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पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रभाव

पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रभाव

हेलो, दोस्तों आज की इस पोस्ट के माध्यम से, मैं आपको पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रभाव के बारे में जानकारी देने वाला हूँ, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो। 

पारिस्थितिकी तंत्र किसे कहते हैं?

किसी भी कार्य को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पर्यावरण में हमें पेड़ पौधों से सभी प्रकार के प्राकृतिक अवयव जैसे कि जल, लवण और कार्बन-डाईऑक्साइड व स्टार्च प्राप्त होते हैं।

किसी भी कार्य को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पर्यावरण में हमें पेड़ पौधों से सभी प्रकार के प्राकृतिक अवयव जैसे कि जल, लवण और कार्बन-डाईऑक्साइड व स्टार्च प्राप्त होते हैं।

सूर्य की ऊष्मा से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को संश्लेषण की प्रक्रिया से प्राप्त कर पौधे अपना भरण-पोषण करते हैं अर्थात् सूर्य की ऊष्मा पौधों में प्रवेश करती है तथा पौधे के विभिन्न भागों में जाती है। इस प्रकार की प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) कहलाती है।

अजैविक व जैविक घटकों के मध्य ऊर्जा

जब किसी पारिस्थितिकी अवस्था में ऊष्मा का संचरण ऊर्जा के रूप में एक ही दिशा में होता है तथा यह चक्रीय प्रक्रम न हो तो सभी स्तरों पर ऊष्मा गतिकी के नियमों की पालना होती है जो कि निम्नानुसार हैं -

  • ऊर्जा संरक्षण के नियम अनुसार ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है न ही ऊर्जा को उत्पन्न किया जा सकता है ऊर्जा को केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है अर्थात् यह केवल ऊर्जा रूपान्तरण की पालना करता है।
  • ऊर्जा का स्थानान्तरण हमेशा गर्म से की ओर होता है अर्थात् ऊर्जा स्थानान्तरण में ऊर्जा का हास सान्द्र से तनु की ओर होता है।

अतः उपभोक्ता द्वारा व उत्पादक की तुलना में ऊर्जा का लगातार सूक्ष्म स्तर पर परिवर्तन होता है जो कि एक पारिस्थितिकी में विद्यमान हो।

किसी भी पोषण स्तर में, जो ऊर्जा ऊष्मा के रूप में व्यय हो जाती है वह पुनः जीवों के लिए उपलब्ध नहीं हो सकती जबकि खनिज पदार्थ बार-बार जीवों को उपलब्ध होते रहते हैं।