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गोलाकार संधारित्र का व्यंजक, परिभाषा

गोलाकार संधारित्र का व्यंजक, परिभाषा

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको गोलाकार संधारित्र के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।

गोलाकार संधारित्र के बारे में

दोस्तों कैसे हो मेरा नाम है शिवा सिंह आज मैं आपको गोलाकार संधारित्र के उपयोग व उनका व्यंजक कैसे निकाला जाए, इसके बारे में पूरी जानकारी दूंगा।

धारिता व्यंजक

चित्रानुसार गोलीय संधारित्र प्रदर्शित है जिसमें धातु के दो सकेंद्रीय गोले A तथा B है जिनके मध्य परावैद्युत माध्यम भरा हुआ है गोले A का संबंध छड़ R से तथा गोले B का संबंध प्रथ्वी से है।

चित्रानुसार गोलीय संधारित्र प्रदर्शित है जिसमें धातु के दो सकेंद्रीय गोले A तथा B है जिनके मध्य परावैद्युत माध्यम भरा हुआ है गोले A का संबंध छड़ R से तथा गोले B का संबंध प्रथ्वी से है।

जब गोले A को +Q आवेश दिया जाता है प्रेरण से गोले B के समीपवर्ती तल पर -Q आवेश तथा दूरवर्ती तल पर +Q आवेश उत्पन्न हो जाता है। +Q आवेश का संबंध पृथ्वी से कर देते हैं तो यह सम्पूर्ण आवेश पृथ्वी में चला जाता है। गोले A त्रिज्या a तथा गोले B की त्रिज्या b है।

गोले A पर +Q आवेश के कारण विभव V₁ = 1/4πε₀k. Q/a गोले A पर -Q आवेश के कारण विभव V₂ = 1/4πε₀k, -Q/b गोले A पर कुल विभव Vₐ = V₁ + V₂, Vₐ = 1/4πε₀k. Q/a + 1/4πε₀k. -Q/b, Vₐ = 1/4πε₀k. Q/b - 1/4πε₀k. Q/b, Vₐ = Q/4πε₀k [1/a - 1/b], Vₐ = Q/4πε₀k [b-a/ab],

गोले B का संबंध पृथ्वी से होने के कारण Vb = 0, V = Va - Vb, V = Q/4πε₀k [b-a/ab] - 0, V = Q/4πε₀k [b-a/ab] अतः धारिता C = Q/V, C = Q/Q/4πε₀k.[b-a/ab] C = 1/1/4πε₀k.[b-a/ab] C = 4πε₀k.[ab/b-a] फैरड, वायु या निर्वात में K = 1, C = 4πε₀ [ab/b-a]

धारिता बढ़ाने के लिए

  1. दोनों चालकों के बीच अधिक परावैद्युतांक वाला माध्यम होना चाहिए।
  2. दोनों गोलो की त्रिज्याए अधिक होनी चाहिए।
  3. दोनों गोलो के बीच दूरी कम होनी चाहिए।

संधारित्र के प्रकार- समांतर प्लेट संधारित्र, गोलाकार संधारित्र, बेलनाकर संधारित्र।

संधारित्र के उपयोग

  1. आवेश संचय करने में- संधारित्र का मुख्य कार्य आवेश को संचय करने में होता है।
  2. ऊर्जा का संचय करने में- संधारित्र आवेश के साथ-साथ ऊर्जा के भी संचायक होते हैं।
  3. विद्युत उपकरणों में- प्रेरण कुंडली में, मोटर के इंजन, ज्वलन तंत्र में संधारित्र इसी कार्य के लिए लगाए जाते हैं।
  4. इलेक्ट्रॉनिक परिपथ में- संधारित्र का उपयोग लगभग सभी परिपथो इलेक्ट्रॉनिक में होता है उदाहरण- विद्युत शक्ति सम्मरण में, वोल्टता उच्चायन को कम करने में, स्पन्दित संकेतो के संचरण में, रेडियो आवृत्ति के विद्युत चुंबकीय दोलनों के उत्पादन व संचरण में।