र नियंत्रण रहा। इसके बावजूद जब देश में प्रगति का उपयुक्त वातावरण नहीं बन पाया, तब लोगों ने कांग्रेस को हटाकर एक नए दल को सत्ता सौंपने का निर्णय किया।