हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको स्वयं प्रकाश के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
स्वयं प्रकाश का जन्म
स्वयं प्रकाश जी का जन्म 20 जनवरी, 1947 हुआ था। ये एक हिन्दी साहित्यकार रहे हैं। इसकी जन्म भूमि इंदौर, मध्य प्रदेश ओर मृत्यु 7 दिसम्बर, 2019 को हुई थी।
शिक्षा: मेकैनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी (PHD).।
रचना-संसार : ‘मात्रा और भार’, ‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आसमाँ कैसे-कैसे’, ‘अगली किताब’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’, ‘अगले जनम’, ‘संधान’, ‘छोटू उस्ताद’ (कहानी-संग्रह); ‘बीच में विनय’, ‘ईंधन’ (उपन्यास); ‘रंगशाला में एक दोपहर’, ‘एक कथाकार की नोटबुक’ (निबंध); ‘हमसफरनामा’ (रेखाचित्र); ‘फीनिक्स’ (नाटक); ‘मेरे साक्षात्कार’ (साक्षात्कार); ‘प्यारे भाई रामसहाय’ (बाल साहित्य); ‘पंगु मस्तिष्क’, ‘अन्यूता’, ‘लोकतांत्रिक विद्यालय (अनुवाद)। कुछ समय ‘क्यों’, ‘चकमक’ और ‘वसुधा’ पत्रिकाओं का संपादन।
राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा मोनोग्राफ प्रकाशित। लघु पत्रिकाओं ‘चर्चा’, ‘संबोधन’, ‘राग भोपाली’ और ‘बनास’ द्वारा रचना-कर्म पर विशेषांक प्रकाशित। ‘पार्टीशन’ कहानी पर टेलीफिल्म का निर्माण।
पुरस्कार-सम्मान : गुलेरी सम्मान, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार, सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार, बनमाली पुरस्कार, पहल सम्मान, कथाक्रम सम्मान, भवभूति अलंकरण।
भाषा–शैली: स्वयं प्रकाश जी ने अपनी रचनाओं के लिए सरल, भावानुकूल एवं सहज भाषा को अपनाया है। उन्होंने लोगों में प्रसिद्ध खड़ी-बोली में अपनी रचनाएँ की। तत्सम, तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग बहुतायत में है, फिर भी वे शब्द स्वाभाविक बन पड़े हैं।
स्वयं प्रकाश का जीवन
स्वयं प्रकाश हिंदी के जाने-माने कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ हिंदी के पाठकों और आलोचकों में समान रूप से लोकप्रिय रही हैं। सत्तर के दशक से अपना कहानी लेखन प्रारंभ करनेवाले स्वयं प्रकाश की पहचान ऐसे कहानीकार के रूप में है, जो सहजता से अपनी बात कह देते हैं और उनकी कोई कहानी ऐसी नहीं होती,
जिसमें सामाजिकता का उद्देश्य न हो। इस तरह से हिंदी में प्रेमचंद, यशपाल, भीष्म साहनी, हरिशंकर परसाई और अमरकांत की परंपरा के वे बड़े कथाकार हैं। भारतीय जीवन के मर्म को उनकी कहानियों में देखा जा सकता है।
मध्य वर्ग के राग-विराग हों या नौकरीपेशा सामान्य गृहस्थी के द्वंद्व, युवा वर्ग की उलझनें हों या महिलाओं के संघर्ष—स्वयं प्रकाश की कहानियाँ पूरे भारतीय समाज को अपने दायरे में लेती हैं।
वे उन लोगों में नहीं हैं, जो भारतीय समाज की हलचल से निराश हो जाएँ, बल्कि वे इसी समाज से आशा के नए-नए स्रोत खोजते हैं और अपने पाठकों को नए उत्साह से भर देते हैं।
साहित्यिक विशेषताएं
स्वयं प्रकाश की साहित्य पर आदर्शवादी विचारधारा का काफी प्रभाव है इनकी कृतियां में देश समाज नगर गांव की सुख समृद्धि देखने की आकांक्षा प्रकट हुई है भारतीय संस्कृत जीवन मूल्य उनमें प्रभावित हुए हैं मध्यवर्गीय जीवन के कुशल चितेरे स्वयं प्रकाश की कहानियों में वर्ग शोषण के विरुद्ध चेतना है
तो हमारे सामाजिक जीवन जाति संप्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के विरुद्ध प्रतिकार का स्वरूप भी है रोचक किस्सागोई शैली में लिखी गई उनकी कहानियां हिंदी की वाचिक परंपरा को समृद्ध करती हैं।
भाषा शैली
स्वयं प्रकाश जी की भाषा शैली सुमधुर है उनकी भाषा में हिंदी उर्दू तत्सम तद्भव एवं देशों शब्दों का मिलाजुला रूप देखने को मिलता है मुहावरों और लोकोक्तियों का मंजिल प्रयोग भीउनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता है।
अनेक स्थानों पर उन्होंने अपनी कहानियों में व्यंग्य शैली का प्रयोग कर व्यवस्था पर चोट की है वह सीधी सरल शब्दावली में गुड बात कह देने में निपुण हैं उनकी शैली की सहजता और नवीनता पाठक को सहज ही आकर्षित करती है उनकी शैली की चित्रात्मक ता पाठक को बांधे रहती है पाठक उनके साथ जुड़ाव अनुभव करता है यह उनकी भाषा शैली की सतक्तता को प्रकट करती है।