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रसखान का जीवन परिचय

रसखान का जीवन परिचय

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको रसखान का जीवन परिचय के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

जीवन परिचय

कृष्ण भक्त कवि रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था। उनका जन्म राजवंश से संबंधित एक पठान परिवार में दिल्ली में सन 1548 ईस्वी में हुआ था। इस्लाम धर्मावलंबी होते हुए भी रसखान जीवन भर कृष्ण की प्रेमा भक्ति में रसमग्न रहे। कृष्ण ने उनकी अन्य भक्ति देखकर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था।

कृष्ण भक्त कवि रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था। उनका जन्म राजवंश से संबंधित एक पठान परिवार में दिल्ली में सन 1548 ईस्वी में हुआ था।

बाल्यावस्था से ही वे बड़े प्रेमी जीव थे। आगे चलकर यही प्रेम परमेश्वर की परम लीला के प्रति प्रेम में विकसित हो गया। ऐसी लोक श्रुति है। कि उन्हें श्रीनाथ जी के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन हुए थे। तब से ही वह ब्रजभूमि में रहने लगे और फिर आजीवन वही रहे। संत 1628 ईसवी के आसपास उनका निधन हो गया।

रचनाएं

रसखान की दो रचनाएं उपलब्ध है - सुजान रसखान और प्रेम वाटिका। सुजान रसखान में कृष्ण प्रेम पर आधारित कवित्त और सवैये है तथा प्रेम वाटिका में प्रेम विषयक दोहे संग्रहित है।

काव्यगत विशेषताएं

रसखान का संपूर्ण साहित्य कृष्ण के प्रेम रस से भरा हुआ है। उनकी रचनाओं का विषय है- कृष्ण भक्ति। अपने आराध्य देव कृष्ण की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम और भक्ति को वे कृष्ण की आराधना और भक्ति मानते हैं। वे श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु पर मुग्ध है चाहे वह कृष्ण के रूप माधुरी हो, बांसुरी हो, या फिर बाल लीला सब रसखान के लिए मग्न हो जाने और काव्य करने का विषय है।

उनकी अभिव्यक्ति का आधार है-कृष्ण की जन्मभूमि, ब्रज का यमुना तट, वहां के वन उपवन, पशु पक्षी, पर्वत, नदियां।इन सब से उन्हें अनन्य प्रेम है। रसखान के साहित्य में कृष्ण इस प्रकार प्रभावित हो रहा है कि वह पाठक को कृष्ण भक्ति में लीन के बिना नहीं रहता। कृष्ण की अतिरिक्त उन्हें संसार में कुछ भी प्रिय, आकर्षण और श्रेष्ठ नहीं लगता।

भाषा शैली

रसखान की काव्य भाषा सरस, सरल एवं सुमधुर है। आडंबर हीन सहज स्वाभाविक भाषा और सहज रूप से आए अलंकार उनकी भाषा को सहज सौंदर्य प्रदान करते हैं। उनके शब्दों का क्रम झरने के अविरल प्रभाव की याद दिलाता है। उनके काव्य की भाषा उनके आराध्य कृष्ण की ब्रजभाषा है।

काव्य में मुहावरों के स्वाभाविक प्रयोग रसखान के काव्य को और भी लोकप्रिय प्रदान की है। उनका काव्य लोक साहित्य और और शास्त्र दोनों की चुनौतियों का सुंदर उत्तर है। उनकी सी स्पष्टता अन्य यंत्र असंभव ही लगती है। अपने काव्य में उन्होंने दोहा, कवित्त और सवैया तीनों छंदों का पूरे अधिकार से प्रयोग किया है।

सवैया छंद के प्रयोग के तो वह पर्याय ही बन चुके हैं। उनके जैसा साधिकार रसमय सवैया छंद लेखन शायद ही कहीं पढ़ने को मिले। रसखान वास्तव में रस की खान है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।