कृत्रिम वानस्पतिक प्रवर्धन का उपयोग आमतौर पर उन पौधों के प्रजनन या प्रजनन के लिए किया जाता है जो या तो बहुत कम बीज पैदा करते हैं या व्यवहार्य बीज नहीं पैदा करते हैं। ऐसे पौधों के कुछ उदाहरण जो कृत्रिम वानस्पतिक प्रसार विधियों द्वारा पुनरुत्पादित किए जाते हैं - केला, अनानास, संतरा, अंगूर, गुलाब आदि।
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की परिभाषा (kritrim kayik pravardhan ki paribhasha)
कृत्रिम वानस्पतिक प्रसार एक प्रकार का पादप प्रजनन है जिसमें मानव हस्तक्षेप शामिल है। कृत्रिम वनस्पति प्रजनन तकनीकों के सबसे सामान्य प्रकारों में कटिंग, लेयरिंग, ग्राफ्टिंग, चूसने और ऊतक संवर्धन शामिल हैं।
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन के प्रकार (kritrim kayik pravardhan ke prakar)
ये विधियाँ मानव द्वारा निर्मित हैं तथा इनका प्रयोग पौधों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए किया जाता है। प्रमुख कृत्रिम विधियाँ निम्नांकित हैं।
कर्तन (Cuttings)
कर्तन दो प्रकार के होते है, जोकि निम्न प्रकार से हैं-
स्तम्भ कर्तन ( Stem cuttings )
इस विधि में पौधे के स्तम्भ भाग को छोटे टुकड़ों में काट कर जमीन में रोप दिया जाता है कर्तन द्वारा कायिक प्रवर्धन को कई कारक प्रभावित करते हैं जैसे - प्रवर्ध की लम्बाई, मातृ पादप की आयु रोपाई का वातावरण इत्यादि। उदाहरण - गन्ना (Sugarcane), अंगूर (Grapes), गुलाब (Rose), बोगेनविलिया (Bougainvillea) इत्यादि में स्तम्भ कर्तन द्वारा कायिक प्रवर्धन करवाया जाता है।
मूल कर्तन (Root cutting)
इस विधि द्वारा जिन पौधों में कायिक प्रवर्धन कराया जाता है उसके उदाहरण हैं- नीबू, अमरूद, सेब, चेरी, इत्यादि। मूल कर्तन के अंतर्गत मूल के टुकड़ों या कर्तन को सामान्यतः ऊर्ध्वं स्थिति में लगाया जाता है ताकि शीर्ष पर उपस्थित अपस्थानिक कलिकाऐं प्रस्फुटित हो सके।
दाब लगाना (Layering)
इस विधि स्तम्भ अथवा शाखा को मुख्य पादप से बिना अलग किए उसमें अपस्थानिक जड़ों के निर्माण को प्रेरित किया जाता है जिनसे नए प्ररोह निकलते हैं।
टीला दाब (Mound Layering)
इस विधि में तने की झुकी हुई शाखा को जमीन में दबा दिया जाता है। दबाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि एक या एक से अधिक पर्वसंधियाँ जमीन में दब जाए व शाखा का शीर्ष भाग जिस पर पत्तियाँ लगी हो वो जमीन के ऊपर हो कुछ समय बाद जमीन में गड़े स्तम्भ की पर्वसंधियों से अपस्थानिक जड़ें फूटने लगती हैं। उचित समय पश्चात् इस शाखा को मातृ पादप से काट कर मिट्टी के पिण्ड सहित अलग कर दिए जाते हैं।
रोपण (Grafting)
इस विधि में दो अलग-अलग पौधों के हिस्सों को इस प्रकार जोड़ते हैं कि वे संयुक्त होकर एक नए पौधे के रूप में वृद्धि कर सके। अच्छी किस्म के पादप के उस हिस्से को जिसका रोपण किया जाता कलम (Scion) कहते हैं।
दूसरा निम्न गुण वाला स्थानीय पादप जिस पर कि कलम लगाई जाती है और जो नए पौधे का आधार बनाऐगा उसे स्कन्ध (Stock) कहते हैं कलम व स्कन्ध को कस कर बाँधते हैं ताकि दोनों का एधा (Cambium) सम्पर्क में रहे ।
कुछ समय पश्चात् दोनों एधाएँ जुड़ जाती हैं व इनकी कोशिकाएँ विभाजित होना प्रारम्भ हो जाती हैं अब कलम व स्कन्ध दोनों के संवहन ऊतक आपस में सम्पर्क स्थापित कर लेते है। यह विधि आर्थिक रूप से उपयोगी पौधे जैसे गुलाब, आम, अमरूद, सेब, नींबू इत्यादि में प्रयोग होती है। रोपण (Grafting) की निम्न प्रमुख विधियाँ है :
ह्रीप या जीभी या जिह्वारोपण (Whip or Tongue grafting)
इस प्रकार की ग्राफ्टिंग में स्कन्ध एवं कलम समान मोटाई वाले स्तम्भ होते हैं। दोनों में 5-8 से.मी. लम्बा चीरा लगाया जाता है। उसके बाद स्कन्ध में V आकार का चीरा लगाते हैं। कलम को भी इस प्रकार का चीरा लगाते हैं ताकि वह स्कन्ध में फिट हो जाए। बाद में इन्हें कसकर बाँध दिया जाता है।
फच्चर रोपण (Wedge grafting)
इसमें स्कन्ध व कलम का व्यास समान होता है। स्कन्ध में V आकार का चीरा लगाते है जबकि कलम में वेज के आकार का चीरा लगाया जाता है इन दोनों को जोड़ कर बाँध दिया जाता है।
किरीट या मुकुट रोपण (Crown grafting)
इसमें स्कन्ध की मोटाई कलम से कई गुणा अधिक होती है। इस प्रकार एक स्कन्ध पर कई कलमें रोपित की जाती हैं।
कलिका रोपण (Bud grafting)
इस विधि में एक कलिका का रोपण किया जाता है। स्कन्ध की छाल में T आकार का चीरा लगाकर उसमें कलम की कलिका को रोपित किया जाता है। इसके बाद इस स्थान को कस कर बाँध दिया जाता है।