स्वयं प्रकाश जी मुख्यतः हिन्दी कहानीलेखक के रूप में प्रसिद्ध थे। swayam prakash ji की कहानी के अतिरिक्त भी उन्होंने उपन्यास, प्रकाशित कृतियाँ, निबन्ध, नाटक तथा अन्य विधाओं को भी अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। वे हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में साठोत्तरी पीढ़ी के बाद के जनता को महत्व देने वाला लेखन से सम्बद्ध रहे। swayam prakash ji को 8 से भी ज्यादा सम्मान मिल चुके थे।
जिसमे "राजस्थान साहित्य", "अकादमी पुरस्कार", "विशिष्ट साहित्यकार सम्मान", "वनमाली स्मृति पुरस्कार", "सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार", "पहल सम्मान", "कथाक्रम सम्मान", "भवभूति", "अलंकरण", "बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार 'प्यारे भाई रामसहाय' पर।
स्वयं प्रकाश | स्वयं प्रकाश जी के बारे मैं |
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पूरा नाम | स्वयं प्रकाश |
जन्म | 20 जनवरी, 1947 |
जन्म भूमि | इंदौर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 7 दिसम्बर, 2019 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिंदी साहित्य |
प्रमुख रचनाएं | जलते जहाज पर, ज्योति रथ के सारथी, उत्तर जीवन कथा, बीच में विनय, 'ईंधन' और सूरज कब निकलेगा आदि। |
शिक्षा | एमए (हिंदी), पीएचडी (1980), मैकेनिकल इंजीनियरिंग |
पुरस्कार-उपाधि | राजस्थान साहित्य अकादमी, रांघेय राघव पुरस्कार, पहल सम्मान, सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार, विशिष्ट साहित्यकार सम्मान आदि। |
प्रसिद्धि | साहित्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | स्वयं प्रकाश को प्रेमचंद की परंपरा का महत्वपूर्ण कथाकार माना जाता है। इनकी कहानियों का अनुवाद रूसी भाषा में भी हो चुका है। |
स्वयं प्रकाश जी का उपन्यास है? (Swayam Prakash ji novel)
स्वयं प्रकाश के द्वारा लिखे उपन्यास नीचे दिए गए है -
- 'बीच में विनय' (1994)
- 'उत्तर जीवन कथा' (1993),
- 'जलते जहाज पर' (1982),
- 'ज्योति रथ के सारथी' (1987),
- 'ईंधन' (2004) हैं। और
‘सूरज कब निकलेगा’ राजस्थान के मारवाड़ी इलाके में 70 के दशक में आई बाढ़ पर लिखी हुई कहानी है।
स्वयं प्रकाश जी की दो रचनाएं भाषा शैली एवं साहित्य में स्थान लिखिए?
स्वयं प्रकाश की भाषा शैली: स्वयं प्रकाश ने अपनी रचनाओं के लिए भाषा-शैली को सरल, सहज एवं भावानुकूल भाषा अपनाया है। उन्होंने खड़ी बोली जो की लोक-प्रचलित अपनी रचनाएँ में की। जिसमे तत्सम, तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी जैसे कई शब्दों का प्रयोग बहुतायत में किया है, फिर भी वे शब्द स्वाभाविक बन पड़े हैं। फिर भी वे शब्द स्वाभाविक बन पड़े हैं। हास्य एवं व्यंग्य उनकी रचनाओं का प्रमुख विषय रहा है।