दोस्तों, आज की इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको वाष्पोत्सर्जन के बारे में जानकारी देने वाला हूं। यह एक क्रिया का नाम है, जो कि पौधों (Plants) के लिए होती हैं। यह क्रिया पौधों के जीवन के लिए कुछ समस्या उत्पन्न करती है। इसके बारे में आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हो।
वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं?
"पौधे के वायवीय भागों (pneumatic parts) द्वारा जल के वाष्प (water vapour) के रूप में हानि को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं।"
पौधे अपनी जड़ों द्वारा मृदा (soil) से जल का निरंतर अवशोषण करते रहते हैं। यह जल रसारोहण (ascent of sap) द्वारा पौधे के विभिन्न भागों में पहुंचता है। पौधे द्वारा अवशोषित (absorbed) जल की कुल मात्रा उसकी अपनी आवश्यकता से बहुत अधिक होती है। इस जल की कुछ ही मात्रा उसकी (पौधे की) वृद्धि तथा विकास (Plant growth) में काम आती है तथा आवश्यकता से अधिक जल की मात्रा पौधे की वायवीय भागो (स्तंभ, पत्तियों, कलियों एवं पुष्पों) से वाष्प के रूप में बाहर निकल जाती है जो संपूर्ण अवशोषित जल का लगभग 95% होती है। इसी क्रिया को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं।
वाष्पोत्सर्जन के कारण होने वाली जल की हानि (water loss) बहुत अधिक होती है तथा इसकी मात्रा विभिन्न पौधों में भिन्न-भिन्न होती है। जल संतृप्त अवस्था (saturated state) में उगने वाला ताड़ (palm) का वृक्ष एक दिन में 10-20 लीटर जल की हानि कर सकता है जबकि सेब का वृक्ष 1 दिन में 10 से 20 लीटर जल की हानि कर सकता है। मक्के का एक पौधा प्रतिदिन 3-4 लीटर जल की हानि कर सकता है जबकि मरुस्थलीय जलवायु में वृक्ष के आकार का एक कैक्टस प्रतिदिन 0.02 लीटर से भी कम जल की हानि करता है। सामान्यतः C₄ पौधों की अपेक्षा C₃ पौधों में जल हानि अधिक होती है।
वाष्पोत्सर्जन का प्रयोग
इसके प्रयोग को करने या इस क्रिया को समझने के लिए मिट्टी के एक गमले (clay pot) में एक पौधा लगाकर उसमें पहले बहुत पानी दे। अब गमले कि मिट्टी को रबर की चादर (Rubber wrap) से अच्छी तरह बंद कर दे ताकि मिट्टी में से जल न उड़ सके। इस गमले को एक बेलजार की नीचे रखकर बेलजार को वेसलीन या ग्रीस लगाकर (air tight) कर दें। कुछ देर बाद बेलजार की दीवारों (wall) पर जल की छोटी-छोटी बूंदे जमा हो जाएगी। इससे सिद्ध होता है कि पत्तियों द्वारा वाष्पोत्सर्जन (transpiration) होने से निकली वाष्प ठंडी (vapor cool) होने से बेलजार पर छोटी-छोटी बूंदों (drops) के रूप में एकत्र हो गयी है।
वाष्पोत्सर्जन के प्रकार
यह मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
- रंध्री वाष्पोत्सर्जन (Stomatal transpiration)
- उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (epidermal transpiration)
- वातरंध्री वाष्पोत्सर्जन (Vasoconstriction)
इसके बारे में विस्तृत से निम्न प्रकार से है
रंध्री वाष्पोत्सर्जन
रंध्री वाष्पोत्सर्जन पत्तियों पर स्थित रंध्रों (stomata) द्वारा होता है। इसे पणीय वाष्पोत्सर्जन (foliar transpiration) भी कहते हैं। यह कुल वाष्प उत्सर्जन का लगभग 80-95% होता है।
उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन
उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन पौधों की बाहरी त्वचा के ऊपर पायी जाने वाली उपत्वचा अथवा उपचर्म (cuticle) द्वारा होता है। यह कुल वाष्प उत्सर्जन का 5-10% तक होता है। उष्ण कटिबंधीय (tropical) जलवायु में इसकी दर अपेक्षाकृत अधिक तथा मरुस्थली (desert) जलवायु में कम होती है।
वातरंध्री वाष्पोत्सर्जन
वातरंध्री वाष्पोत्सर्जन काष्ठीय के तने तथा कुछ फलों में पाये जाने वाले वातरंध्र (lenticel) द्वारा होता है। यह कुल वाष्प उत्सर्जन का केवल 0.1-1%, अर्थात नगण्य होता है।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक
वाष्पोत्सर्जन क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक मुख्यतः निम्न प्रकार से हैं-
प्रकाश की तीव्रता
जब प्रकाश अधिक तेज होता है तब तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है, जिसके कारण वायुमण्डलीय आर्द्रता कम हो जाती है और वाष्पोत्सर्जन की दर में वृद्धि हो जाती है।
तापमान
इस क्रिया में तापमान का भी बहुत महत्व होता है। जैसा कि ऊपर प्रकाश की तीव्रता का कारण का वर्णन किया है। प्रकाश अधिक होने के कारण वायुमण्डलीय तापमान बढ़ जाता है और उसकी आर्द्रता कम हो जाती है जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है और जब प्रकाश कम होता है अर्थात् सूर्यास्त होता है तब प्रकाश कम होने के कारण वायुमण्डलीय तापमान कम हो जाता है जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
हवा
हवा को ही वायु कहते हैं, जब यह अधिक तेज से चलती है तब पौधों के आस-पास के क्षेत्र की आर्द्रता बढ़ जाती है जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है और जब हवा बहुत धीमी गति या बिल्कुल महसूस न होने वाली चलती है तब पौधों के आस-पास के क्षेत्र की आर्द्रता कम हो जाती है जिसके कारण वाष्पोत्सर्जन क्रिया की दर बढ़ जाती है।
आर्द्रता
आर्द्रता के बारे में ऊपर काफी वर्णन किया है, आर्द्रता का सीधा अर्थ होता है वायुमंडल में उपस्थित "नमी"। यदि वायुमंडल में नमी अधिक है तब वाष्पोत्सर्जन की क्रिया की दर कम होगी क्योंकि वायुमंडल में नमी होने के कारण पौधों के बाहरी भाग जैसे - तना, पत्तियों के रंध्र खुले होने के बावजूद भी पौधों में पानी की मात्रा कम नहीं हो पाती है और जब वायुमंडल में नमी कम होती है अर्थात् आर्द्रता कम होती है तब वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। ऐसा इस लिए होता है जब वायुमंडल में नमी कम होती तब वायुमंडल का तापमान बढ़ना तो निश्चित है, जिसके कारण, इसकी दर पर बढ़ जाती है।
वाष्पोत्सर्जन और वाष्पीकरण में अंतर
क्रमांक | वाष्पोत्सर्जन | वाष्पीकरण |
1. | यह एक जैविक (vital) क्रिया है। | यह एक भौतिक क्रिया है। |
2. | यह क्रिया मुख्यतः रंध्रों (stomata) द्वारा होती है। | यह किसी भी सतह से हो सकती है। |
3. | इसमें पानी वाष्प के रूप में पौधों के वायवीय भागों से निकलता है। | इसमें पानी वाष्प (vapor) के रूप में पानी की किसी भी स्वतंत्र सतह से निकलता है। |
4. | पानी की प्रति इकाई क्षेत्रफल (area per unit) हानि अधिक होती है। | पानी की प्रति इकाई क्षेत्रफल हानि कम होती है। |
5. | यह एक नियमित (regulated) क्रिया है। | यह एक अनियमित (non-regulated) क्रिया है। |
6. | इस क्रिया में कई प्रकार के दाब (pressure), जैसे- चूषण दाब, परासरण दाब आदि भाग लेते हैं। | यह किसी दाब द्वारा नियंत्रित नहीं होती है। |